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अरावली खनन विवाद पर केंद्रीय मंत्री की सफाई, कहा- फैलाई गई है गलत सूचना
अरावली खनन विवाद पर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने सफाई दी है

अरावली खनन विवाद पर केंद्रीय मंत्री की सफाई, कहा- फैलाई गई है गलत सूचना

Dec 22, 2025
05:53 pm

क्या है खबर?

दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक अरावली पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक जैसी परिभाषा तय किए जाने के बाद राजस्थान से लेकर दिल्ली और सोशल मीडिया पर छिड़े विवाद पर केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने सफाई दी है। उन्होंने कहा है कि अरावली पर्वतमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में गलत जानकारी फैलाई जा रही है। सरकार ने इस पर्वत श्रृंखला के संरक्षण को लगातार बढ़ावा दिया है।

बयान

यादव ने क्या दिया बयान?

यादव ने कहा, "मैने फैसले का विस्तार से अध्ययन किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली, गुजरात और राजस्थान में स्थित अरावली पर्वतमाला का संरक्षण वैज्ञानिक मूल्यांकन के माध्यम से किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने हमेशा हरित अरावली को बढ़ावा दिया है।" उन्होंने आगे कहा, "सरकार के हरित आंदोलन को इस तरह की मान्यता पहली बार मिली है। कोर्ट ने खनन संबंधी मुद्दों की जांच के उद्देश्य से तकनीकी समिति गठित की है।"

स्पष्टता

यादव ने विवाद को किया स्पष्ट

मंत्री यादव ने 100 मीटर के मापदंड को लेकर उठे विवाद को भी स्पष्ट करते हुए कहा कि 100 मीटर का मुद्दा ऊपर से नीचे तक है, यानी आसपास की जमीन से 100 मीटर या ज्यादा ऊंची भू-आकृति ही अरावली पहाड़ी मानी जाएगी। उन्होंने कहा कि पहाड़ी के आधार से लेकर ढलान तक का क्षेत्र संरक्षित होगा। अगर, दो पहाड़ियां 500 मीटर के दायरे में हाती हैं, तो उनके बीच का क्षेत्र भी अरावली रेंज का ही हिस्सा माना जाएगा।

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खनन

NCR क्षेत्र में प्रतिबंधित है खनन

मंत्री यादव ने कहा कि NCR क्षेत्र में किसी भी प्रकार का खनन प्रतिबंधित है। फैसले के पैरा 38 में साफ कहा गया है कि जरूरी जरूरतों को छोड़कर कोई नया खनन पट्टा जानी नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अरावली में 20 वन्यजीव अभयारण्य और 4 टाइगर रिजर्व हैं, जो पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे। कुल अरावली क्षेत्र लगभग 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर है, जिसमें सिर्फ 0.19 प्रतिशत क्षेत्र में ही खनन की संभावना हो सकती है।

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फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले ने अफवाहों को किया स्पष्ट- यादव

मंत्री यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इस मुद्दे से जुड़े सभी झूठे आरोपों और गलत सूचनाओं को स्पष्ट कर दिया है। अवैध खनन ही अरावली के लिए सबसे बड़ा खतरा है। अब निगरानी और मजबूत होगी। सरकार ग्रीन अरावली के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला के वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए एक प्रबंधन योजना की सिफारिश की है, जो सरकार के अध्ययनों और संरक्षण प्रयासों का समर्थन करती है।

पृष्ठभूमि

क्या है अरावली पर्वतमाला को लेकर विवाद? 

इस विवाद की शुरुआत अरावली को लेकर अलग-अलग परिभाषाओं के चलते हुई है। अलग-अलग राज्यों और एजेंसियों द्वारा अलग-अलग परिभाषाओं के चलते कई खामियां सामने आईं। इसे दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय, भारतीय वन सर्वेक्षण, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, राज्यों के वन विभागों और केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) के प्रतिनिधियों वाली एक समिति बनाई थी। अब कोर्ट ने इस समिति द्वारा दी गई परिभाषा को स्वीकार कर लिया है।

परिभाषा

क्या कहती है अरावली की नई परिभाषा?

नई परिभाषा के अनुसार, अरावली श्रृंखला की 100 मीटर से नीचे की छोटी पहाड़ियों और ढलानों को अब 'अरावली' नहीं माना जाएगा। यानी स्थानीय भू-स्तर से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचाई वाली पहाड़ियां ही अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा मानी जाएंगी। वहीं, 500 मीटर के दायरे में 2 या 2 से ज्यादा ऐसी पहाड़ियों को 'अरावली' माना जाएगा। केंद्र का तर्क है कि इससे पूरे देश में अरावली की एक समान और स्पष्ट परिभाषा लागू होगी।

विरोध

नई परिभाषा का विरोध क्यों हो रहा है?

जानकारों का कहना है कि नई परिभाषा से लगभग 90 प्रतिशत अरावली क्षेत्र 'अरावली' के दायरे से बाहर हो जाएगा। अरावली क्षेत्र खनिज संसाधनों से समृद्ध है। नई परिभाषा लागू हुई, तो यहां खनन गतिविधियां बेलगाम हो जाएगी। 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों को भी कम दिखाकर खनन शुरू कर दिया जाएगा। यानी ये फैसला अरावली को मिले कानून संरक्षण को खत्म कर देगा, जिससे कई पर्यावरणीय चुनौतियां भी सामने आएंगी।

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