
भारत में इस साल क्यों घातक रहा मानसून, जिसके कारण सैकड़ों लोगों ने गंवाई जान?
क्या है खबर?
भारत में इस साल का मानसून काफी घातक रहा है। देश के उत्तरी भाग में हुई मूसलाधार बारिश और बादल फटने की घटनाओं ने अचानक बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति पैदा कर दी। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र सबसे इस तबाही वाली मानूसनी बारिश से सबसे ज्यादा प्रभावित रहे, जहां विभिन्न वर्षा जनित हादसों में 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई। आइए मानसून की बदली हुई प्रवृत्ति का कारण जानते हैं।
परेशानी
बादल फटने की घटनाओं ने मचाई तबाही
भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, इस बार मानसून के दौरान तबाही का मुख्य कारण बादल फटने की घटनाओं का बढ़ना रहा है। बादल फटना वह स्थिति है, जिसमें एक घंटे के भीतर किसी क्षेत्र में 100 मिलीमीटर या उससे अधिक बारिश होती है। IMD के अनुसार, एक घंटे के भीतर 20-30 मिलीमीटर बारिश को 'तीव्र वर्षा', 30-50 मिलीमीटर को 'बहुत तीव्र', 50-100 मिलीमीटर को 'अत्यंत तीव्र' और उससे अधिक बारिश को बादल फटना कहा जाता है।
बारिश
देश के 727 जिलों में हुई मानसूनी बारिश
IMD के अनुसार, देश के 738 जिलों में से 727 में बारिश दर्ज की है। 6 सितंबर तक 85 जिलों में बहुत अधिक बारिश (सामान्य से 60 प्रतिशत अधिक) हुई और 164 जिलों में सामान्य से 20-59 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। इससे साफ है कि देश का हर 3 में से एक जिला अत्यधिक या बहुत अधिक बारिश से प्रभावित रहा है। उत्तर-पश्चिम भारत के 208 जिलों में से 60 प्रतिशत में अत्यधिक बारिश दर्ज की गई है।
परेशानी
असाधारण बारिश ने बढ़ाई परेशानी
सितंबर में उत्तराखंड के चमोली में हुई अत्यंत तीव्र बारिश से आए पानी के सैलाब से इमारतें मलबे में तब्दील हो गईं और 10 लोगों की मौत हो गई। देहरादून में भी ऐसी घटना में इमारतें, वाहन और पुल बह गए, जिससे 13 लोगों की मौत हुई थी। उत्तराखंड के अलावा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब सहित अन्य राज्यों को भी असाधारण रूप से तीव्र मानसून का खामियाजा भुगतना पड़ा है। बारिश के कारण बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान हुआ है।
कारण
क्या है मानसून के भयानक होने का कारण?
विशेषज्ञ ऐसी घटनाओं के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार मानते हैं, जो भारत में मानसून के व्यवहार को बदल रहा है। यह बदलाव कृषि, जल प्रणालियों और आपदा तैयारियों के लिए खतरा हैं। IMD के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में मौसमी बारिश में 6 प्रतिशत गिरावट आई है। मध्यम वर्षा वाले दिन कम हो गए और अत्यधिक वर्षा वाले दिन बढ़ गए हैं। इसी तरह भारी वर्षा (एक दिन में 150 मिलीमीटर) वाले दिन 75 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं।
व्यवहार
कैसे बदल रहा है मानसून का व्यवहार?
सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, साल 1901 से 2018 की अवधि में भारतीय सतह के वायु तापमान में लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। इसी तरह उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर के समुद्र की सतह का तापमान 1951 और 2015 के बीच लगभग 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया। चूंकि गर्म हवा अधिक नमी (लगभग 7 प्रतिशत प्रति 1 डिग्री सेल्सियस) धारण कर सकती है। इसके परिणामस्वरूप देश में अब पहले की तुलना में अधिक तीव्र बारिश होने लगी है।
आंकड़े
55 प्रतिशत तहसीलों में बढ़ी बारिश
IMD के अनुसार, भारत की 55 प्रतिशत तहसीलों में एक दशक में मानसूनी वर्षा में वृद्धि देखी गई, जो मुख्यतः अल्पकालिक भारी वर्षा के कारण हुई। इसी तरह 11 प्रतिशत तहसीलों में गिरावट आई है। इनमें विशेष रूप से सिंधु-गंगा के मैदान जैसे कृषि निर्भर क्षेत्र शामिल हैं। ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 48 प्रतिशत तहसीलों में अक्टूबर में अधिक वर्षा दर्ज की गई है, जो मानसून की वापसी में देरी का संकेत है।
बदलाव
भारत में किस तरह बदला मानसून का स्वरूप?
CEEW के अनुसार, पूर्वोत्तर भारत, सिंधु-गंगा के मैदान और भारतीय हिमालयी क्षेत्र जैसे मानसून-समृद्ध क्षेत्रों में पिछले दशक में बारिश में कमी आई है। इसके विपरीत, राजस्थान, गुजरात, मध्य महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे पारंपरिक रूप से शुष्क क्षेत्रों में बारिश में बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह जहां, तमिलनाडु में उत्तर-पूर्वी मानसून तेज हो गया, वहीं ओडिशा, पश्चिम बंगाल समेत पश्चिमी तट पर महाराष्ट्र और गोवा में अक्टूबर से दिसंबर तक बारिश बढ़ गई।
प्रभाव
भारत के साथ अन्य देशों पर भी पड़ रहा असर
वैज्ञानिकों ने पाया है कि उच्च वाष्पीकरण दर और तेजी से गर्म होते महासागरों के कारण आर्द्र हवाएं चल रही हैं, जिससे दक्षिण एशिया, खासकर भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों में बादल फटने या अत्यंत तीव्र बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं। शायद यही वजह है कि इस साल पाकिस्तान में विनाशकारी मानसून आया, जिसमें 700 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। यह बदलाव आने वाले समय में और भी भयानक होगा।