प्राचीन ओलंपिक में खेल के दौरान धोखाधड़ी करने पर क्या मिलती थी सजा?
क्या है खबर?
ओलंपिक खेलों में धोखाधड़ी का इतिहास प्राचीन ओलंपिक से भी पुराना है।
वर्तमान में ओलंपिक खेलों में धोखाधड़ी करने, डोपिंग और फिक्सिंग का दोषी पाए जाने पर अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) खिलाड़ियों को ओलंपिक में भाग लेने से रोकने या आजीवन प्रतिबंध लगाने जैसे सख्त कदम उठाती है, लेकिन प्राचीन ओलंपिक में सजा के काफी क्रूर प्रावधान होते थे, जो खिलाड़ियों को ऐसा करने से रोकते थे।
आइए जानते हैं प्राचीन ओलंपिक में सजा की प्रावधान क्या थे।
शुरुआत
776 ईसा पूर्व में हुई थी प्राचीन ओलंपिक खेलों की शुरुआत
दार्शनिक अरस्तू के अनुसार, प्राचीन ओलंपिक खेलों की शुरुआत 776 ईसा पूर्व पश्चिमी पेलोपोनीज पर ओलंपिक जीउस के अभयारण्य यानी ओलंपिया में हुई थी।
प्राचीन ओलंपिक ग्रीक देवता जीउस या जेन्स के सम्मान में आयोजित एक धार्मिक उत्सव था। जिनमें पैदल दौड़, मुक्केबाजी और विभिन्न घुड़सवारी कौशल जैसे खेल शामिल होते थे।
इन खेलों में धोखाधड़ी को रोकने के लिए काफी सख्त सजा के प्रावधान थे, लेकिन उसके बाद भी धोखाधड़ी होने के कई प्रमाण मिले हैं।
सजा
सार्वजनिक रूप से कोडे मारने और मूर्तियों पर नाम लिखने की मिलती थी सजा
एरिजोना विश्वविद्यालय में यूनानी पुरातत्व के प्रोफेसर डेविड गिलमैन रोमानो के अनुसार, प्राचीन ओलंपिक में पैदल दौड़ में किसी एथलीट के समय से पहले शुरुआती लाइन से आगे निकलने पर रैफर उसी सार्वजनिक रूप से कोडे़ मारते थे।
इसी तरह ताकत के लिए प्रतिबंधित चीज का सेवन करने या विरोधी को रिश्वत देने पर उन पर जुर्माना लगाया जाता था। दोषियों के घरों को जेल तब्दील कर उन्हें बंद करने के साथ उन पर आजीवन प्रतिबंध भी लगाया जाता था।
उजागर
मूर्तियों पर लिखे जाते थे दोषी के नाम और उनका अपराध
रोमानो के अनुसार, धोखाधड़ी करने पर खिलाड़ियों के नाम और उनका अपराध ग्रीक देवता जीउस की कांसे की बनी आदमकद प्रतिमा पर लिखे जाते थे और उन्हें ओलंपिक खेल स्थल के प्रवेश द्वार पर लगाया जाता था।
इन प्रतिमाओं को बनाने का खर्च भी दोषी खिलाड़ियों से लिया जाता था।
इसी तरह गंभीर मामलों में अपराधियों को सुअर की चर्बी पर हाथ रखवाकर भविष्य में ऐसा न करने की शपथ दिलाई जाती थी, क्योंकि सुअर को हीन माना जाता था।