LOADING...
CJI रमन्ना की मीडिया पर तल्ख टिप्पणियां, कही ये बड़ी बातें
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमन्ना

CJI रमन्ना की मीडिया पर तल्ख टिप्पणियां, कही ये बड़ी बातें

Jul 23, 2022
02:56 pm

क्या है खबर?

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमन्ना ने शनिवार को मीडिया और सोशल मीडिया पर तल्ख टिप्पणियां की हैं। रांची में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए CJI ने कहा कि मीडिया कंगारू कोर्ट चला रहा है। इस कारण कई बार अनुभवी जजों के लिए भी सही और गलत का फैसला मुश्किल हो जाता है। सोशल मीडिया और टीवी मीडिया की बहसों में चल रहे कंगारू कोर्ट देश को पीछे की तरफ ले जा रहे हैं।

बयान

सोशल मीडिया पर चल रहे जजों के खिलाफ अभियान- CJI

CJI रमन्ना ने कहा कि सोशल मीडिया पर जजों के खिलाफ अभियान चलाए जा रहे हैं। जज उस पर त्वरित प्रतिक्रिया नहीं दे सकते, लेकिन इसे लाचारी या कमजोरी नहीं समझा जाना चाहिए। मीडिया के नए साधनों में बहुत योग्यता है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि ये सही और गलत, अच्छे और बुरे और असली और नकली के बीच के फर्क को नहीं पहचान पा रहा है। मीडिया ट्रायल मामलों में निर्धारण में मदद नहीं कर सकता।

बयान

लोकतंत्र को कमजोर कर रहे मीडिया के पक्षपातपूर्ण विचार- CJI

अपने संबोधन के दौरान CJI रमन्ना ने कहा कि गलत जानकारी और एजेंडे से चलने वाली बहस लोकतंत्र के लिए हानिकारक होती है। मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे पक्षपातपूर्ण विचार लोकतंत्र को कमजोर कर और सिस्टम को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस प्रक्रिया में न्याय देने का काम बुरी तरह प्रभावित होता है। उन्होंने आगे कहा कि अपनी जिम्मेदारी से भागकर लोकतंत्र को दो कदम पीछे ले जा रहे हैं।

टिप्पणी

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कोई जवाबदेही नहीं- CJI

CJI ने कहा कि प्रिंट मीडिया में अभी कुछ हद तक जवाबदेही है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में यह शून्य है और सोशल मीडिया का हाल और बुरा है। इस मौके पर उन्होंने मीडिया से सेल्फ रेगुलेशन की मांग करते हुए कहा कि यह मीडिया के लिए सबसे अच्छा है। नुपुर शर्मा मामले में जजों की टिप्पणियों पर हुई प्रतिक्रिया की पृष्ठभूमि को देखते हुए CJI का यह बयान बेहद मायने रखता है।

जानकारी

जजों की सुरक्षा को लेकर भी की टिप्पणी

CJI रमन्ना ने कहा कि मजबूत लोकतंत्र के लिए न्यायपालिका का मजबूत होना और जजों का सशक्त होना जरूरी है। इन दिनों जजों पर हमले बढ़ रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि नेताओं, नौकरशाहों, पुलिस अधिकारियों और दूसरे जन प्रतिनिधियों को रिटायरमेंट के बाद भी उनके काम की संवेदनशीलता को देखते हुए सुरक्षा मिलती है, लेकिन दुखद है कि जजों के लिए ऐसी सुरक्षा की व्यवस्था नहीं है। जज और आरोपी एक ही समाज का हिस्सा हैं।