#NewsBytesExplainer: क्या है बटरफ्लाई इफेक्ट? अनुराग बसु की 'लूडो' में हुआ था इस्तेमाल
मनोरंजन जगत में हर साल अलग-अलग जॉनर की कई फिल्में रिलीज होती हैं। कुछ फिल्में जहां दर्शकों का दिल जीतने में सफल हो जाती हैं तो कुछ औंधे मुंह गिरती हैं। हालांकि, एक फिल्म को दर्शकों के बीच लाने से पहले निर्माता-निर्देशक कई प्रक्रियाओं से होकर गुजरते हैं। इसी कड़ी में फिल्मों में बटरफ्लाई इफेक्ट का भी इस्तेमाल होता है, जो कहानी के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में चलिए इस इफेक्ट के बारे में विस्तार से जानते हैं।
पहले जानिए क्या है बटरफ्लाई इफेक्ट
आमतौर पर अपने कई फिल्मों में देखा होगा कि एक छोटी-सी घटना ही कैसे कहानी में बड़ा बदलाव लेकर आती है। इस घटना का संबंध हर उस मुद्दे से जुड़ा होता है, जो कहानी को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी होता है। इसी छोटी-सी घटना से होने वाले बदलाव को ही बटरफ्लाई इफेक्ट कहा जाता है, जिसका इस्तेमाल हॉलीवुड की कई फिल्मों में होता है तो अब बॉलीवुड में भी इसका उपयोग होने लगा है।
एडवर्ड लोरेंज ने दी थी परिभाषा
बटरफ्लाई इफेक्ट का नाम 60 के दशक में प्रोफेसर एडवर्ड लोरेंज ने दिया था। उन्होंने तापमान के बारे में समझने के लिए एक कंप्यूटर में कुछ नंबर डाले, जिसके बाद उन्होंने देखा कि कैसे नंबरों में थोड़ा-सा बदलाव करते ही तापमान में फर्क आ गया। उन्होंने इसे बटरफ्लाई इफेक्ट कहा था। इसी तरह कहा गया कि अगर दुनिया के किसी कोने में एक तितली एक पत्ते पर अपने पंखों को हिलाए तो दूसरे हिस्से में तूफान आ सकता है।
इस फिल्म से हुई थी शुरुआत
बटरफ्लाई इफेक्ट का उपयोग करने वाली पहली फिल्म 1981 की पोलिश भाषा की 'ब्लाइंड चांस' थी, जिसका निर्देशन क्रिज्सटॉफ कीस्लोवस्की ने किया था। हालांकि, यह फिल्म राजनीतिक सेंसरशिप के कारण 1987 में रिलीज हो पाई थी और आज भी यह बटरफ्लाई इफेक्ट को बखूबी समझाती है। इसमें एक व्यक्ति की ट्रेन पकड़ने और छूटने की 3 अलग-अलग समय सीमाओं की कहानी को दिखाया गया है। साथ ही राजनीति और धर्म जैसे मुद्दों को भी उठाया गया है।
इसी नाम से बनी थी हॉलीवुड फिल्म
2004 में 'द बटरफ्लाई इफेक्ट' नाम से एक हॉलीवुड फिल्म बनी थी, जो इस कॉन्सेप्ट को समझाने के लिए सबसे शानदार है। इसमें टाइम ट्रैवल दिखाया गया है कि कैसे एक लड़का सिर में तेज दर्द होने पर बेहोश होकर अपने अतीत में चला जाता है। वह अपने साथ ही अपने दोस्तों के अतीत में जाकर उसे बदल सकता है। अब अतीत में किए गए उसके छोटे-से बदलाव ही उसकी आज की जिंदगी पर बुरा असर डालते हैं।
इन फिल्मों में हुआ इस्तेमाल
2020 में नेटफ्लिक्स पर आई राजकुमार राव और अभिषेक बच्चन की फिल्म 'लूडो' इसका उदाहरण है। अनुराग बसु की इस क्राइम-थ्रिलर फिल्म में 4 अलग-अलग कहानियां दिखाई गई हैं, जो आखिर में एक-दूसरे से ही मिल जाती हैं। इसी तरह 2008 में आई कमल हासन की फिल्म 'दशावतार' भी बटरफ्लाई इफेक्ट को समझाती है। इसमें दिखाया है कि कैसे एक रसायन की शीशी गलती से भारत में आती है और वैज्ञानिक उसे रोकने की कोशिश लगा रहता है।
इस तरह की फिल्मों में दिखता है इफेक्ट
बटरफ्लाई इफेक्ट मुख्य किरदार ही नहीं, उसके आसपास के लोगों के जीवन पर भी असर डालता है। अलग-अलग जॉनर की फिल्मों में इसे दिलचस्प तरीके से दिखाया जाता है। आमतौर पर यह टाइम ट्रेवल वाली फिल्म में नजर आता है, जिसमें कहानी भविष्य से अतीत और अतीत से भविष्य में आती है। इसके अलावा निर्माता इसे साइंस फिक्शन, थ्रिलर, ड्रामा और फेंटसी फिल्मों में भी दिखाते हैं। यह इफेक्ट कहानी को और भी मजेदार बना देता है।
बॉलीवुड की ये फिल्में आसानी से समझाती हैं इसका मतलब
अगर आप इस इफेक्ट के बारे में समझना चाहते हैं तो बॉलीवुड की कई सारी फिल्में इसे बखूबी समझाती हैं। इनमें फिल्म 'लाइफ इन ए मेट्रो', 'जब तक है जान', 'बार बार देखो' और 'गजनी' शामिल है। इम्तियाज अली की फिल्म 'लव आजकल' 2 अलग-अलग समय सीमा में चल रहीं प्रेम कहानियों को दिखाती है। साथ ही इस पर भी प्रकाश डालती है कि अतीत में लिया गया मुख्य किरदारों का फैसला उनके आज और भविष्य पर प्रभाव डालता है।