करगिल विजय दिवस: भारत-पाकिस्तान युद्ध में कितना गोला बारूद इस्तेमाल हुआ, कैसे थे हालात?
पूरा देश आज (26 जुलाई) को 25वां 'करगिल विजय दिवस' मना रहा है। दरअसल, 3 मई, 1999 से शुरू हुआ युद्ध 26 जुलाई, 1999 को भारत की जीत के साथ समाप्त हुआ था। उसके बाद से हर साल 26 जुलाई का दिन 'करगिल विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है। यह दिन देश की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले भारतीय सैनिकों को याद करने का दिन है। आइए युद्ध से जुड़े प्रमुख तथ्यों पर नजर डालते हैं।
कैसे हुई थी युद्ध की शुरुआत?
करगिल युद्ध जम्मू-कश्मीर के करगिल जिले में नियंत्रण रेखा (LoC) पर हुआ था। 3 मई, 1999 को पाकिस्तान ने इस युद्ध की शुरुआत की थी। उस दौरान घुसपैठियों के रूप में पाकिस्तानी सेना के करीब 5,000 सैनिकों ने करगिल के चट्टानी पहाड़ी क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। 10 मई को भारतीय सेना को घुसपैठ का पता लगा और फिर 26 मई को भारतीय वायुसेना ने इसके खिलाफ 'ऑपरेशन विजय' के नाम से अपना अभियान शुरू कर दिया था।
क्या था पाकिस्तान की घुसपैठ का उद्देश्य?
करगिल में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ का मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच संपर्क को तोड़ने के साथ ही सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय सेना को उसकी मौजूदा स्थिति से पीछे हटाना था। पाकिस्तान का मानना था कि इस क्षेत्र में किसी भी तरह का तनाव पैदा करने से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी, जिससे इसका त्वरित समाधान हो सकेगा। पाकिस्तान ने अपने इस नापाक अभियान को 'ऑपरेशन बद्र' नाम दिया था।
विभाजन के समय लद्दाख का हिस्सा था करगिल
बता दें कि करगिल 1947 में भारत के विभाजन से पहले लद्दाख के बाल्टिस्तान जिले का हिस्सा था और प्रथम कश्मीर युद्ध (1947-1948) के बाद नियंत्रण रेखा द्वारा अलग कर दिया गया था। उसके बाद से पाकिस्तान की इस क्षेत्र पर नजर थी।
कैसे थे युद्ध के हालात?
करगिल युद्ध में हालत बेहद खराब थे। इसका कारण है कि करगिल शहर 2,676 मीटर (8,780 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। इसी तरह द्रास 3,300 मीटर (10,800 फीट) की ऊंचाई पर है और आसपास की चोटियां 4,800 मीटर (16,000 फीट) से 5,500 मीटर (18,000 फीट) की ऊंचाई तक हैं। उस दौरान यहां का तापमान भी -30 डिग्री सेल्सियस तक था। ऐसे में भारतीय सैनिकों को घुसपैठियों के साथ प्रकृति के कोप का भी सामना करना पड़ा था।
भारत ने युद्ध में ऐसे हासिल की थी फतह
26 मई को अभियान शुरू करने के बाद भारतीय सेना ने 13 जून को द्रास के टोलोलोंग पर कब्जा हासिल कर लिया था और 4 जुलाई को 11 घंटे की लड़ाई के बाद 8,497 मीटर की ऊंचाई पर स्थिति 'टाइगर हिल' पर कब्जा जमा लिया था। इसी तरह 5 जुलाई को द्रास और 7 जुलाई को बाटलिक पर सफलता हासिल कर ली। 14 जुलाई को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऑपरेशन विजय की सफलता की घोषणा कर दी थी।
युद्ध में शहीद हुए थे 527 भारतीय सैनिक
3 महीने तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना के कुल 527 अधिकारी और जवान शहीद हो गए थे, वहीं 1,300 से अधिक सैनिक घायल हुए थे। कैप्टन मनोज कुमार पांडे, कैप्टन विक्रम बत्रा और कैप्टन कीशिंग क्लिफोर्ड नोंग्रुम जैसे सैनिकों को सरकार ने मरणोपरांत परमवीर चक्र और महावीर चक्र से सम्मानित भी किया था। पाकिस्तान युद्ध में अपने मरने वाले जवानों की संख्या 453 बताता है, लेकिन यह आंकड़ा 4,000 तक बताया जाता है।
भारत ने युद्ध में इस्तेमाल की थी यह युद्धक सामग्री
जमीनी हमले के लिए भारतीय वायुसेना ने मिग-21, मिग-23, मिग-27, जगुआर और मिराज-2000 विमानों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया था। इसी तरह युद्ध में करीब 2.50 लाख गोले, बम और रॉकेट दागे गए थे। 300 तोप, मोर्टार और MBRL से प्रतिदिन लगभग 5,000 तोपों के गोले, मोर्टार बम और रॉकेट दागे गए थे। टाइगर हिल के लिए युद्ध में 11 घंटों में 9,000 गोले दागे गए थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार इतनी बमबारी की गई थी।
सरकार ने की 26 जुलाई को 'करगिल विजय दिवस' मनाने की घोषणा
सरकार ने 26 जुलाई, 1999 को आधिकारिक रूप से युद्ध के समापन की घोषणा करते हुए हर साल इस दिन को 'करगिल विजय दिवस' के रूप में मनाने का ऐलान किया था। इसके अलावा करगिल में शहीदों की याद में 'वॉर मेमोरियल' बनाने की भी घोषणा हुई थी। उसके बाद हर साल इस दिन को करगिल विजय के उत्सव और शहीदों की याद में मनाया जाता है। सेना और शीर्ष नेता शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने दी पाकिस्तान को चेतावनी
करगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ पर लद्दाख के द्रास पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करगिल युद्ध में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देने के बाद अपने भाषण में पाकिस्तान को चेतावनी दी। उन्होंने कहा, "हमने करगिल में केवल युद्ध नहीं जीता था, बल्कि सत्य, संयम और सामर्थ का अद्भुत परिचय दिया था। भारत उस समय शांति का प्रयास कर रहा था, बदले में पाकिस्तान ने फिर अपना अविश्वासिक चेहरा दिखाया, लेकिन सत्य के सामने असत्य और आतंक की हार हुई।"