'इश्क-ए-नादां' रिव्यू: अभिनय की नींव पर टिकी रोमांस और रिश्तों की ये बेअसर कहानी
क्या है खबर?
कुछ दिन पहले ही यह फिल्म चर्चा में आई थी, जब इसका टीजर सोशल मीडिया पर आया था। फिल्म के जरिए अविषेक घोष ने निर्देशन की दुनिया में कदम रखा है।
फिल्म के ट्रेलर को भी दर्शकों ने सराहा था और उसके बाद इसकी रिलीज को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई थी।
अब आखिरकार 14 जुलाई को जियो सिनेमा पर इस फिल्म ने दस्तक दे दी है।
जानना चाहते हैं कैसी है 'इश्क-ए-नादां' तो पढ़िए इसका रिव्यू।
कहानी
3 जोड़ियों के रोमांस की कहानी
प्यार, इश्क और मोहब्बत की दास्तां बयां करती इस फिल्म में तीन अलग-अलग कहानियां दिखाई गई हैं।
इसमें मोहित रैना, लारा दत्ता, सुहैल नैय्यर, श्रिया पिलगांवकर, नीना गुप्ता और अभिनेता कंवलजीत सिंह हैं। पूरी कहानी इन्हीं 6 किरदारों के इर्द-गिर्द बुनी गई है, जो अपनी जिंदगी के अलग-अलग पड़ाव पर हैं।
वे मिलते हैं। उनकी जिंदगी में रोमांस दस्तक देता है और फिर क्या होता है, अगर यह भी बता दिया तो फिल्म में देखने के लिए कुछ बचेगा नहीं।
अभिनय
कलाकारों ने किया कमाल
अभिनय के विभाग में हर कलाकार अव्वल है। फिल्म की जान इसके किरदार ही हैं, जो सामंजस्य बैठाकर रखते हैं। मोहित ने अपने किरदार से सबसे ज्यादा आकर्षित किया है।
नीना ने अपना असर छोड़ा है। कंवलजीत का अभिनय भी काबिल-ए-तारीफ है, वहीं लारा का जादू भी फिल्म में खूब चला है। इन चारों किरदारों को देख आप यही कहेंगे कि क्या कमाल की एक्टिंग की है।
श्रिया और सुहैल ने अपने हिस्से आए काम के साथ इंसाफ किया है।
जानकारी
संगीत और शेरों-शायरी भी खींचती हैं ध्यान
गीत-संगीत के मामले में फिल्म ठीक-ठाक है। गाने सुनने में अच्छे लगते हैं। इसके अलावा डायलॉग और फिल्म की कहानी में डाली गईं शायरियां इसे देखने का आकर्षण बनाए रखती हैं। दूसरी तरफ फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और संपादन औसत से भी कमतर है।
निर्देशन
फेल हुए निर्देशक
अविषेक की यह पहली फिल्म है और उनके निर्देशन में परिपक्वता के दर्शन दूर-दूर तक नहीं होते। कहानी जिस तरह से परोसी गई है, वो मजा खराब करता है। दूसरी तरफ किरदार कायदे से नहीं लिखे गए।
सिनेमा से भली-भांति परिचित हैं तो आपको फिल्म देख यही लगेगा कि यह किसी नौसिखिया निर्देशक की उपज है।
कमजोर, सपाट और बेअसर कहानी यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर दर्शकों का इम्तिहान लेने में निर्देशक को क्या मजा आया?
खामियां
कमियां ये भी खटकती हैं
फिल्म कहानी, ड्रामा, कॉन्सेप्ट, मसाला या मनोरंजन के नाम पर शून्य है। फर्स्ट हाफ इतना धीमा है कि सिर पकड़कर बैठने का मन करता है।
तीनाें कहानियां एकसाथ परोस दी गईं। स्क्रीनप्ले का कोई ठिकाना नहीं है, जिसके चलते फिल्म पकाऊ हो गई।
1 घंटे 55 मिनट की यह फिल्म देख उबासी आने लगती है। हालांकि, हमें आप तक यह रिव्यू पहुंचाना था, इसलिए न चाहते हुए भी हमने किसी तरह आखिरी सीन तक फिल्म देखने की हिम्मत जुटाई।
फैसला
देखें या न देखें?
क्यों देखें?- बेकार पटकथा ने भले ही सब मामला गुड़ गोबर कर दिया, लेकिन कलाकारों ने इसकी लुटिया डूबने से बचा ली। कम से कम सितारों के लिए तो इसे एक मौका दिया जा सकता है।
क्यों न देखें?- बढ़िया कहानी की चाह में यह फिल्म देखेंगे तो खुद को शर्तिया ठगा हुआ महसूस करेंगे। सोनम कपूर की 'ब्लाइंड' के बाद एक बार फिर जियो सिनेमा ने मुफ्त के नाम पर दर्शकों को गच्चा दे दिया है।
न्यूजबाइट्स स्टार- 2/5