बच्चों की अश्लील फिल्में देखने वाले आरोपी को कर्नाटक हाई कोर्ट ने बताया बेगुनाह, आखिर क्यों?
बच्चों की अश्लील फिल्में देखना अपराध है या नहीं, इसको लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के बाद सोशल मीडिया पर चर्चा शुरू हो गई है। दरअसल, बच्चों की अश्लील फिल्म देखने के मामले में एक आरोपी को कर्नाटक हाई कोर्ट ने बेगुनाह बताते हुए राहत दी है। न्यायमूर्ति एन नागप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली एकल पीठ ने कहा कि इंटरनेट के माध्यम से बच्चों की अश्लील फिल्में देखना अपराध नहीं है। उन्होंने मामले को रद्द कर दिया है।
क्या है पूरा मामला?
कोर्ट होसकोटे के इनायतुल्ला एन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने उनके खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने की मांग की थी। ETV भारत के मुताबिक, इनायतुल्ला मार्च 2023 को दोपहर में अपने मोबाइल फोन पर इंटरनेट के जरिए बच्चों की अश्लील फिल्म देख रहे थे। तभी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) को इसकी जानकारी केंद्र सरकार के पोर्टल से मिली। इसके बाद बेंगलुरु के अपराध जांच विभाग (CID) ने बेंगलुरु साइबर अपराध ब्यूरो को रिपोर्ट भेजी।
बेंगलुरु साइबर अपराध पुलिस ने दर्ज किया था मामला
रिपोर्ट की पुष्टि की गई तो अश्लील फिल्म देखने वाला इनायतुल्ला पाया गया। 2 महीने बाद मई, 2023 में इनायतुल्ला के खिलाफ बेंगलुरु साइबर अपराध पुलिस ने सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम की धारा 67B के तहत मामला दर्ज किया। इसी मामले को रद्द करने के लिए इनायतुल्ला हाई कोर्ट पहुंचे थे। इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में कहा कि याचिकाकर्ता बच्चों की अश्लील फिल्में देखने का आदी है, लेकिन उसने इसका निर्माण या साझा नहीं किया है।
कोर्ट ने किस आधार पर दी आरोपी इनायतुल्ला को राहत?
लाइव लॉ के मुताबिक, पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप यह है कि उसने एक अश्लील वेबसाइट देखी है, जबकि कोर्ट के विचार में, यह सामग्री का निर्माण या उसको प्रसारित करना नहीं माना जाएगा। पीठ ने IT अधिनियम की धारा 67B का हवाला देते हुए कहा कि इसके तहत सिर्फ उन्हीं व्यक्तियों को दंडित किया जा सकता है जो बच्चों के अश्लील वीडियो तैयार करें और उनको साझा करें।
वीडियो देखना कोई अपराध नहीं?
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता एक अश्लील फिल्मों का आदी हो सकता है, जिसने पोर्नोग्राफिक सामग्री देखी है, लेकिन याचिकाकर्ता के खिलाफ इससे परे कुछ भी आरोपित नहीं है। पीठ ने कहा कि अगर तथ्यों को धारा 67B को लागू करने के लिए आवश्यक तत्वों के खिलाफ खड़ा किया जाता है, तो आगे की कार्यवाही जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इसके साथ ही कोर्ट ने मामला रद्द कर दिया।