#NewsBytesExplainer: आरक्षण पर क्यों बदले RSS प्रमुख मोहन भागवत के सुर और क्या हैं इसके मायने?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने 6 सितंबर को आरक्षण को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक समाज में भेदभाव मौजूद है। 5 राज्यों के विधानसभा और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले इस बयान के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं। आइए समझते हैं कि भागवत ने क्या कहा और इसके क्या मायने हैं।
सबसे पहले जानिए भागवत ने आरक्षण पर क्या कहा
नागपुर में एक कार्यक्रम में भागवत ने कहा, "सामाजिक व्यवस्था में हमने अपने बंधुओं को पीछे छोड़ दिया। हमने उनकी देखभाल नहीं की और यह 2,000 सालों तक चला। जब तक हम उन्हें समानता नहीं प्रदान कर देते, तब तक कुछ विशेष उपचार तो होने ही चाहिए और आरक्षण उनमें से एक है। इसलिए आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक ऐसा भेदभाव बना हुआ है। संविधान में प्रदत्त आरक्षण का हम संघ वाले पूरा समर्थन करते हैं।"
आरक्षण के विरोध में बोलते रहे हैं भागवत
इससे पहले भागवत आरक्षण के विरोध में बयान देते रहे हैं। साल 2016 में भागवत ने कहा था कि आरक्षण से उम्मीद के मुताबिक फायदा नहीं हुआ है और इस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। 2015 में आरक्षण को लेकर गुजरात में पाटीदारों का आंदोलन चल रहा था। उस वक्त भागवत ने कहा था, "आरक्षण नीति की समीक्षा की जानी चाहिए। इसका उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए हो रहा है।"
आरक्षण पर क्या रहा है RSS का मत?
पारंपरिक तौर पर RSS जातिगत आरक्षण के खिलाफ रहा है। RSS का मत है कि आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए। संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर ने अपनी किताब 'विचारधन' में लिखा है, "1950 में जब भारत गणतंत्र बना तब डॉक्टर अंबेडकर ने अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए 10 साल के लिए आरक्षण व्यवस्था अपनाने की बात कही थी। समाज के सभी तबकों में गरीब लोग रहते हैं, इसलिए आरक्षण आर्थिक आधार पर दिया जाना चाहिए।"
आरक्षण पर भागवत ने यू-टर्न क्यों लिया?
2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भागवत ने कहा था कि आरक्षण नीति की समीक्षा होनी चाहिए। इस पर खूब हंगामा हुआ था। लालू प्रसाद यादव ने तो यहां तक कहा दिया था कि अगर मां का दूध पिया है तो आरक्षण खत्म करके दिखाओ। भाजपा ने भी भागवत के इस बयान से पल्ला झाड़ लिया था। इस चुनाव में भाजपा की हार हुई थी। तब माना गया कि भाजपा को भागवत के इस बयान का नुकसान उठाना पड़ा।
OBC आरक्षण को लेकर क्या है भाजपा की रणनीति?
माना जाता है कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण का लाभ कुछ बड़ी जातियों को ही मिल रहा है और कमजोर जातियां इससे दूर हैं। भाजपा OBC में भी अतिपिछड़ी जातियों को साधने की कोशिश कर रही है। इस संबंध में 2017 में रोहिणी आयोग बनाया गया था। इसका काम OBC आरक्षण के 27 प्रतिशत कोटे को इस तरह से सभी में बांटना है कि किसी के साथ अन्याय न हो और कमजोर जातियों को भी लाभ मिले।
OBC समुदाय भाजपा के लिए क्यों अहम?
अनुमान के मुताबिक, भारत की 51 फीसदी आबादी OBC के अंतर्गत आती है। इस लिहाज से ये बड़ा वोटबैंक है। उत्तर भारत में OBC के अंतर्गत आने वाली बड़ी जातियां भाजपा को वोट देने लगी है। अकेले उत्तर प्रदेश में ही 42-43 प्रतिशत आबादी OBC है, जो लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी अहम है, क्योंकि यहां लोकसभा की 80 सीटें हैं। इसी साल उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में OBC आरक्षण के लिए भाजपा सुप्रीम कोर्ट चली गई थी।
भागवत के बयान के क्या हैं मायने?
आरक्षण का मुद्दा भाजपा और RSS के लिए दो-धारी तलवार जैसा रहा है। भाजपा कई राज्यों में अब OBC के दम पर सरकार बनाती है, इसलिए आरक्षण के विरोध में कुछ बोलना मतलब खुद का नुकसान कराना है। सरकार अगर OBC आरक्षण के कोटे के भीतर ही छेड़छाड़ करती है तो OBC की बड़ी जातियां छिटक सकती हैं। अगर जातिगत जनगणना हुई और OBC की जनसंख्या बढ़ गई तो कोटा बढ़ाने की मांग भी उठने लगेगी।