BCCI में गांगुली-शाह के कार्यकाल बढ़ाने को लेकर दो हफ्तों में निर्णय लेगी सुप्रीम कोर्ट
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) पिछले साल दिसंबर से अब तक दो बार सुप्रीम कोर्ट जा चुकी है। उनके सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के पीछे का कारण BCCI अध्यक्ष सौरव गांगुली और सेक्रेटरी जय शाह का कार्यकाल बढ़वाने का है। आज कोर्ट ने बोर्ड की अर्जी पर सुनवाई की, लेकिन कुछ देर के बाद कहा कि वह गांगुली-शाह के भविष्य का फैसला दो हफ्तों के भीतर करेंगे। दोनों का कार्यकाल जून और जुलाई में समाप्त हो रहा है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अगुवाई में हो रही है सुनवाई
BCCI ने मई में ताजा अर्जी दाखिल की थी जिस पर कोरोना के कारण आज वर्चुअल सुनवाई हुई। सुनवाई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया शरद बोबडे और जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई में हुई। थोड़ी देर की सुनवाई के बाद जजों ने कहा कि दो हफ्तों के भीतर वे दोबारा सुनवाई के लिए बैठेंगे। लोढ़ा कमेटी द्वारा बनाए गए नियमों में बदलाव के लिए बोर्ड लगातार कोर्ट का दरवाजा खटखटा रही है।
इस कारण गांगुली को मिला था केवल नौ महीनों का कार्यकाल
कमेटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर (CoA) ने नियम बनाया था कि स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन या BCCI में 3-3 साल के दो कार्यकाल पूरा कर चुके लोगों को तीन साल इन पदों से दूर रहना होगा। इस नियम को सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी सहमति दी थी। गांगुली पांच साल और तीन महीने तक क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के अध्यक्ष रह चुके हैं और इसी कारण उन्हें BCCI अध्यक्ष के रूप में नौ महीनों का कार्यकाल मिला है जो जुलाई में समाप्त होगा।
संविधान में शामिल है दो कार्यकाल पूरा करने के बाद तीन साल का कूलिंग पीरियड
रिपोर्ट के हिसाब से गांगुली का कार्यकाल इस महीने 27 जुलाई को समाप्त होगा तो वहीं शाह का कार्यकाल पिछले महीने ही खत्म हो गया था। BCCI के संविधान के मुताबिक कोई भी ऑफिशियल तीन-तीन साल का दो कार्यकाल पूरा करने के बाद अपने पद पर नहीं बना रह सकता है। दो कार्यकाल खत्म होने के बाद ऑफिशियल को तीन साल का कूलिंग ऑफ पीरियड बिताना होता है।
संविधान में बदलाव करना चाहती है BCCI
पिछले साल 01 दिसंबर को हुई एनुअल जनरल मीटिंग (AGM) में BCCI ने कूलिंग ऑफ पीरियड खत्म करने समेत अपने संविधान में कुछ बदलाव करने की बात कही थी। हालांकि, संविधान में किसी भी तरह के बदलाव के लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट की इजाजत लेनी होगी। BCCI चाहती है कि आने वाले भविष्य में कोर्ट उनके मामले में दखलअंदाजी न करे और सेक्रेटरी के पास अभूतपूर्व ताकत हो।