तमिलनाडु: श्रीलंका से आए शरणार्थियों का इंटरव्यू लेने के कारण दो पत्रकारों पर केस दर्ज
तमिलनाडु में दो पत्रकारों के खिलाफ श्रीलंका से आए शरणार्थियों का इंटरव्यू करने के लिए मामला दर्ज किया गया है। इन पत्रकारों ने शरणार्थियों से नागरिकता संशोधन कानून को लेकर सवाल पूछे थे। जानकारी के मुताबिक, विकाटन ग्रुप के एक रिपोर्टर और एक फोटो जर्नलिस्ट के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188, 447 और 505-1b के तहत मामला दर्ज किया गया है। आइये, इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
दोनों पत्रकारों के खिलाफ गैर-जमानती धाराएं
FIR में कहा गया है कि दोनों पत्रकार एक शरणार्थी कैंप में घुसे और उन्हें नागरिकता कानून के खिलाफ विद्रोह करने के लिए उकसाया। उन्हें गैर-जमानती धारा के तहत आरोपी बनाया गया और पुलिस उनकी तलाश में जुटी है। कलियाक्काविलाई और मार्तनंदम पुलिस थाने में इन पत्रकारों के खिलाफ उनके गांव के पंचों ने शिकायत दी है। इन पर आरोप है कि ये दोनों अधिकारियों की अनुमति के बिना शरणार्थी कैंप में घुसे थे।
तमिल शरणार्थियों को रखा गया है कानून से बाहर
नागरिकता कानून के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच तमिलनाडु में श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थियों का मुद्दा प्रमुखता से उठ रहा है। नए नागरिकता कानून में केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम लोगों को आसानी से भारत की नागरिकता मिल सकेगी। इन तीनों देशों के अलावा बाकी पड़ोसी देशों को इस कानून से बाहर रखा गया है। विपक्षी पार्टियों की मांग है कि तमिल शरणार्थियों को भी इस कानून के दायरे में रखा जाए।
राज्य सरकार को करना पड़ रहा विरोध का सामना
DMK सांसद कनिमोझी ने पत्रकारों पर हुए मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि लोकतंत्र में प्रेस पर ऐसे हमले की कड़ी निंदा की जानी चाहिए। उन्होंने राज्य सरकार से ये केस वापस लेने की मांग की है। वहीं कमल हासन की पार्टी ने भी इस कदम की आलोचना की है। दो पत्रकारों की खिलाफ केस वापस लेने की मांग करते हुए कई पत्रकारों ने DGP से भी मुलाकात की है।
क्या है नागरिकता संशोधन कानून?
नागरिकता संशोधन कानून को शीतकालीन सत्र में संसद से हरी झंडी मिली थी। इसके तहत 31 दिसंबर, 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आए हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, ईसाई और पारसी लोगों को आसानी से नागरिकता मिल सकेगी। वहीं मुस्लिमों को इस कानून से बाहर रखा गया है। इस कानून से पहले नागरिकता के लिए हर विदेशी व्यक्ति को कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य था।
देशभर में हो रहा कानून का विरोध
संसद में नागरिकता संसोधन बिल पेश होने के दिन से ही देश के अलग-अलग कोनों में इसका विरोध हो रहा है। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद यह कानून बन गया और इसका विरोध और तेज हो गया। देशभर के शहरों में बड़ी संख्या में छात्र, राजनीतिक दल और आम लोग इस कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। कई शहरों में ये प्रदर्शन हिंसक हो गए और अब तक 20 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।