#NewsBytesExplainer: कलर ग्रेडिंग की पोस्ट-प्रोडक्शन में है अहम भूमिका, जानिए इसका काम और महत्व
क्या है खबर?
बॉलीवुड हो या हॉलीवुड, किसी भी फिल्म के निर्माण में प्री-प्रोडक्शन, प्रोडक्शन और पोस्ट-प्रोडक्शन ये 3 सीढ़ियां सबसे जरूरी होती हैं।
फिल्म की शूटिंग खत्म होने के बाद पोस्ट-प्रोडक्शन का काम शुरू होता है, जिसमें एडिटिंग, डबिंग, VFX से लेकर कई तरह की चीजें शामिल होती हैं।
इसी में एक और महत्वपूर्ण प्रक्रिया शुमार है, जिसे कलर ग्रेडिंग कहा जाता है।
आइए आज कलर ग्रेडिंग क्या है और फिल्म निर्माण में इसकी भूमिका के बारे में विस्तार से जानते हैं।
विस्तार
क्या है कलर ग्रेडिंग?
कलर ग्रेडिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किसी भी वीडियो के रंगों को बढ़ाया या बदला जाता है यानी उनमें हेरफेर की जाती है ताकि वे स्क्रीन पर अच्छे लगे।
इसमें वीडियो के रंग, कंट्रास्ट और चमक को घटाया और बढ़ाया जाता है। इसका उपयोग फ्रेम में नजर आने वाली रोशनी संबंधी समस्याओं को ठीक करने के लिए भी हो सकता है।
साथ ही विभिन्न शॉट में समानता रखने के लिए भी कलर ग्रेडिंग का उपयोग किया जाता है।
जरूरी
क्यों है जरूरी?
कलर ग्रेडिंग 2 चीजों के लिए जरूरी है। पहला, सीन में माहौल बनाने के लिए तो दूसरा लाइट की वजह से हुई परेशानी को ठीक करने के लिए।
ये निर्देशकों को अपना दृष्टिकोण सही तरीके से दर्शाने की छूट देता है। यह सीन की टोन और मूड सेट करता है, जो पर्दे पर शानदार लगता है।
कई बार लाइट की स्थिति या कैमरा सेटिंग्स के कारण फुटेज में अंधेरा या उजाला आ जाता है, जिसे ठीक करना इसका काम है।
फायदा
कहानी बताने में होता है फायदा
कई बार सीन में बिना शब्दों के रंग ही बहुत कुछ कह जाते हैं और दर्शकों को कहानी बताना आसान हो जाता है।
जैसे अगर किसी सीन में लाल रंग दिखाई देता है तो वह प्यार या फिर डर को दर्शाता है। इसी तरह सफेद रंग की रोशनी अच्छाई को दिखाती है तो काला अंधेरा भी डर या खौफ दिखाता है।
ऐसे में रंगों के साथ खेलकर निर्देशक अपना दृष्टिकोण और भाव लोगों तक पहुंचाने में सफल हो जाते हैं।
अंतर
कलर ग्रेडिंग और कलर करेक्शन में होता है अंतर
अक्सर लोग कलर ग्रेडिंग और कलर करेक्शन को एक ही समझ लेते हैं, लेकिन इनमें अंतर है।
दरअसल, कलर करेक्शन इस प्रक्रिया की पहली सीढ़ी है, जिसमें फोटो या फुटेज को देखा जाता है कि वह खराब तो नहीं है। अगर उसमें कोई दिक्कत होती है तो सुधार किया जाता है।
कलर ग्रेडिंग इसका अगला पड़ाव है, जिसमें सही फुटेज पर काम होता है। इसमें बदलाव भी किया जाता है, जैसे दिन को रंगों की मदद से रात में बदलना।
जानकारी
कलर ग्रेडिंग के प्रकार
फिल्म में अलग-अलग मूड और भावना को दिखाने के लिए कलर ग्रेडिंग करने की अलग-अलग तकनीक का इस्तेमाल होता है। जैसे 'S-कर्व ग्रेडिंग', 'क्रॉस-प्रोसेसिंग', 'ब्लैक एंड व्हाइट कन्वर्जन' और 'सीपिया टोनिंग'। इनका चयन मूड और टोन के हिसाब से होता है।
राहत
डिजिटल युग के आने से हुई आसानी
कलर ग्रेडिंग दशकों से फिल्म निर्माण का एक अहम हिस्सा है। पहले कलर ग्रेडिंग केमिकल और रंगों की मदद से हाथ से की जाती थी, जिसमें समय लगता था।
हालांकि, अब डिजिटल युग में कलर ग्रेडिंग के कई सारे सॉफ्टवेयर बन गए हैं, जिनकी मदद से आसानी से इसे किया जा सकता है।
इसकी मदद से फिल्म निर्माताओं को कम समय में अपनी फिल्मों के दृश्य को और भी शानदार बनाने की रचनात्मक छूट मिल गई है।
काम
निर्देशक और DOP साथ बैठकर कराते हैं ग्रेडिंग
फिल्म कंपेनियन को दिए इंटरव्यू में कलरिस्ट सिद्धार्थ मीर ने बताया था कि अक्सर फिल्म की एडिटिंग के बाद ग्रेडिंग का काम होता है।
इस दौरान निर्देशक या DOP साथ रहते हैं और उनसे कहानी पर बात होती है। इसके बाद काम शुरू होता है। एडिटर भी ग्रेडिंग हो जाने के बाद फाइनल कॉपी देखने आता है।
मीर के अनुसार, बड़े और छोटे बजट की फिल्मों के सॉफ्टवेयर एक जैसे ही होते हैं और इनमें कोई खास अंतर नहीं होता।