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    CBSE: सिलेबस से हटाए गए नागरिकता और धर्मनिरपेक्षता जैसे कई अध्याय, उठ रहे सवाल

    CBSE: सिलेबस से हटाए गए नागरिकता और धर्मनिरपेक्षता जैसे कई अध्याय, उठ रहे सवाल

    लेखन मोना दीक्षित
    Jul 08, 2020
    05:30 pm

    क्या है खबर?

    केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने 9वीं से 12वीं तक के सिलेबस को 30 प्रतिशत कम करने का निर्णय किया है।

    इसके तहत कोरोना वायरस संकट के बीच छात्रों के बोझ को कम करने के लिए CBSE के सिलेबस से लोकतांत्रिक अधिकार, भारत में खाद्य सुरक्षा, संघवाद, नागरिकता और धर्मनिरपेक्षता जैसे प्रमुख अध्यायों को हटा दिया गया है।

    ऐसे महत्वपूर्ण अध्यायों को हटाने के कारण विवाद शुरू हो गया और कई जानकारों ने इसे लेकर सवाल भी उठाए हैं।

    11वीं

    11वीं के सिलेबस से हटाए गए ये अध्याय

    CBSE ने बीते मंगलवार को घोषणा कर दी थी कि कोरोना वायरस की वजह से बनी हुईं स्थितियों को देखते हुए 2020-21 के लिए सिलेबस एक तिहाई कम हो जाएगा।

    बोर्ड ने 9वीं से 12वीं तक के लिए अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान सिलेबस को संशोधित किया है।

    इसके साथ ही 11वीं के राजनीति विज्ञान के सिलेबस से पूरी तरह से हटाए गए अध्यायों में संघवाद, नागरिकता, राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता शामिल हैं।

    जानकारी

    स्थानीय सरकार अध्याय से हटाईं गईं दो इकाइयां

    इतना ही नहीं स्थानीय सरकार अध्याय से केवल दो इकाइयों 'हमें स्थानीय सरकारों की आवश्यकता क्यों है' और 'भारत में स्थानीय सरकार का विकास' को हटा दिया गया है। इससे छात्रों को काफी राहत मिलेगी और वे जरूरी चीजें भी पढ़ पाएंगे।

    12वीं

    12वीं के सिलेबस से कम हुए कई अध्याय

    11वीं के साथ-साथ 12वीं के राजनीति विज्ञान के सिलेबस से भी कई अध्याय हटाए गए हैं।

    बोर्ड ने समकालीन दुनिया में सुरक्षा, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन, भारत में सामाजिक और नए सामाजिक आंदोलन और क्षेत्रीय आकांक्षाएं को पूरी तरह से हटा दिया गया है।

    इतना ही नहीं नियोजित विकास अध्याय से भारत के आर्थिक विकास की बदलती प्रकृति और योजना आयोग और पंचवर्षीय योजनाओं वाली इकाइयों को हटा दिया गया है।

    9वीं और 10वीं

    9वीं और 10वीं के सिलेबस से भी बाहर किए गए कई अध्याय

    भारत के अपने पड़ोसियों के साथ संबंध: पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार के अध्यायों को भी हटाया गया है।

    साथ ही भारतीय संविधान के लोकतांत्रिक अधिकारों और संरचना से संबंधित अध्यायों को 9वीं के राजनीति विज्ञान के सिलेबस से और भारत में खाद्य सुरक्षा पर एक अध्याय को अर्थशास्त्र के सिलेबस से बाहर कर दिया गया है।

    वहीं 10वीं में लोकतंत्र और विविधता, जाति, धर्म और लिंग और चुनौतियों से लोकतंत्र के अध्यायों को हटा दिया गया है।

    बयान

    छात्रों से पढ़ने और सीखने के अधिकार को छीना जा रहा है- कृष्ण कुमार

    NCERT के पूर्व निदेशक कृष्ण कुमार ने NDTV से बातचीत में कहा कि CBSE के सिलेबस से इन अध्यायों को हटाकर छात्रों से उनके पढ़ने और सीखने के अधिकार को छीना जा रहा है।

    उन्होंने कहा कि संघवाद जैसे अध्यायों को हटाने के बाद बच्चों को संविधान कैसे पढ़ाया जाएगा। आंदोलनों से संबंधित अध्याय हटने के बाद छात्रों के लिए इतिहास पढ़ना मुश्किल होगा। इससे बच्चों को रटने के लिए बढ़ावा मिलेगा।

    बयान

    "अध्याय हटाने से बिगड़ जाएगा किताब का लॉजिक"

    कुमार का कहना है कि किसी भी अध्याय को हटाने की क्या जरूरत है। शिक्षा व्यवस्था को परीक्षा के अनुसार लागू करने की कोई जरूरत नहीं है।

    इसके साथ ही CBSE किताबों के सह लेखक सुहास पल्शिकर ने भी इस कदम के खिलाफ विरोध किया है।

    उन्होंने कहा कि किसी भी किताब का कोई न कोई लॉजिक जरूर होता है। अगर उस किताब के किसी हिस्से को हटा दिया जाए तो वह उस लॉजिक के लिए अच्छा नहीं है।

    तरीका

    बच्चों का भार कम करने के हो सकते हैं और भी अच्छे तरीके

    इसके साथ ही पलिश्कर ने यह भी कहा कि स्कूल के बच्चों का बोझ कम करने के और भी तरीके हो सकते हैं। यह तय किया जा सकता है कि एक किताब को बच्चे सिलेबस में पढ़े, जो परीक्षा में आए। वहीं एक किताब ऐसी हो, जिसे छात्र अपनी स्वेच्छा से पढ़ें।

    उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि इन अध्यायों को किसकी सलाह पर हटाया गया है।

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