IT कानून की निरस्त धारा के तहत दर्ज हो रहे मामले, सुप्रीम कोर्ट ने जताई हैरानी
क्या है खबर?
सात साल पहले निरस्त हो चुकी IT अधिनियम की धारा 66A के तहत अब भी देशभर में केस दर्ज किए जा रहे हैं और आज सुप्रीम कोर्ट ने इस पर हैरानी और नाराजगी व्यक्त की।
जस्टिस आर नरीमन, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने कहा कि जो हो रहा है वो भयानक है।
बेंच ने मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और उसे दो हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है।
पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में निरस्त की थी धारा 66A
सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च, 2015 को अपने ऐतिहासिक फैसले में IT अधिनियम की धारा 66A को असंवैधानिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ बताते हुए निरस्त कर दिया था।
इस धारा के तहत किसी भी तरह की "अपमानजनक" सामग्री ऑनलाइन डालने पर तीन साल तक की सजा हो सकती थी। इसके साथ दिक्कत ये थी कि किस सामग्री को अपमानजनक माना जाएगा, ये तय नहीं था और सरकारें अक्सर इसका उपयोग अपनी आलोचना को दबाने के लिए करती थीं।
लापरवाही
धारा निरस्त किए जाने के बाद भी 1,300 से अधिक केस दर्ज
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बावजूद भी देशभर में धारा 66A के तहत मामले दर्ज होते रहे जिसके बाद पीपल यूनियन यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (PUCL) नामक एक NGO ने मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
PUCL ने अपनी याचिका में बताया कि 66A खत्म होने सेपहले इसके तहत 229 मामले चल रहे थे और उसके बाद से 1,307 नए मामले दर्ज किए जा चुके हैं।
राज्यों की स्थिति
महाराष्ट्र और झारखंड में सबसे अधिक मामले
याचिका के अनुसार, इनमें से सबसे अधिक मामले महाराष्ट्र (381), झारखंड (291), उत्तर प्रदेश (245) और राजस्थान (192) में दर्ज किए गए।
अन्य राज्यों में असम में 59, आंध्र प्रदेश में 38, पश्चिम बंगाल में 37, दिल्ली में 28, कर्नाटक में 14, तेलंगाना में 15 और तमिलनाडु में सात मामले दर्ज किए गए।
PUCL के वकील संजय पारिक ने कोर्ट से सभी पुलिस स्टेशनों को इस धारा के तहत मामला दर्ज न करने का निर्देश देने का अनुरोध किया।
याचिका
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद कोर्ट्स में चल रहे मामले
PUCL ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 66A को निरस्त करने के अपने आदेश की कॉपी हाई कोर्ट्स के जरिए हर जिला कोर्ट को भेजने निर्देश भी दिया था। इसके अलावा केंद्र सरकार को सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को इसकी कॉपी भेजने और मुख्य सचिवों को सभी पुलिस विभागों को इसकी कॉपी भेजने का निर्देश भी दिया गया था।
याचिका के अनुसार, इसके बावजूद न केवल पुलिस स्टेशन बल्कि स्थानीय कोर्ट्स में भी 66A के मामले चल रहे हैं।
दलील
अटॉर्नी जनरल बोले- मूल कानून में अभी भी है धारा 66A
मामले में केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा, "भले ही इसे निरस्त कर दिया गया हो, लेकिन मूल अधिनियम में 66A अभी भी है। इसी कारण पुलिस को मामला दर्ज कर रही है। इसके साथ लिखा जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया है।"
अटॉर्नी जनरल की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर हैरानी और नाराजगी दोनों व्यक्त की और केंद्र को नोटिस जारी किया।