जम्मू-कश्मीर: नई डोमिसाइल नीति का ऐलान, 15 साल रहने वाला माना जाएगा निवासी
क्या है खबर?
कम से कम 15 सालों से जम्मू-कश्मीर में रह रहे लोग वहां के निवासी माने जाएंगे। केंद्र सरकार ने देश के सबसे नए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए मंगलवार को नई डोमिसाइल नीति का ऐलान किया है।
इसके तहत जिन विद्यार्थियों ने सात साल तक जम्मू-कश्मीर में पढ़ाई की है, 10वीं, 12वीं की परीक्षा वहां के संस्थान से पास की है, वो भी जम्मू-कश्मीर के डोमिसाइल के हकदार होंगे। उन्हें वहां सरकारी नौकरी मिल सकेंगी।
जम्मू-कश्मीर
5 अगस्त को सरकार ने निरस्त किया था विशेष राज्य का दर्जा
पिछले साल 5 अगस्त से पहले अनुच्छेद 35A (जिसे अब खत्म कर दिया गया है) के तहत जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पास राज्य के निवासी को परिभाषित करने का अधिकार था। केवल यहां के निवासियों को ही राज्य में जमीन खरीदने और सरकारी नौकरी पाने का हक था।
5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला किया था।
गजट
गजट में लिखी गई हैं ये शर्तें
सरकार की तरफ से जारी गजट में लिखा गया है कि 10 साल तक जम्मू-कश्मीर में सेवारत रहे केंद्र सरकार के कर्मचारी, अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारी, PSU और स्वायत्त संस्थाओं के अधिकारी, सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंक, संवैधानिक संस्थाएं, केंद्रीय यूनिवर्सिटी और केंद्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त रिसर्च संस्थानों के कर्मचारी भी निवासी बनने के योग्य होंगे।
साथ ही ऊपरी नियमों को पूरा करने वालों के बच्चे भी जम्मू-कश्मीर के निवासी बन सकेंगे।
अधिकार
तहसीलदार जारी कर सकेगा डोमिसाइल सर्टिफिकेट
इस परिभाषा में शरणार्थी के तौर पर पंजीकृत लोग भी शामिल होंगे। इसी तरह जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के बच्चे, जो नौकरी, व्यापार या अन्य पेशेवर कारणों के कारण दूसरे राज्योें में रह रहे हैं, लेकिन उनके अभिभावक नियम और शर्तें पूरी करते हैं तो वे भी जम्मू-कश्मीर के डोमिसाइल कहलाएं जाएंगे।
नए प्रावधान में तहसीलदार को डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी करने के लिए अधिकृत किया गया है।
इसी के साथ सरकार ने जम्मू-कश्मीर सिविल सर्विस कानून भी निरस्त कर दिया है।
पुरानी स्थिति
पहले क्या प्रावधान था?
पिछले साल अगस्त से पहले तक अनुच्छेद 35A के तहत विधानसभा के पास 'स्थायी निवासी' की परिभाषा तय करने का अधिकार था।
अस्थायी नागरिक जम्मू-कश्मीर में न स्थायी रूप से बस सकते थे और न ही वहां संपत्ति खरीद सकते थे। उन्हें कश्मीर में सरकारी नौकरी और छात्रवृत्ति भी नहीं मिलती। 1954 में इसे संविधान में जोड़ा गया था।
इसके तहत डिप्टी कमिश्नर डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी करने के लिए अधिकृत होता था।