महामारी के दौरान न्यूटन ने भी किया था घर से काम, खोजा था गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत
क्या है खबर?
इन दिनों पूरी दुनिया कोरोना वायरस (COVID-19) की चुनौती का सामना कर रही है। वायरस को फैलने से रोकने के लिए स्कूल-कॉलेज, ऑफिस और दुकानें बंद की जा रही हैं।
महान वैज्ञानिक आईसैक न्यूटन को भी अपने समय में ऐसी ही एक बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा था।
उस दौरान उन्होंने गुरुत्वाकर्षण बल के सिद्धांत पर काफी काम किया था, जिसने आगे चलकर दुनिया बदल दी।
आइये, जानते हैं कि यह पूरी कहानी क्या है।
महामारी
1665 में लंदन में फैला था प्लेग
यह सन 1665 की बात है। लंदन में प्लेग महामारी बनकर बुरी तरह फैल चुका था।
तब आईसैक न्यूटन कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में पढ़ते थे। तब तक वो 'सर' नहीं बने थे।
उस समय अभी की तरह ही बीमारी के फैलने से बचने के लिए सरकार ने स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए थे।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने भी अपने छात्रों को घर भेज दिया। न्यूटन भी इन छात्रों में शामिल थे। वो भी यूनिवर्सिटी से अपने घर चले गए।
इतिहास
न्यूटन ने घर पर जारी रखी पढ़ाई और शोध
न्यूटन एक साल से ज्यादा समय तक घर पर अपने प्रोफेसरों से दूर रहे। हालांकि, उन्होंने अपनी पढ़ाई और शोध चालू रखा। न्यूटन के जीवन में इस एक साल को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस दौरान उन्होंने कैंब्रिज में शुरू की अपनी गणितीय समस्या और ऑप्टिक्स की थ्योरी पर काम चालू रखा।
इसके प्रयोग करने के लिए उन्होंने कई प्रिज्म खरीदे और बेडरूम की दीवार में छेद किया ताकि रोशनी की हल्की किरण वहां पहुंच सके।
ऐतिहासिक घटना
बेडरूम के बाहर था सेब का पेड़
उनके इसी बेडरूम के बाहर एक सेब का पेड़ था। जी हां, वहीं सेब का पेड़, जिसके बारे में कहा जाता है कि अगर उससे सेब न्यूटन के सिर पर नहीं गिरता तो शायद गुरुत्वाकर्षण बल के सिद्धांत की खोज नहीं होती।
आपने सुना होगा कि पेड़ के नीचे बैठे न्यूटन पर टूटकर गिरे सेब ने उन्हें गुरुत्वाकर्षण को समझने में मदद की।
हालांकि, इसकी सच्चाई पर संशय हैं, लेकिन उनके सहयोगी रहे जॉन कॉन्ड्यूईट इसे पूरी तरह नहीं नकारते।
बयान
बगीचे में टहलते हुए न्यूटन को आया था गुरुत्वाकर्षण का ख्याल
वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, जॉन ने बताया कि एक दिन न्यूटन बगीचे में टहल रहे थे तभी उनके मन में गुरुत्वाकर्षण की बात आई। उन्होंने सोचा कि सेब टूटकर जमीन पर ही गिरता है। गुरुत्वाकर्षण की यह शक्ति केवल सेब के जमीन पर गिरने तक नहीं हो सकती। यह उससे आगे भी होगी। यह चांद तक भी हो सकती है।
इस सिद्धांत के साथ न्यूटन 1667 में कॉलेज लौटे और दो साल बाद उन्हें प्रोफेसर बना दिया गया।
क्या आप जानते हैं?
महामारी से हुई थी दो लाख लोगों की मौत
माना जाता है कि उस समय प्लेग फैलने के कारण लंदन में करीब दो लाख लोगों की मौत हुई थी, जो शहर की जनसंख्या का एक चौथाई थी। इंग्लैंड में पिछले 400 सालों में इतनी भयंकर कोई बीमारी नहीं फैली है।
उम्मीद
न्यूटन की तरह आपके पास भी दुनिया बदलने का मौका
अब एक बार फिर दुनिया कोरोना वायरस का सामना कर रही है। लोगों को भीड़भाड़ वाले स्थानों पर जाने से बचने की सलाह दी जा रही है। स्कूल-कॉलेज भी छात्रों को घर पर रहकर पढ़ने की सलाह दे रहे हैं और कंपनियां अपने कर्मचारियों को घर से काम करने की इजाजत भी दे रही हैं।
अगर आप ऐसी स्थिति में होते हैं तो न्यूटन का उदाहरण आपके सामने है। आप इस दौरान किए अपने काम से दुनिया बदल सकते हैं।