दिल्ली: 200 कोरोना संक्रमितों को श्मशान ले जाने वाले एंबुलेंस ड्राइवर की वायरस से मौत
क्या है खबर?
कुछ लोग कोरोना वायरस महामारी के दौरान किस हद तक बलिदान दे रहे हैं, शनिवार को इसका एक नमूना देखने को मिला। पिछले छह महीनों में कोरोना के संक्रमण से मरने वाले लगभग 200 मरीजों के शवों को श्मशान घाट पहुंचाने वाले एंबुलेंस ड्राइवर आरिफ खान की कल खुद वायरस के संक्रमण से मौत हो गई।
3 अक्टूबर को संक्रमित पाए गए आरिफ की हिंदू राव अस्पताल में भर्ती किए जाने के एक दिन के अंदर ही मौत हो गई।
कार्य
शहीद भगत सिंह सेवा दल के साथ काम करते थे आरिफ
उत्तर-पूर्व दिल्ली के सीलमपुर के रहने वाले 48 वर्षीय आरिफ दिल्ली-NCR में फ्री आपातकालीन एंबुलेंस सेवा प्रदान करने वाले शहीद भगत सिंह सेवा दल के साथ काम करते थे।
मार्च में कोरोना महामारी की शुरूआत से ही वह कोरोना संक्रमितों को अस्पताल ले जाने और संक्रमण से मरने वाले मरीजों को श्मशान घाट और कब्रिस्तान ले जाने का कार्य कर रहे थे।
इस दौरान वे घर पर बेहद कम आते थे और ज्यादातर रात अपनी एंबुलेंस में ही सोते थे।
मदद
जरूरत पड़ने पर लोगों के अंतिम संस्कार के लिए पैसे भी देते थे आरिफ
आरिफ न केवल कोरोना से मरे लोगों को श्मशान घाट तक पहुंचाते थे, बल्कि जरूरत पड़ने पर उनके अंतिम संस्कार में भी मदद करते थे।
सेवा दल के संस्थापक जितेंद्र शंटी ने कहा, "वो मुस्लिम था पर हिंदुओं के भी दाह-संस्कार कराता था। वह अपने काम को लेकर बहुत समर्पित था... 30 सितंबर को एक अस्पताल ने मरीज का शव देने से इनकार कर दिया क्योंकि उसके परिवार के पास बिल देने के पैसे नहीं थे। आरिफ ने मदद की।"
बयान
आरिफ को पिछले कुछ दिन से हो रही थी सांस लेने में दिक्कत
जब शंटी और उनका परिवार कोरोना से संक्रमित हुआ, तब भी आरिफ ने उनकी काफी मदद की और इसलिए जब आरिफ बीमार हुए तो शंटी ने भी उनकी मदद करने की कोशिश, लेकिन ये असफल रही।
उन्होंने कहा, "आरिफ को कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या नहीं थी, लेकिन उसे कुछ दिन से सांस देने में दिक्कत हो रही थी।"
आरिफ के अन्य सहकर्मियों ने भी उनके व्यवहार की तारीफ करते हुए कहा कि वे सच में लोगों की चिंता करते थे।
बयान
थोड़े समय के लिए घर आते थे आरिफ
आरिफ के 22 वर्षीय बेटे आदिल ने कहा कि 21 मार्च के बाद आरिफ कभी-कभी ही थोड़े समय के लिए घर आते थे।
उन्होंने कहा, "हम तभी मिलते थे जब वह घर पर कपड़े आदि कुछ लेने आते थे.... मैं कभी-कभी उनके पास जाकर उनके हालचाल पूछता था। हम उनके बारे में हमेशा चिंतित रहते थे। लेकिन उन्होंने कभी कोविड के बारे में चिंता नहीं की और वे केवल अपना काम अच्छी तरह से करना चाहते थे।"
आर्थिक स्थिति
परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे आरिफ
16,000 रुपये प्रति महीने कमाने वाले आरिफ अपने परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य थे और उनकी मौत परिवार पर बड़ा संकट लेकर आई है। परिवार का घर के किराया ही 9,000 रुपये है।
आदिल ने कहा कि उनका भाई और वे कभी-कभी नौकरी करते थे, लेकिन हालिया समय में उन्हें काम नहीं मिला है। आरिफ के छोटे बेटे आसिफ ने कहा, "मुझे उन्हें अलविदा कहने का भी मौका नहीं मिला... हम उनके बिना जिंदा कैसे रहेगे?"