अमेरिका द्वारा फंडिंग रोके जाने से WHO के कामों पर क्या असर पड़ेगा?
क्या है खबर?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस (COVID-19) के प्रसार को रोकने में असफल रहने का आरोप लगाकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की फंडिंग रोक दी है।
उन्होंने कहा कि अगर संगठन सही तरीके से काम करता तो महामारी को फैलने से रोका जा सकता था और लोगों की जान बच जाती।
ट्रंप ने कहा कि वो फंडिंग बहाल करने से पहले संगठन के कदमों की समीक्षा करेंगे।
आइये, जानते हैं कि फंडिंग रुकने से क्या असर पड़ेगा।
WHO
सबसे पहले WHO के बारे में जानिये
WHO एक अंतर-सरकारी संगठन है जो सदस्य देशों के स्वास्थ्य मंत्रालयों के जरिए उनके साथ मिलकर काम करता है।
इसका मकसद लोगों को यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज देना, स्वास्थ्य आपातकाल से बचाना और लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाना है।
इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा में स्थित है और फिलहाल 150 देशों में लगभग 7,000 लोग इसके लिए काम कर रहे हैं।
1945 में इसकी स्थापना की चर्चा शुरू हुई और 1948 में इसका संविधान सामने आया।
फंडिंग
WHO को फंड कौन देता है?
संगठन को कई देश, परोपकारी संगठन और संयुक्त राष्ट्र संगठन आदि फंड देते हैं।
संगठन को मिलने वाले कुल फंड में 35.41 प्रतिशत सदस्य देशों द्वारा दिया गया वॉलेंटरी योगदान, 15.66 प्रतिशत अस्सेस्ड योगदान होता है। वहीं परोपकारी संगठन 9.33 प्रतिशत, संयुक्त राष्ट्र संगठन 8.1 प्रतिशत और अन्य स्त्रोत बाकी फंड देते हैं।
संगठन को मिलने वाले फंड में सबसे ज्यादा 15 प्रतिशत अमेरिकी की तरफ से मिलता है। यह सदस्य देशों से मिलने वाले फंड का 31 प्रतिशत है।
फंडिंग
अमेरिका, चीन और भारत देते हैं इतनी मदद
संगठन की वेबसाइट के मुताबिक, अमेरिका ने WHO को दो साल में 893 मिलियन डॉलर (लगभग 6,876 करोड़ रुपये) का योगदान दिया।
चीन अमेरिका से 10 गुना कम यानी सिर्फ 86 मिलियन डॉलर (लगभग 662 करोड़ रुपये) रुपये की मदद देता है।
भारत संगठन को सदस्य देशों से मिलने वाली मदद में एक प्रतिशत योगदान देता है।
यह पूरी तरह सदस्य देशों पर निर्भर करता है कि वो कितना योगदान देते हैं या योगदान देने से मना कर सकते हैं।
जानकारी
फंडिंग में दूसरे नंबर पर गेट्स फाउंडेशन
अमेरिका के बाद WHO को सबसे ज्यादा मदद बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन देता है। इस फाउंडेशन ने संगठन को 531 मिलियन डॉलर (4,081 करोड़ रुपये) की मदद दी। फंड देने में तीसरे नंबर पर यूनाइटेड किंगडम है, जिसने 3,348 करोड़ का योगदान दिया।
असर
फंडिंग रुकने से धीमी पड़ सकती है पोलियो के खिलाफ लड़ाई
WHO इस फंड से दुनिया के अलग-अलग देशों में कई कार्यक्रम चलाता है। संगठन को मिलने वाली कुल फंडिंग में से सबसे ज्यादा 19.87 प्रतिशत पोलियो खत्म करने पर खर्च होता है।
वहीं अमेरिका से मिलने वाली फंडिंग में से 27 प्रतिशत से ज्यादा पोलियो के खिलाफ लड़ाई में इस्तेमाल होता है।
पाकिस्तान समेत कई देशों में पोलियो की हालात गंभीर बनी हुई है। अमेरिका से फंडिंग रुकने से पोलिया के खिलाफ लड़ाई धीमी पड़ सकती है।
WHO
महामारी के बीच अमेरिका ने रोकी फंडिंग
अमेरिका ने संगठन की फंडिंग ऐसे समय में रोकी है जब पूरी दुनिया महामारी का सामना कर रही है।
बुधवार तक दुनियाभर में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 20 लाख से अधिक हो गई और लगभग 1.27 लाख लोगों को इसके कारण अपनी जान गंवानी पड़ी है।
संयुक्त राष्ट्र ने भी फंडिंग रोकने के फैसले को गलत समय पर उठाया गया कदम बताते हुए कहा कि अब मिलकर लड़ाई लड़ने का समय है।
असर
कोरोना के खिलाफ लड़ाई पर भी असर?
ट्रंप के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए संयुक्त राष्ट्र (UN) के महासचिव एंटोनियो गुटरेस ने कहा कि संगठन को सहायता देना बंद करने का यह सही समय नहीं है।
उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के कारण फैली महामारी को रोकने के लिए वैश्विक प्रयासों में WHO की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
गुटरेस ने कहा कि मौजूदा समय में महामारी से लड़ रहे WHO समेत किसी भी संगठन के संसाधनों में कटौती करने के लिए यह उपयुक्त समय नहीं है।