सिंघु बॉर्डर पर सिख संत ने की आत्महत्या, किसान आंदोलन पर सुसाइड नोट भी छोड़ा
कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 21 दिनों से चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन के बीच एक बड़ा मामला सामने आया है। सरकार द्वारा मांगे नहीं माने जाने से दुखी एक सिख संत (ग्रंथि) राम सिंह नानकसर ने बुधवार शाम को सिंघु बॉर्डर पर खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इस घटना से किसानों में आक्रोश है। राम सिंह हरियाणा और पंजाब में हजारों अनुयायियों के धार्मिक उपदेशक बताए जा रहे हैं।
संत राम सिंह ने लाइसेंसी बंदूक से मारी खुद को गोली
इंडिया टुडे के अनुसार मृतक सिख संत राम सिंह (65) हरियाणा के करनाल के रहने वाले थे। वह हरियाणा SGPC सहित कई सिख संगठनों में एक पूर्व पदाधिकारी भी रह चुके थे। वह 15 दिसंबर को ही किसानों के आंदोलन में शामिल हुए थे, लेकिन बुधवार शाम को उन्होंने लाइसेंसी बंदूक से खुद को गोली मार ली। गोली की आवाज सुनकर पहुंचने अन्य किसानों ने उन्हें निजी अस्पताल में पहुंचाया, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
रामसिंह ने सुसाइड नोट में आत्महत्या को बताया जुल्म के खिलाफ आवाज
संत राम सिंह का सुसाइड नोट भी मिला हैं। उन्होंने किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए उनके हक के लिए आवाज बुलंद करना बताया है। उन्होंने लिखा, 'किसानों का दुख देखा, बहुत दिल दुखा। सरकार न्याय नहीं दे रही। जुल्म करना पाप है, जुल्म सहना भी पाप है। किसी ने किसानों के हक में और जुल्म के खिलाफ कुछ नहीं किया। कइयों ने सम्मान वापस किए। यह जुल्म के खिलाफ आवाज है। वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह।'
क्या है किसानों के विरोध का कारण?
सितंबर में लागू किए गए कृषि कानूनों को लेकर पिछले कई महीनों से विरोध कर रहे किसानों ने गत 25 नवंबर से अपने आंदोलन को तेज कर दिया था। उन्होंने सरकार के खिलाफ 'दिल्ली चलो' मार्च का आह्वान किया था। किसानों को डर है कि APMC मंडियों के बाहर व्यापार की अनुमति देने वाले कानून मंडियों को कमजोर कर देंगे और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भी नहीं मिलेगा। इसके चलते कॉरपोरेट जगह के लोग किसानों का शोषण करेंगे।
कई किसानों की हो चुकी है मौत
किसानों के प्रतिनिधियों ने मंगलवार को बताया था कि अब तक किसी भी कारण से 20 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों की मौत हो चुकी है। जल्द ही उनके सम्मान में श्रद्धांजलि दिवस का आयोजन किया जाएगा।
अब तक विफल रही है सभी वार्ताएं
बता दें कि सरकार और किसानों में अब तक पांच दौर की वार्ता हो चुकी हैं और सभी बेनतीजा रही हैं। किसान तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। वहीं, सरकार संशोधन करने को तैयार है। बुधवार को संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से सरकार को लिखित में जवाब दिया गया है। किसान मोर्चा ने सरकार से अपील की है कि वह आंदोलन को बदनाम ना करें और सभी किसानों से एकसाथ बात करें।
जल्द ही राष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है किसानों का प्रदर्शन- सुप्रीम कोर्ट
किसानों की याचिका पर सुनवाई करते सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसानों के प्रदर्शन का मामला कुछ ही दिनों में राष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है। इसलिए कोर्ट इसके समाधान के लिए समिति के गठन का प्रस्ताव देता है। इसमें किसान संगठन और सरकार, दोनों पक्षों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि सरकार और किसानों के बीच अभी तक हुई बातचीत से हल क्यों नहीं निकला है।
कृषि मंत्री ने कही आंदोलन के एक राज्य तक सीमित होने की बात
इधर, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बुधवार को कहा कि कृषि कानूनों पर विरोध अपवाद के रूप में एक राज्य तक ही सीमित है और जल्द ही इसका समाधान कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों से देश में उत्साह का माहौल है। एक तरफ आंदोलन हो रहा है, वहीं दूसरी ओर लाखों किसान इन कानूनों के समर्थन में हैं। सरकार लगातार किसान संगठनों से बात कर रही है और जल्द ही समाधान के लिए वार्ता होगी।