मुंबई में अब मराठी में लिखे जाएंगे दुकानों और प्रतिष्ठानों के नाम, आखिर क्या है कारण?
मुंबई में अब सभी दुकानों और प्रतिष्ठानों के बाहर लगाए जाने वाले साइन बोर्डों पर उनके नाम देवनागरी लिपि में मराठी भाषा में ही लिखे जाएंगे। बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) ने बुधवार को इस संबंध में आदेश भी जारी कर दिए हैं। BMC ने कहा कि यदि किसी दुकान या प्रतिष्ठान का नाम दो-तीन भाषाओं में लिखा है तो भी उसे एक नाम बड़े अक्षरों में मराठी में लिखना होगा। आएये जानते हैं BMC ने आदेश क्यों जारी किया है।
BMC ने क्या जारी किया है आदेश?
BMC के आदेश में कहा गया है कि अब सभी दुकान और प्रतिष्ठान संचालकों को साइन बोर्ड पर अपना नाम देवनागरी लिपि में मराठी भाषा में लिखना होगा। एक से अधिक भाषा में नाम होने पर मराठी भाषा के नाम को आकार में सबसे बड़ा रखना होगा। इसी तरह शराब दुकानों या बार में महान हस्तियों और ऐतिहासिक किलों के नाम का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। आदेश में कहा गया है कि संचालकों को तत्काल इसकी पालना करनी होगी।
आदेशों की पालना के लिए क्या है समय सीमा?
BMC के एक अधिकारी ने कहा, "संशोधित नियम तुरंत लागू होंगे, लेकिन दुकानों, रेस्तरां, बार और अन्य प्रतिष्ठानों को पालना के लिए कुछ समय दिया जाएगा।" उन्होंने आगे कहा, "विधायिका द्वारा मंजूरी मिलने के बाद व्यापारियों को संशोधन के बारे में पहले से जानकारी थी, लेकिनहम अभी भी उन्हें आवश्यक बदलाव करने के लिए कुछ समय देंगे। यही कारण है कि आदेश में फिलहाल कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है।"
BMC ने क्यों जारी किया है नया आदेश?
महाराष्ट्र विधानसभा ने पिछले महीने दुकानों और प्रतिष्ठानों के लिए देवनागरी लिपि में मराठी साइनबोर्ड अनिवार्य करने वाले एक विधेयक को मंजूरी दे दी थी। इस विधेयक में स्पष्ट किया था कि मराठी-देवनागरी लिपि में लिखे नाम का आकार अन्य लिपियों के आकार से छोटा नहीं हो सकता। उल्लंघन करने वालों के खिलाफ दुकान अधिनियम, 2017 के तहत कार्रवाई की जाएगी। संशोधन में सभी किराना दुकान, कार्यालय, होटल, रेस्तरां, बार और थिएटर आदि शामिल हैं।
सरकार को क्यों पड़ी विधेयक लाने की जरूरत?
शिवसेना के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार मराठी भाषा पर जोर देकर BMC चुनावों से पहले मराठी वोट बैंक को मजबूत करने का प्रयास कर रही है। बता दें कि मराठी साइनबोर्ड शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के लिए एक राजनीतिक मुद्दा रहा है। MNS कार्यकर्ता पहले भी इस मामले में दो दुकानों को निशाना बना चुके हैं। उन दुकानों पर गुजराती में साइनबोर्ड था और उसे जबरन हटा दिया गया था।
BMC ने साल 2008 में भी जारी किया था आदेश
बता दें कि BMC ने साल 2008 में MNS के आंदोलन के बाद इसी तरह का आदेश जारी कर दुकानों और प्रतिष्ठानों को मराठी साइनबोर्ड लगाना अनिवार्य किया था, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर BMC को अपना आदेश वापस लेना पड़ा था।
फिर से मराठी पर जोर दे रही है MVA सरकार
2017 के निकाय चुनावों में भाजपा और शिवसेना ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। उस दौरान शिवसेना ने मराठी मानुस एजेंडे को पुनर्जीवित किया था। यही कारण रहा कि शिवसेना ने 84 सीटें जीतकर BMC पर नियंत्रण बनाए रखा। पिछले दो वर्षों में MVA सरकार में सहयोगी शिवसेना मराठी भाषा के मुद्दे को आगे बढ़ा रही है। जुलाई 2021 में सरकार ने सभी सरकारी कार्यालयों में मराठी भाषा में काम के लिए महाराष्ट्र राजभाषा अधिनियम, 1964 में संशोधन किया था।
महाराष्ट्र सरकार ने स्कूलों में अनिवार्य कर रखी है मराठी भाषा
बता दें महाराष्ट्र सरकार ने अपने मराठी के मुद्दे को मजबूती देने के लिए फरवरी 2020 में विधानसभा में एक विधेयक पारी कर सभी बोर्ड स्कूलों में कक्षा एक से 10 तक मराठी भाषा को अनिवार्य विषय बना दिया था। इसी खूब तारीफ हुई थी।
व्यापारियों ने नए नियम पर क्या दी है प्रतिक्रिया?
पिछले महीने विधायिका द्वारा बिल को मंजूरी देने के बाद फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन (FRTWA) ने कहा था कि दुकानदारों को कोविड-19 महामारी में बहुत नुकसान हुआ था और अब साइनबोर्ड बदलने के आदेश से उन पर अतिरिक्त वित्तीय भार पड़ेगा। उन्होंने कहा कि साइन बोर्ड बदलने को मजबूर करने पर करोड़ों रुपये खर्च होंगे। प्रत्येक दुकानदार को 10,000-30,000 रुपये खर्च करने होंगे। इस एक अच्छा निर्णय नहीं है।