रवि किशन का हुनर भुना नहीं पाया बाॅलीवुड, अभिनेता बोले- मैं तो इंतजार करता रह गया
क्या है खबर?
अभिनेता और सांसद रवि किशन फिल्मों के अलावा अपनी दो टूक बयानबाजी के लिए भी सुर्खियों में रहते हैं।
एक तरफ जहां फिल्म 'लापता लेडीज' में उनकी तारीफ हो रही है, वहीं वेब सीरीज 'मामला लीगल है' में भी अपने अभिनय से उन्हाेंने दर्शकों को अपना मुरीद बना दिया है।
रवि ने सिनेमा को अपना जीवन दिया है, लेकिन बॉलीवुड ने उनकी मेहनत का उन्हें सही इनाम दिया या नहीं, हाल ही में उन्होंने इस पर खुलकर बात की।
पसंद
अभिनेता की प्रतिभा का इस्तेमाल करने से चूका हिंदी सिनेमा
अमर उजाला से हालिया बातचीत में रवि से पूछा गया कि भोजपुरी सिनेमा के विकास में उनका एक अहम योगदान रहा तो वह बोले, "मेरे भीतर बतौर कलाकार अब भी इतना कुछ है कि वह बाहर नहीं आया। हिंदी सिनेमा में अपने हिस्से की लोकप्रियता का मैं इंतजार ही करता रहा। अब जाकर किरण राव ने 'लापता लेडीज' और नेटफ्लिक्स ने 'मामला लीगल है' में मुझे इस तरह पेश करना शुरू किया है।"
खुलासा
"भोजपुरी सिनेमा का सुपरस्टार गुस्से या चिढ़ में बन गया"
रवि बाेले, "इस दौरान मैंने भोजपुरी इंडस्ट्री में खूब काम किया। इसे स्थापित किया और ये सब गुस्से में कहो या कहो कि चिढ़ में हुआ। मैं खुद भोजपुरी में आकर अपनी कोशिशों से सुपरस्टार बना।"
रवि जल्द ही भोजपुरी सिनेमा की पहली पैन इंडिया फिल्म 'महादेव का गोरखपुर' लेकर आएंगे, जो एक साथ 5 भाषाओं में रिलीज हो रही है। फिल्म में रवि एक जबरदस्त भूमिका में दिखेंगे। उन्होंने अपनी यह फिल्म बनाने का कारण भी मीडिया को बताया।
दिल की बात
पैसों की होड़ ने भोजपुरी सिनेमा को खराब कर दिया- रवि
रवि ने बताया, "भोजपुरी सिनेमा पर अश्लील होने की तोहमत बहुत लगी हैं। मैं इसे गलत भी नहीं मानता। हाल के बरसों में आए कुछ लोगों ने लालच और पैसा कमाने के चक्कर में इसे खराब किया। ये बात मेरे दिल पर लग गई। मैंने इसी को सुधारने के लिए 'महादेव का गोरखपुर' बनाई।"
रवि के मुताबिक, उनका लक्ष्य भोजपुरी को वही सम्मान दिलाने का है, जो दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को भारत में हासिल है।
जानकारी
रवि ने बताया अपने हंसमुख स्वभाव का राज
रवि बोले, "मैं खुद में डूबा इंसान नहीं। मैं छोटी-छोटी चीजों में आनंद पाता हूं। हमारी हर बात में हास्य है। बस उसे सार्थक तरीके से समझने वाला होना चाहिए। हम अपने आप में इतने डूबते जा रहे हैं कि टिकट खरीदकर हंसने जाते हैं।"
सफरनामा
न्यूजबाइट्स प्लस
बता दें कि रवि का बचपन गरीबी में गुजरा। उनके पिता पंडित श्याम नारायण शुक्ला पुजारी थे। रवि के पिता उन्हें पढ़ा-लिखाकर अपनी तरह पुजारी बनाना चाहते थे, लेकिन रवि को यह पसंद नहीं था।
वह एक्टर बनना चाहते थे। एक समय ऐसा भी आया कि वह घर से भागकर सपनों की नगरी मुंबई चले गए।
यहां से उनके संघर्ष का सिलसिला काफी लंबा चला था। अच्छा किरदार पाने के लिए वह सालों साल मुंबई की सड़कों पर भटकते रहे।