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CBI अधिकारियों की लापरवाही से उन्नाव रेप पीड़िता को हुआ नुकसान- रिपोर्ट
CBI अधिकारियों की लापरवाही से उन्नाव रेप पीड़िता को हुआ नुकसान

CBI अधिकारियों की लापरवाही से उन्नाव रेप पीड़िता को हुआ नुकसान- रिपोर्ट

लेखन गजेंद्र
Dec 25, 2025
01:02 pm

क्या है खबर?

उत्तर प्रदेश में उन्नाव बलात्कार मामले के दोषी भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की जमानत और उम्रकैद निलंबित होने के बाद देश में बवाल मचा हुआ है। इस बीच न्यूज18 ने दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के हवाले से अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने काफी लापरवाही बरती, जिसका खामियाजा पीड़िता को भुगतना पड़ रहा है। पीड़िता और उनकी मां भी CBI पर सेंगर के समर्थन का आरोप लगा चुकी हैं।

रिपोर्ट

इस आधार पर सेंगर को मिला फायदा

रिपोर्ट के मुताबिक, CBI ने हाई कोर्ट के सामने स्वीकार किया कि सुप्रीम कोर्ट ने एक पूर्व मामले में फैसला सुनाया था कि धारा 21 IPC के तहत परिभाषित लोकसेवक विधायक नहीं है। इसी का फायदा सेंगर को मिला। हाई कोर्ट ने सेंगर के खिलाफ POCSO की धारा 5(सी) और 6 को रद्द कर कहा कि विधायक लोकसेवक नहीं है, इसलिए इन प्रावधानों के तहत आजीवन कारावास नहीं हो सकती। यहां CBI के अनुरोध का कोई लाभ नहीं हुआ।

समर्थन

CBI ने पीड़िता का समर्थन नहीं किया

हाई कोर्ट ने कहा कि जब पीड़िता ने 2019 में सेंगर पर IPC के तहत मुकदमा चलाने की मांग की और उसे बलात्कार के समय लोकसेवक बताया, तो CBI ने समर्थन नहीं किया। तब CBI ने कहा था कि पीड़िता के नए आरोप "लागू नहीं होते" और निचली अदालत ने याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने फैसले में कहा, "निचली अदालत द्वारा अगस्त 2019 को पारित आदेश को पीड़िता ने चुनौती नहीं दी और न CBI ने समर्थन किया।

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जांच

POCSO की धारा से बरी हुए सेंगर

रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़िता ने चाहा कि सेंगर को IPC धारा 376(2)(F) और (K) के तहत दोषी ठहराया जाए, न कि IPC धारा 376(2) और POCSO धारा 5-6 के तहत। कोर्ट ने अब सेंगर को POCSO की धारा 5-6 के तहत लगे आरोपों से बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि सेंगर पर केवल POCSO की धारा 3 के तहत मुकदमा चल सकता है, जिसकी अधिकतम सजा 7 साल है और सेंगर 7 साल जेल में बिता चुके हैं।

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जांच

CBI के अधिकारियों पर निष्पक्ष जांच न करने का आरोप

रिपोर्ट में कहा गया कि हाई कोर्ट के फैसले में निचली अदालत की वह टिप्पणी भी है, जिसमें इसे 'अपरिहार्य निष्कर्ष' बताया और कहा कि CBI ने मामले की निष्पक्ष जांच नहीं की, जिससे पीड़िता को नुकसान हुआ। पीड़िता के परिवार ने भी हाई कोर्ट को बताया कि CBI जांच में "निष्पक्षता और तटस्थता सुनिश्चित नहीं की गई"। परिवार ने हाई कोर्ट को बताया कि CBI अधिकारी ने मिलीभगत कर पीड़िता की उम्र से जुड़े सबूत छिपाने में मदद की।

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