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    क्या औद्योगिक ऑक्सीजन के उपयोग से हो रही ब्लैक फंगस बीमारी, जांच करेगी कर्नाटक सरकार

    क्या औद्योगिक ऑक्सीजन के उपयोग से हो रही ब्लैक फंगस बीमारी, जांच करेगी कर्नाटक सरकार

    लेखन भारत शर्मा
    May 24, 2021
    04:10 pm

    क्या है खबर?

    देश में कोरोना से ठीक हुए लोगों पर म्यूकरमायकोसिस यानी ब्लैक फंगस का प्रकोप बढ़ता जा रहा है।

    देशभर में अब तक इसके 9,000 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और 212 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। चिकित्सा विशेषज्ञ अभी इसका स्पष्ट कारण नहीं ढूंढ पाए हैं।

    इसी बीच कर्नाटक सरकार ने बढ़ते मामलों को देखते हुए इसके पीछे औद्योगिक ऑक्सीजन के उपयोग सहित अन्य कारकों को लेकर विशेषज्ञों से अध्ययन कराने का निर्णय किया है।

    जानकारी

    क्या है म्यूकरमायकोसिस या ब्लैक फंगस?

    म्यूकरमायकोसिस या ब्लैक फंगस एक बेहद दुर्लभ संक्रमण है। यह म्यूकर फंगस के कारण होता है जो मिट्टी, पौधों, खाद, सड़े हुए फल और सब्ज़ियों में पनपता है। यह आम तौर पर उन लोगों को प्रभावित करते हैं जो लंबे समय दवा ले रहे हैं और जिनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है।

    AIIMS के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि कोरोना वायरस के मरीजों खासकर मधुमेह रोगियों में स्टेरॉयड का अधिक उपयोग इस संक्रमण का प्रमुख कारण है।

    लक्षण

    क्या है ब्लैक फंगस के प्रमुख लक्षण?

    विशेषज्ञों के अुनसार ब्लैक फंगस से पीड़ित व्यक्ति को चेहरे के एक हिस्से में सूजन, सिरदर्द, नाक में संक्रमण, नाक या मुंह के ऊपरी हिस्से पर काले घाव, बुखार, खांसी, छाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी, आंखों में सूजन और दर्द, पलकों का गिरना, धुंधला दिखना, अंधापन जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

    कोरोना संक्रमण से ठीक होने वाले मरीजों में यह ठीक होने के दो-तीन दिन बाद या ठीक होने के दौरान भी नजर आ सकते हैं।

    जानकारी

    कर्नाटक में सामने आए ब्लैक फंगस के 700 से अधिक मामले

    बता दें कि कर्नाटक में अब तक ब्लैक फंगस के 700 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। बढ़ते मामलों ने सरकार की चिंता को बढ़ा दिया है। ऐसे में सरकार इसके मूल कारणों को जानने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

    बैठक

    उपमुख्यमंत्री ने की उपचार प्रोटोकॉल समिति के साथ बैठक

    राज्य में बढ़ते मामलों को देखते हुए उपमुख्यमंत्री और राज्य कोरोना टास्क फोर्स के अध्यक्ष सीएन अश्वथ नारायण ने रविवार को उपचार प्रोटोकॉल समिति के साथ बैठक की और ब्लैक फंगस के कारणों पर चर्चा की।

    इसमें मणिपाल अस्पताल के मस्तिष्क सर्जन डॉ संपत चंद्र प्रसाद राव ने कहा कि ब्लैक फंगस में इजाफे का संभावित कारण कमजोर गुणवत्ता वाले सिलेंडर, पाइपिंग सिस्टम और औद्योगिक ऑक्सीजन का उपयोग भी हो सकते हैं।

    सवाल

    औद्योगिक ऑक्सीजन की गुणवत्ता पर उठाया सवाल

    बैठक में डॉ संपत ने कहा कि अस्पतालों में ऑक्सीजन की मांग बढ़ने से बड़ी मात्रा में औद्योगिक ऑक्सीजन की खरीद की जा रही है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि उद्योगों से आपूर्ति की जाने वाली ऑक्सीजन मेडिकल ऑक्सीजन की गुणवत्ता से मेल खाती है या नहीं।

    उन्होंने कहा कि इसकी गुणवत्ता में फर्क होने से भी ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ सकता है। इसी तरह मरीजों के साधारण पानी के उपयोग से भी खतरा बढ़ता है।

    आदेश

    उपमुख्यमंत्री ने दिए ब्लैक फंगस के संभावित कारणों की जांच के आदेश

    बैठक में डॉ संपत सहित अन्य विशेषज्ञों द्वारा कई तहर की संभावनाएं जताने के बाद उपमुख्यमंत्री अश्वथ नारायण ने विशेषज्ञों को यह जांच करने के आदेश दिए कि क्या औद्योगिक ऑक्सीजन का बढ़ता उपयोग, कमजोर गुणवत्ता वाले सिलेंडर, पाइपिंग सिस्टम और साधारण पानी का उपयोग ब्लैक फंगस के कारणों में शामिल है?

    इसके अलावा उन्होंने विशेषज्ञों को ब्लैक फंगस से बचाव के उपाय सहित अन्य डाटा का भी विश्लेषण करने के आदेश दिए हैं।

    अन्य कारण

    विशेषज्ञों ने जिंक के उपयोग को बताया ब्लैक फंगस का कारण

    बता दें कि ब्लैंक फंगस के पुख्ता कारण अभी तक सामने नहीं आए हैं। हाल ही में AIIMS दिल्ली के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने स्टेरॉयड का अधिक उपयोग और अधिक शुगर को इसका प्रमुख कारण बताया था।

    इसके उलट इंडियन मेडिकल एसोसिशन (IMA) के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर राजीव जयदेवन ने कहा था कि शरीर में जिंक और आयरन जैसी धातु की मौजूदगी ब्लैक फंगस के लिए उपयुक्त वातावरण उत्पन्न करती है। उन्होंने इसकी जांच की मांग की थी।

    अध्ययन

    ब्लैक फंगस को लेकर किए गए अध्ययन में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य

    ब्लैक फंगस को लेकर मध्य प्रदेश के महाराजा यशवंतराव अस्पताल के डॉ वीपी पांडे द्वारा 210 मरीजों पर किए गए अध्ययन में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।

    इसके अनुसार सभी मरीजों को एंटीबायोटिक्स (एज़िथ्रोमाइसिन, डॉक्सीसाइक्लिन और कार्बापेनेम्स) दिया गया था और इसके बाद ही वो ब्लैक फंगस का शिकार हुए।

    इसी तरह 14 प्रतिशत मरीजों ने स्टेरॉयड नहीं लिया था और 21 प्रतिशत को शुगर नहीं थी। ऐसे में अध्ययन पूर्व के दावों पर सवाल खड़े करता है।

    जानकारी

    ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे 52 प्रतिशत मरीज

    अध्ययन में यह भी सामने आया कि ब्लैक फंगस वाले कुल 210 मरीजों में से 52 प्रतिशत मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे। ऐसे में इस बात की संभावना अधिक है कि ऑक्सीजन के अधिक उपयोग से ब्लैक फंगस का खतरा अधिक बढ़ा है।

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