#NewsBytesExplainer: क्या होती हैं A-ग्रेड या B-ग्रेड फिल्में, कैसे होती है ग्रेडिंग? जानिए जरूरी बातें
इस डिजिटल दौर में हर कोई सिनेमा में मिलने वाली ग्रेडिंग से वाकिफ होता है। आपने बेशक फिल्मों में A-ग्रेड, B-ग्रेड या C-ग्रेड शब्द सुने होंगे। आपको इनके बारे में जानकारी भी होगी, लेकिन आज आपको फिल्मों को मिलने वाली ग्रेडिंग के बारे में विस्तार से बताने वाले हैं। इससे जुड़ीं कुछ ऐसी जानकारियां हैं, जिनसे शायद आप अनजान होंगे। किन मापदंडों के आधार पर फिल्मों को ग्रेड में बांटा जाता है? आइए समझते हैं।
A-ग्रेड
A-ग्रेड बड़े बजट की फिल्माें को मिलता है, जिसमें बड़े कलाकार काम करते हैं। ऐसी फिल्मों के सेट भी भव्य होते हैं और इन्हें बनाने में अच्छा-खासा पैसा खर्च होता है। आपने कई बार बॉलीवुड में A-लिस्ट कलाकार शब्द सुना होगा। इस श्रेणी में वो ही कलाकार शुमार होते हैं, जो नामचीन होते हैं। कपड़ों से लेकर तकनीक तक, सबकुछ उच्च दर्जे का होता है। अधिकतर A-ग्रेड की फिल्में परिवार के साथ बैठकर देखी जा सकती हैं।
B-ग्रेड
विनोद तलवार बॉलीवुड में B-ग्रेड फिल्मों के जनक हैं। असल में उन्हीं की फिल्म 'रात के अंधेरे में' से इंडस्ट्री में B-ग्रेड फिल्मों का दौर शुरू हुआ था, जो 1987 में रिलीज हुई थी। B-ग्रेड फिल्मों में कलाकर ज्यादा चर्चित नहीं होते। इन फिल्मों में अश्लीलता परोसी जाती है। हर साल करीब 100 B-ग्रेड फिल्में आती हैं। इनका औसत बजट 40 लाख रुपये के आसपास होता है और अवधि 70 से 80 मिनट की होती है।
कैटरीना ने की बतौर B-ग्रेड अभिनेत्री अपनी शुरुआत
कैटरीना कैफ ने तो अपने करियर की शुरुआत ही B-ग्रेड फिल्म 'बूम' से की थी। फिल्म में उनके कई आपत्तिजनक दृश्य भी थे। हालांकि, उस वक्त इस फिल्म में अमिताभ बच्चन की मौजूदगी ने सबकाे चौंका दिया था। दरअसल, वह अपने करियर की दूसरी पारी में थे और अलग-अलग किरदार निभा रहे थे, लेकिन 'बूम' के बाद उनके करियर पर भी B-ग्रेड फिल्मों में काम करने का दाग लग गया।
C-ग्रेड
इस तरह की फिल्मों का बजट बहुत ही कम होता है। इतना कम कि कभी-कभार कलाकारों की कमी पड़ने पर फिल्म के किसी टेक्निशियन या सेट पर काम करने वाले स्पॉट बॉय को ही एक्टर बना दिया जाता है। कहानी बेतुकी होती है। दर्शकों के एक खास समूह को लक्षित करते हुए ऐसी फिल्मों में अश्लीलता का ओवरडोज दिया जाता है। C-ग्रेड फिल्में छोटे शहरों में रिलीज होती हैं। आमतौर पर ऐसी फिल्में 45 मिनट तक की होती हैं।
न्यूजबाइट्स प्लस
कांति शाह B और C-ग्रेड फिल्मों के बादशाह हैं। 90 के दशक में उन्होंने फिल्म 'गुंडे' का निर्देशन किया था, जो जबरदस्त हिट रही। शाह की 'अंगूर', 'शादी बसंती की हनीमून गब्बर का' और 'डाकू रामकली' जैसी न जाने कितनी फिल्में सुपरहिट रहीं।
जरूरी नहीं हर A-ग्रेड फिल्म, B-ग्रेड फिल्म से बेहतर हो
जरूरी नहीं कि जिस फिल्म का बजट कम हो तो वो B-ग्रेड की ही हो। बेहद कम बजट में कई बेहतरीन A-ग्रेड फिल्में बन चुकी हैं, वहीं यह धारणा भी गलत है कि A-ग्रेड की श्रेणी में साफ-सुथरी और अच्छी कहानी वाली फिल्मों को ही रखा जाता है। कई दफा एक A-ग्रेड फिल्म के कंटेंट और दृश्यों से भी लोगों को कड़ी आपत्ति होती है, वहीं B-ग्रेड फिल्म की कहानी दिल को छू जाती है।
खत्म होता B-ग्रेड और C-ग्रेड फिल्मों का बाजार
90 के दशक में इन फिल्मों का खूब क्रेज होता था। B और C टाइप शहरों के सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर ऐसी फिल्में दिखाने का एक माध्यम बनते रहे हैं। हालांकि, पिछले 10 सालों में सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के खत्म हाेने पर इन फिल्मों का बाजार भी तेजी से कम हुआ। इनकी लोकप्रियता एडल्ट फिल्मों की CD ने भी कम की है, वहीं इंटरनेट पर आसानी से ऐसी फिल्में उपलब्ध होने के कारण भी इन फिल्मों का बाजार धीरे-धीरे गिरता गया।
B और C-ग्रेड की फिल्मों का हिस्सा रह चुके धर्मेंद्र और मिथुन
धर्मेंद्र, शक्ति कपूर, मिथुन चक्रवर्ती, मोहन जोशी, रजा मुराद जैसे कलाकारों ने घंटे की दर से काम कर ऐसी फिल्मों को इज्जत बख्शी। कादर खान, सोनू वालिया, कश्मीरा शाह, मल्लिका शेरावत, अनु अग्रवाल, डायना हेडेन, हेलेन, शीतल, नीलम, पूनम दासगुप्ता, पायल रोहतगी और शकीला जैसी अभिनेत्रियां भी इन फिल्मों का हिस्सा रहीं हैँ। कांति के अलावा मोहन भाखरी, राजकुमार कोहली, हरिमोहन सिंह, जोगिंदर, किशन शाह, और सुरेश जैन जैसे सरीखे निर्माता-निर्देशकों ने C-ग्रेड सिनेमा में कई प्रयोग किए हैं।