#Review: जाह्नवी कपूर नहीं कर पाईं 'गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल' के साथ इंसाफ
क्या है खबर?
जाह्नवी कपूर के अभिनय से सजी फिल्म 'गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल' नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुकी है। फिल्म को लेकर काफी उत्सुकता बनी हुई थी।
इस फिल्म की कहानी करगिल युद्ध में प्रवेश करने वाली पहली महिला लड़ाकू विमान चालक गुंजन सक्सेना की जिंदगी पर आधारित है।
देशभक्ति के नारे के साथ इस फिल्म को 15 अगस्त से कुछ दिन पहले ही नेटफ्लिक्स पर रिलीज किया गया है।
आइए जानते हैं कैसी है 'गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल'।
शुरुआत
बचपन से ही पायलट बनने का सपना देखने लगती हैं गुंजन
फिल्म की कहानी शुरु होती है करगिल युद्ध के दौरान जंग के मैदान में फंसे आर्मी जवानों से, जिनकी मदद के लिए गुंजन सक्सेना (जाह्नवी कपूर) को भेजना पड़ता है।
इसके बाद कहानी पहुंचती है गुंजन के बचपन में, जो पायलट बनने का सपना देखती हैं। यह सपना गुंजन का जुनून बन जाता है, लेकिन भाई आयुष्मान (अंगद बेदी) नहीं चाहते कि गुंजन जहाज उड़ाए।
उन्हें गुंजन की चिंता होती है कि वह जंग के मैदान अपनी हिफाजत कैसे करेंगी।
आगे की कहानी
हर मोड़ पर पिता ने दिया गुंजन का साथ
गुंजन के पिता अनूप सक्सेना (पंकज त्रिपाठी) हमेशा अपनी बेटी के इस फैसले के साथ खड़े रहते हैं। उन्होंने बचपन से ही हर कदम पर गुंजन का साथ दिया है।
इसके अलावा वह कई मुश्किलें आने के बावजूद एक फाइटर पायलेट के तौर पर अपनी बेटी को तैयार करते हैं।
फिल्म में पिता और बेटी का एक खूबसूरत कनेक्शन देखने को मिलता है। गुंजन का संघर्ष सभी के लिए एक प्रेरणा बनता है।
अभिनेत्री
जाह्नवी की अदाकारी ने किया बहुत निराश
फिल्म जाह्नवी कपूर के इर्द-गिर्द ही घूमती है। यह जाह्नवी की दूसरी बॉलीवुड फिल्म है और उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि उन्हें अभिनय पर और बहुत काम करने की जरूरत है।
फिल्म के डायलॉग्स अच्छे हैं, लेकिन जाह्नवी के एक्सेंट से लगता है कि उन्हें हिन्दी बोलने में थोड़ी मुश्किल हो रही है।
उन्होंने बेशक गुंजन के किरदार में ढलने की पूरी कोशिश की है, लेकिन एक बायोपिक के लिए तैयार होने में उन्हें अभी थोड़ा वक्त और लगेगा।
गुंजन के पिता और भाई
फिल्म की जान हैं पंकज त्रिपाठी, अंगद बेदी का ठीक-ठाक अभिनय
पंकज त्रिपाठी की बात करें तो उन्हें इस फिल्म की जान कहा जा सकता है। उन्होंने एक प्रगतिशील सोच रखने वाले साधारण और जिम्मेदार पिता की भूमिका को बखूबी निभाया है।
वहीं अंगद बेदी से हम सभी को बहुत उम्मीदें रहती हैं। वह शायद एक बड़े भाई को अच्छे ढंग से पर्दे पर दिखा सकते थे।
इनके अलावा आइशा रजा मिश्रा, विनीत कुमार सिंह और चंदन आनंद ने अपने किरदारों के साथ इंसाफ किया है।
निर्देशन
निर्देशन में कई हिस्सों में दिखी कमी
शरन शर्मा ने इस फिल्म से डायरेक्टर के तौर पर करियर शुरु किया है। उन्होंने अपनी पहली फिल्म के लिए शानदार विषय चुना। हालांकि, उन्हें यह ध्यान रखना होगा कि बायोपिक के साथ ज्यादा क्रिएटिव नहीं हो सकते।
इसके अलावा गुंजन सक्सेना उत्तर प्रदेश के लखनऊ में पली-बढ़ी हैं, लेकिन फिल्म में उनके किरदार में लखनऊ की कोई झलक ही नहीं दिखाई गई।
हालांकि, उन्होंने भारतीय वायुसेना से जुड़ी हर चीज को बारीकी से दिखाने की कोशिश की है।
म्यूजिक-सिनेमैटोग्राफी
औसत हैं फिल्म के गाने
फिल्म का म्यूजिक औसत है। आखिरी एक गाने 'भारत की बेटी' को छोड़कर कोई भी गाना ऐसा नहीं था जो अपनी ओर ध्यान खीचता हो। हालांकि, किसी गाने में ऐसा भी नहीं लगा कि इसे जबरदस्ती डाला गया।
वहीं सिनेमैटोग्राफी की बात करें तो कैमरे में हर रंग को खूबसूरती से दिखाया गया है। जबकि शुरुआत में हवाई जहाज से दिखाए गए नीले आसमान के सीन को और आकर्षक बनाया जा सकता है।
कमजोर कड़ियां
फिल्म में दिखीं कई कमियां
फिल्म में बहुत सारी चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है। जैसे भारतीय वायुसेना का पुरुष प्रधान होना। जिसके ऊपर भारतीय वायुसेना ने सेंसर बोर्ड में आपत्ति भी दर्ज कराई है।
विद्या बालन की 'शकुंतला देवी' कई लोगों को थोड़ी बोरिंग लगी थी। इसका कारण यह हो सकता है कि इसमें तथ्यों के साथ छेड़-छाड़ हुई। जबकि 'गुंजने सक्सेना' बायोपिक होने के बाद भी कई जगहों पर जरुरी नहीं होने के बावजूद क्रिएटिव और दिलचस्प बनाने की कोशिश की गई है।
समीक्षा
देखें या ना देखें?
फिल्म की अगर कुछ चीजों को नजरअंदाज किया जाए तो यह कहानी काफी अच्छी है। 15 अगस्त के मौके पर रिलीज हुई इस फिल्म के साथ आप भी देशभक्ति के रंग में डूब जाएंगे।
गुंजन के सपने और मेहनत हर लड़की को प्रेरित करेंगे। वहीं पंकज त्रिपाठी एक बार फिर अपनी बेहतरीन अदाकारी से आपका दिल जीत लेंगे।
हम फिल्म की कहानी और पंकज त्रिपाठी के अभिनय के लिए इस फिल्म को 5 में से 2 स्टार दे रहे हैं।