अलविदा दिलीप कुमार: बॉलीवुड के 'ट्रैजेडी किंग' से जुड़ीं अनसुनी बातें
दिग्गज अभिनेता और बॉलीवुड के 'ट्रैजेडी किंग' नाम से मशहूर दिलीप कुमार ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है और उन्हीं के साथ भारतीय सिनेमा के एक युग का अंत हो गया। भले ही दिलीप कुमार हमारे बीच ना हों, लेकिन उनकी यादें दर्शकों के जेहन में ताउम्र रहेंगी। दिलीप कुमार उर्फ मोहम्मद युसुफ खान की जिंदगी के कई ऐसे किस्से हैं, जिन पर फिल्म बन सकती है। आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ीं कुछ अनसुनी बातें।
दिलीप कुमार को ऐसे मिला ट्रैजेडी किंग का नाम
'दीदार' और 'देवदास' जैसी फिल्मों में दुखद भूमिकाओं के मशहूर होने की वजह से दिलीप कुमार को 'ट्रैजडी किंग' कहा गया। ऐसे माना जाने लगा कि दिलीप कुमार गंभीर रोल बहुत बेहतरीन तरीके से निभाते हैं। इस तरह के किरदारों में उनका ढल जाना और पूरी सच्चाई से उस किरदार को निभाना दिलीप कुमार की ताकत बन गया। अपनी भूमिकाओं में वह इस कदर मशहूर हो गए कि उन्हें 'ट्रैजडी किंग' के नाम से जाना जाने लगा।
दिलीप की एक्टर बनने में नहीं थी दिलचस्पी
दिलीप का एक्टर बनने का कोई इरादा नहीं था। वह अपनी लिटरेचर की पढ़ाई जारी रखना चाहते थे, लेकिन पिता के कहने पर उन्होंने साइंस ले ली थी। फुटबॉल की दीवानगी भी दिलीप के सिर चढ़कर बोलती थी। उन्हें खालसा कॉलेज की तरफ से फुटबॉल खेलने के लिए करीब 15 रुपये मिला करते थे। दिलीप अपना गुजारा इसी में कर लिया करते थे, लेकिन उनकी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया कि उन्हें पढ़ाई और फुटबॉल दोनों ही छोड़ने पड़े।
फल बेचते थे दिलीप कुमार के पिता
दिलीप के पिता का फलों का बिजनेस था। उनके यहां से रोजाना चार-पांच गाड़ियां भरकर फलों की सप्लाई होती थी, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ट्रांसपोर्ट की समस्या होने लगी। अब हफ्ते में केवल दो ही गाड़ियां फलों की सप्लाई कर पा रही थीं। गोदाम फलों से भरा हुआ था, इसलिए उन्होंने जैम बनाना शुरू कर दिया, लेकिन फिर भी फल गोदाम में पड़े-पड़े सड़ रहे थे। ऐसे में घर की माली हालत खराब होने लगी थी।
पढ़ाई छोड़ने के बाद पुणे की सड़कों पर सैंडविच बेचा करते थे दिलीप
दिलीप का बचपन गुरबत में गुजरा। आर्थिक हालात ठीक ना होने के कारण उन्होंने पुणे की सड़कों पर सैंडविच बेचने का काम शुरू किया। हालांकि, इस बीच एक ऑर्डिनेंस पास हुआ, जिसके तहत केवल सैन्य अधिकारियों को आर्मी क्लब में सामान बेचने की अनुमति थी। इस वजह से दिलीप कुमार को अपना काम बंद करना पड़ा। वो ईद का दिन था, जब दिलीप कुमार को अपनी दुकानें हमेशा के लिए बंद कर पुणे से वापस घर लौटना पड़ा।
घर का खर्च चलाने के लिए पहली बार पिता की इच्छा के खिलाफ गए दिलीप
कुछ समय बाद दिलीप कुमार मुंबई जाकर नौकरी तलाशने लगे। इसी बीच उनकी मुलाकात बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से हुई। देविका ने उन्हें फिल्मों में काम करने का सुझाव दिया। परिवार चलाने के लिए ऐसे में दिलीप ने पहली बार पिता और अपनी इच्छाओं के खिलाफ जाकर फिल्मी दुनिया में कदम रखा। शुरुआती दौर में उन्हें काफी असफलताओं का सामना करना पड़ा, लेकिन फिर धीरे-धीरे देखते ही देखते वह हिंदी सिनेमा के चमकते सितारे बन गए।
कैसे युसूफ खान से दिलीप कुमार बने 'ट्रैजेडी किंग'?
दिलीप को फिल्मों में लाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह देविका रानी थीं। उनका मानना था कि एक रोमांटिक हीरो के ऊपर युसूफ खान का नाम ज्यादा फबेगा नहीं। नाम की तलाश शुरू हुई और युसूफ खान, दिलीप कुमार बन गए।
दिलीप के पास सबसे ज्यादा फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने का रिकॉर्ड
दिलीप ने बेहतरीन अभिनेता का सबसे ज्यादा फिल्मफेयर अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड अपने नाम किया है। देश में पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड पाने वाले भी दिलीप थे। उन्हें अभिनय की संस्था कहा जाता था। दिलीप कुमार को 1991 में पद्म भूषण और 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। दिलीप को 1994 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। 1998 में उन्हें पाकिस्तान के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से भी सम्मानित किया गया।
..जब दिलीप और मधुबाला के साथ प्यार के अफसानों ने पकड़ा जोर
50 के दशक में दिलीप कुमार और मधुबाला की प्रेम कहानी खूब चर्चा में रही। दोनों का रिश्ता फिल्म 'तराना' के सेट से शुरू हुआ था। वक्त गुजरने के साथ दोनों में प्यार हुआ और दिलीप ने मधुबाला से शादी करने का मन बना लिया। इसी दौरान मधुबाला के पिता को जैसे ही इस रिश्ते की जानकारी लगी, उन्होंने मधुबाला को दिलीप से दूर रहने की हिदायत दे दी। परिवार की बंदिशों के बावजूद दोनों का प्यार परवान चढ़ता रहा।
मुक्कमल ना हो सकी दिलीप और मधुबाला की मोहब्बत
बीआर चोपड़ा की दिलीप-मुधबाला अभिनीत फिल्म 'नया दौर' की शूटिंग शुरू होने को थी। शूटिंग मध्यप्रदेश में होनी थी, लेकिन मधुबाला को अपने पिता से वहां जाने की अनुमति नहीं मिली। इससे बीआर चोपड़ा काफी नाराज हुए। उन्होंने मधुबाला के खिलाफ केस कर दिया। जब दिलीप का बयान लिया गया तो उन्होंने प्रोड्यूसर के साथ जो एग्रीमेंट हुआ था, उसके बारे में कोर्ट को जानकारी दे दी। इस घटना के बाद दोनों की राहें हमेशा के लिए जुदा हो गईं।
सायरा को कायनात से तोहफे में मिले दिलीप
सायरा बानो दिलीप कुमार की जिंदगी में सच्चा प्यार बनकर आईं, जो आखिरी सांस तक उनके साथ साए की तरह खड़ी रहीं। सायरा ने 22 साल की उम्र में दिलीप कुमार से शादी की थी। उस समय दिलीप 44 साल के थे। 12 साल की उम्र से सायरा, दिलीप को दीवानों की तरह चाहती थीं। वक्त बीतने के साथ दिलीप को भी सायरा से प्यार हो गया। सायरा बानो के शब्दों में दिलीप साहब उन्हें कायनात से तोहफे में मिले।