CRPF के डिप्टी कमांडेंट हर्षपाल सिंह को कीर्ति चक्र, अब तक मिले पांच वीरता पदक
क्या है खबर?
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के डिप्टी कमांडेंट हर्षपाल सिंह को कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा शांतिकालिक वीरता पदक है।
हर्षपाल 2004 में CRPF में शामिल हुए थे, उसके बाद से उन्हें पांच वीरता पुरस्कार मिल चुके हैं।
स्वतंत्रता दिवस पर कीर्ति चक्र पाने वाले हर्षपाल और उनकी टीम ने जम्मू के झज्जर-कोटली इलाके में तीन आतंकियों को मार गिराया था।
आइये, उनकी इस वीरता की कहानी जानते हैं।
वीरता
हर्षपाल और उनकी टीम ने ढेर किए थे तीन आतंकी
यह पिछले साल सितंबर की बात है। हर्षपाल ने बताया, "हम 24 घंटे से ज्यादा समय से उनको (आतंकियों) को ढूंढ रहे थे। पहले दिन वो बचकर निकल गए थे। यह एक नजदीकी लड़ाई थी। मेरी टीम और मैं आतंकियों के ठिकाने से केवल 15 मीटर दूर थे।"
इस ऑपरेशन में तीनों आतंकी मारे गए थे। जांच में पता चला कि ये आतंकी भारतीय सेना की नॉर्दन कमांड के मुख्यालय को निशाना बनाने की फिराक में थे।
वीरता पदक
11 साल पहले मिला था पहला वीरता पुरस्कार
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, हर्षपाल सिंह को वीरता के लिए तीन पुलिस मेडल और झारखंड मुख्यमंत्री का पुलिस मेडल भी मिल चुका है।
हर्षपाल के बारे में बात करते हुए CRPF के महानिदेशक आरआर भटनागर ने बताया, "ऐसा बहुत कम होता है। हमें उन पर गर्व है। वो इस सम्मान के हकदार हैं।"
फिलहाल दंतेवाड़ा में तैनात हर्षपाल को उनका पहला वीरता पदक 31 मई 2008 को मिला था। क्या है उसकी कहानी?
ऑपरेशन
हर्षपाल ने ऐसे किया उस ऑपरेशन को याद
हर्षपाल ने बताया, "यह झारखंड के कुंती जिले के चुंदारमांडु की घटना है। हमारे पास माओवादियों के बड़े नेताओं की बैठक की खुफिया जानकारी थी। बड़ी टीम ले जाने से माओवादियों को इसकी भनक लग सकती थी।"
इसलिए हर्षपाल ने अपने साथ कुछ जवानों को लिया और बैठक पर हमला बोल दिया।
उन्होंने बताया कि उनकी टीम कम पड़ रही थी, लेकिन कुछ घंटे बाद जब एनकाउंटर बंद हुआ तो देखा की पांच माओवादी नेता मारे गए थे।
ऑपरेशन
2 लाख के ईनामी कमांडर को किया था ढेर
इसके बाद 2014 में हर्षपाल ने ऐसे ही एक जोखिम भरे ऑपरेशन में एक बड़े माओवादी कमांडर को ढेर किया था।
उन्होंने बताया, "हमें खबर मिली कि एक माओवादियों का एक कमांडर लोगों को भर्ती कर रहा है। रात में हम नजदीकी जंगल से होकर गांव में पहुंचे। जैसे ही हम वहां पहुंचे, सामने से गोलीबारी होने लगी। हमने गोलीबारी से खुद को बचाया और दो लाख के ईनामी माओवादी कमांडर के ठिकाने के पास पहुंचकर उसे ढेर कर दिया।"
जानकारी
2015 में मिला मुख्यमंत्री पुलिस मेडल
इसके बाद अगस्त, 2015 में उन्होंने उसी इलाके में माओवादियों के एक जोनल कमांडर को ढेर किया और उसके साथी को गिरफ्तार कर लिया। इसी साल उन्हें झारखंड के मुख्यमंत्री पुलिस मेडल से सम्मानित किया गया था।
अभियान
हर कदम की योजना बनाकर चलते हैं माओवादी- हर्षपाल
हर्षपाल ने जम्मू-कश्मीर और झारखंड दोनों जगहों पर ड्यूटी की है।
जब उनसे पूछा गया कि जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करने वाले आतंकियों और झारखंड के माओवादियों में क्या अंतर है तो उन्होंने बताया कि माओवादी कमजोर हो गए हैं, लेकिन डटे हुए हैं। वो हर कदम की योजना बनाते हैं।
इनकी तुलना में जम्मू-कश्मीर में आने वाले आतंकियों के पास ज्यादा हथियार होते हैं और वो ज्यादा प्रेरित होते हैं।