भारतीय रुपये का बीते 20 सालों में कैसा रहा सफर?
क्या है खबर?
भारतीय रुपये में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 91 के स्तर से नीचे फिसलने ने एक बार फिर मुद्रा को चर्चा के केंद्र में ला दिया है। ग्लोबल टैरिफ तनाव, अमेरिकी डॉलर की मजबूती और विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली के कारण रुपये पर दबाव बढ़ा है। हाल के वर्षों में यह सबसे तेज गिरावट मानी जा रही है। बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि गिरावट की वजह घरेलू कमजोरी कम और अंतरराष्ट्रीय हालात ज्यादा जिम्मेदार हैं।
संकट
धीरे-धीरे कमजोर होता रुपया
पिछले करीब 20 साल में रुपये का सफर देखें तो इसमें धीरे-धीरे कमजोरी साफ दिखती है। 2005 के आसपास डॉलर के मुकाबले रुपया 44-45 के स्तर पर था। इसके बाद वैश्विक आर्थिक संकट, कच्चे तेल की ऊंची कीमतें और विदेशी निवेश के उतार-चढ़ाव ने दबाव बढ़ाया। 2013 के टेपर टैंट्रम के दौरान हालात और बिगड़े, जब रुपया करीब 58 से गिरकर 68 के आसपास पहुंच गया। विदेशी पैसा तेजी से बाहर गया और बाजार में काफी चिंता देखने को मिली।
कोशिशें
संकट के दौर और सुधार की कोशिशें
2018 से 2020 के बीच रुपये ने कई बड़े झटके झेले, खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान। 2018 में डॉलर के मुकाबले रुपया करीब 68 से 74 के बीच रहा, जबकि 2020 में यह 74 से 76 के स्तर तक कमजोर हुआ। उस समय वैश्विक अनिश्चितता, मांग में गिरावट और बाजार में डर का माहौल था। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाकर और समय पर दखल देकर हालात को संभाले रखा।
गिरावट
हालिया गिरावट क्यों अलग है?
मौजूदा गिरावट को खास इसलिए माना जा रहा है, क्योंकि इसकी रफ्तार तेज है। सिर्फ 231 दिनों में रुपया 85 से 90 के स्तर तक पहुंच गया। इसके बावजूद बैंकिंग सिस्टम में तरलता बनी हुई है और विदेशी मुद्रा भंडार भी मजबूत हैं। जानकार मानते हैं कि यह गिरावट ज्यादा व्यवस्थित है। RBI किसी तय स्तर को बचाने के बजाय उतार-चढ़ाव को सीमित रखने पर ध्यान दे रहा है, ताकि बाजार में घबराहट न फैले।
असर
आगे की राह और असर
भारतीय रुपये की कमजोरी का असर इंपोर्ट महंगा होने के रूप में दिख रहा है, खासकर तेल और इलेक्ट्रॉनिक्स पर, जिससे महंगाई का खतरा बढ़ सकता है। दूसरी ओर, एक्सपोर्ट को सीमित राहत मिल सकती है। आगे रुपये की दिशा भारत-अमेरिका व्यापार बातचीत, अमेरिकी ब्याज दरों और विदेशी निवेश पर निर्भर करेगी। फिलहाल जानकार मानते हैं कि दबाव बना रह सकता है, लेकिन घबराहट जैसे हालात की संभावना कम है।