कोरोना वायरस: क्या है देश का ऑक्सीजन संकट और इसके समाधान के लिए क्या-क्या किया गया?
क्या है खबर?
कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के प्रकोप के बीच देश के कई राज्यों में मेडिकल ऑक्सीजन की कमी पड़ने लगी है और मरीजों के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन की आपूर्ति एक बड़ी चुनौती बन गई है। इस संकट से निपटने के लिए सरकार ने कुछ कदम भी उठाए हैं।
चलिए आपको देश और राज्यों के ऑक्सीजन संकट और इससे निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में विस्तार से बताते हैं।
राज्य
किन राज्यों में है ऑक्सीजन की सबसे अधिक किल्लत?
सबसे पहले बात करते हैं राज्यों की। सबसे अधिक प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में ऑक्सीजन की सबसे अधिक किल्लत है।
राज्य में हर रोज 1,250 टन ऑक्सीजन का उत्पादन होता है और अभी राज्य में रोजाना लगभग इतनी ही ऑक्सीजन की खपत हो रही है। इसके अलावा महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ और गुजरात से भी 50-50 टन ऑक्सीजन मंगा रहा है।
आने वाले समय में यहां मांग और बढ़ने की संभावना है और इससे राज्य में मांग उत्पादन से ज्यादा हो सकती है।
जानकारी
मध्य प्रदेश भी दूसरे राज्यों पर निर्भर
इसी तरह मध्य प्रदेश को रोजाना 250 टन ऑक्सीजन की आवश्यकता है, लेकिन उसका कोई मैन्युफैक्चरिंग प्लांट नहीं है और वह गुजरात, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश पर निर्भर है। इन राज्यों में मामले बढ़ने के कारण मध्य प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।
मांग और आपूर्ति
देशभर में मेडिकल ऑक्सीजन की कितनी मांग और आपूर्ति?
पूरे देश की बात करें तो ऑक्सीजन का उत्पादन करने वाली क़रीब 500 फैक्ट्रियां हैं जो प्रतिदिन 7,127 मैट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन बना सकती हैं। अभी देश में रोजाना 3,843 मैट्रिक टन ऑक्सीजन की खपत है जो कि कुल उत्पादन की 54 प्रतिशत है।
इसका मतलब कोरोना वायरस के मरीजों के लिए जितनी ऑक्सीजन की जरूरत है, देश में उससे अधिक ऑक्सीजन का उत्पादन हो रहा है। अगर ऐसा है तो राज्यों में ऑक्सीजन की कमी क्यों हो रही है?
परेशानी
अधिक उत्पादन के बावजूद ऑक्सीजन की कमी क्यों?
दरअसल, देश के मौजूदा ऑक्सीजन संकट की मुख्य वजह इसके ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल होने वाले टैंक और सिलेंडरों की कमी है। तरल ऑक्सीजन काफी ज्वलनशील होती है और ट्रांसपोर्टेशन के दौरान कोई दुर्घटना न हो, इसके लिए इन्हें क्रायोजेनिक टैंकों में एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जाता है।
देश में ऐसे टैंकरों की संख्या मात्र 1,500 है और इन्हें 40 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक की स्पीड और रात 10 बजे के बाद नहीं चलाया जा सकता।
सीमाओं का असर
एक राज्य से दूसरे राज्य ऑक्सीजन पहुंचने में लग रहा ज्यादा समय
इन्हीं सीमाओं और मांग में वृद्धि के कारण एक राज्य से दूसरे राज्य तक ऑक्सीजन पहुंचने का समय तीन-पांच दिन से बढ़कर छह-आठ दिन हो गया है। इसी वजह से मरीजों तक समय पर ऑक्सीजन नहीं पहुंच रही है।
सिलेंडरों की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है और सप्लायर्स का कहना है कि वे मांग के हिसाब से सिलेंडरों का फ्लो बनाए रखने में नाकाम हैं क्योंकि सिलेंडर काफी कम हैं।
कदम
संकट से निपटने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए?
कई राज्यों में ऑक्सीजन की कमी और ट्रांसपोर्टेशन में दिक्कत को देखते हुए केंद्र सरकार ने दूरदराज के 100 अस्पतालों में ऑक्सीजन का उत्पादन करने वाले प्रेशर स्विंग अब्जॉर्प्शन (PSA) प्लांट लगाने का फैसला किया है। इसके अलावा 162 अन्य PSA प्लांट लगभग शुरू होने को हैं।
इन प्लांट्स की मदद से दूर के इलाकों तक ऑक्सीजन के ट्रांसपोर्टेशन में लगने वाले समय और कीमत को कम किया जा सकेगा और मरीजों तक समय पर ऑक्सीजन पहुंच सकेगी।
अन्य कदम
सरकार ने ये कदम भी उठाए
इसके अलावा सरकार ने आपातकालीन स्थिति के लिए 50,000 मैट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन निर्यात करने का फैसला भी लिया है और जल्द ही इसका टेंडर जारी किया जाएगा।
सरकार ने ऐसे 12 राज्यों की पहचान भी की है जहां ऑक्सीजन की सबसे अधिक मांग है और सरप्लस ऑक्सीजन वाले राज्यों से यहां तीन खेपों में 17,000 टन ऑक्सीजन भेजी जाएगी।
सरकार को उम्मीद है कि इन कदमों की मदद से वह सभी राज्यों में ऑक्सीजन की आपूर्ति बरकरार रख पाएगी।