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    #NewsBytesExplainer: क्या है मंकी फीवर, जिससे कर्नाटक में 2 लोगों की मौत हुई?
    कर्नाटक में 2 लोगों की जान लेने वाला मंकी फीवर क्या है?

    #NewsBytesExplainer: क्या है मंकी फीवर, जिससे कर्नाटक में 2 लोगों की मौत हुई?

    लेखन महिमा
    संपादन मुकुल तोमर
    Feb 06, 2024
    07:12 pm

    क्या है खबर?

    कोरोना वायरस के बाद कर्नाटक में मंकी फीवर ने दस्तक दी है। इसके कारण उत्तर कन्नड़ जिले में 2 लोगों की मौत हो चुकी। इसके बाद से स्वास्थ्य विभाग सतर्क हो गया है।

    कर्नाटक के अलावा महाराष्ट्र और गोवा में भी इस वायरस के मामले सामने आए हैं।

    आइए जानते हैं कि मंकी फीवर क्या है, इसके क्या लक्षण हैं और इससे कैसे बचाव कर सकते हैं।

    मंकी फीवर

    मंकी फीवर क्या है?

    मंकी फीवर की शुरुआत क्यासानूर के जंगलों में हुई थी, इसलिए इसे क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज (KFD) के नाम से भी जाना जाता है।

    यह बीमारी KFD वायरस के कारण होती है, जो टिक-जनित एन्सेफलाइटिस (TBE) कॉम्प्लेक्स का सदस्य है।

    1957 में कर्नाटक के क्यासानूर जंगल में एक बीमार बंदर के अंदर यह सबसे पहले पाया गया था।

    बंदरों के शरीर पर पाए जाने वाले संक्रमित टिक (किलनी) यदि इंसानों को काट लें तो वह इस वायरस संक्रमित हो जाता है।

    प्रसार

    कैसे फैलता है मंकी फीवर?

    मंकी फीवर संक्रमित टिक के काटने से फैलता है। इसके अलावा संक्रमित बंदर के संपर्क में आने पर भी व्यक्ति KFD वायरस से संक्रमित हो सकता है।

    यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलती है।

    इंसान के अलावा गाय, बकरी और भेड़ जैसे बड़े जानवर भी KFD से संक्रमित हो सकते हैं, लेकिन इनका वायरस के प्रसार में योगदान नहीं होता है और ये इन जानवरों से इंसान में बेहद दुर्लभ ही फैलता है।

    खतरनाक

    कितना खतरनाक है मंकी फीवर?

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 2012 के बाद से हर साल मंकी फीवर के लगभग 500 मामले सामने आए हैं। इनमें से अधिकांश मामले दक्षिण भारत में सामने आते हैं।

    इससे प्रभावित 5-10 प्रतिशत लोगों में रक्तस्रावी लक्षण विकसित होते हैं और फिर उनकी मौत हो जाती है।

    यह जंगल में काम करने वाले आदिवासियों, जंगल और बागानों में रहने वाले लोगों और राज्य वन विभागों के लिए काम करने वाले मजदूरों में अधिक फैलता है।

    लक्षण

    मंकी फीवर के लक्षण क्या हैं?

    सेंट्रल कोस्टल एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, मंकी फीवर के लक्षण आम तौर पर वायरस से संक्रमित टिक के काटने के 3-8 दिन बाद दिखाई देते हैं।

    इनमें तेज बुखार, तेज सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, कमजोरी और मतली, उल्टी और दस्त जैसी पेट में गड़बड़ी आदि लक्षण दिखाई दे सकते हैं।

    ये कई तरह की न्यूरोलॉजिकल परेशानियों का कारण भी बन सकता है।

    गंभीर मामलों में ये एन्सेफलाइटिस, हेपेटाइटिस और अंगों के विफल होने का कारण भी बन सकता है।

    जानकारी

    क्या मंकी फीवर के खिलाफ कोई वैक्सीन है?

    मंकी फीवर के इलाज के लिए कोई विशेष एंटी-वायरल नहीं है, लेकिन इससे बचने के लिए एक वैक्सीन है, जिसे लगवाने से इस बीमारी का जोखिम कम हो जाता है। संक्रमित हो चुका मरीज जितनी जल्दी अस्पताल में इलाज करवाए, उसके लिए उतना बेहतर है।

    बचाव 

    इस बीमारी से कैसे बचाव किया जा सकता?

    वैक्सीन के अलावा मंकी फीवर को लेकर जागरूकता से ही इस बीमारी से बचा जा सकता है।

    KFD की रोकथाम तभी संभव है जब टिक के काटने से बचा जाए और संक्रमित जानवरों से संपर्क कम किया जाए।

    इसके अलावा DEET युक्त कीटनाशक का उपयोग करने, कपड़ों से खुद को पूरी तरह ढक कर रखने, टिक वाले स्थानों पर जाने से बचने और बाहरी गतिविधियों के बाद नियमित टिक जांच करवाने से इस बीमारी से बचा जा सकता है।

    कहर

    कर्नाटक में क्या स्थिति?

    न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, कर्नाटक में इस वायरस के कारण पहली मौत 18 साल की एक लड़की की हुई, जिसकी पहचान उजागर नहीं की गई है।

    दूसरी मौत उडुपी जिले में हुई, जहां चिक्कमगलुरु के श्रृंगेरी तालुक के 79 वर्षीय व्यक्ति ने एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली।

    राज्य में अब तक इसके लगभग 50 मामले सामने आए हैं, जिनमें से अधिकांश उत्तर कन्नड़ जिले के हैं और फिर शिवमोग्गा और चिक्कमगलुरु जिले के हैं।

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