#KabaddiKeHero: माता-पिता को खोया, पैसों के लिए खेतों में काम किया, आज है 'कबड्डी का सुपरस्टार'
कभी-कभी ऐसा होता है कि आपके ऊपर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ता और आपको समझ नहीं आता कि इससे बाहर कैसे निकलें। लेकिन यदि आपने उनका जमकर मुकाबला कर लिया तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। 'कबड्डी के हीरो' सीरीज की पहली पांच किश्तों में हमने आपको प्रदीप नरवाल, कैप्टन कूल अनूप कुमार, राहुल चौधरी, अजय ठाकुर और मोनू गोयत की कहानी बताई थी। दीपक हुड्डा की कहानी के साथ पेश है सीरीज की छठी किश्त।
हरियाणा में जन्में, बचपन में ही मां को खोया
10 जून, 1994 को हरियाणा के रोहतक जिले के छमरिया गांव में किसान परिवार के यहां दीपक का जन्म हुआ था। दीपक के पिता खेती करते थे और उनके घर में इसके अलावा कमाई का कोई और जरिया नहीं था। मात्र चार साल की उम्र में ही दीपक की मां का देहांत हो गया और बचपन में ही उनके सिर से मां का साया हट गया। दीपक बचपन से ही पढ़ने में बहुत अच्छे थे।
पिता की मौत हो जाने से पढ़ाई छोड़नी पड़ी
दीपक पढ़ाई में बहुत अच्छे थे और वह पढ़-लिखकर अपना और अपने परिवार का नाम रोशन करना चाहते थे। हालांकि जब वह 12वीं में थे तभी उनके पिता की भी मौत हो गई और उनके ऊपर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। दीपक के सामने विकट स्थिति थी कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखें या फिर घर के लिए पैसे कमाएं। हालांकि पढ़ाई जारी रखने के लिए भी उन्हें पैसों की जरूरत थी और इसी वजह से उनकी पढ़ाई छूट गई।
बहन और उसके बच्चों को पालने के लिए किया कड़ा संघर्ष
पिता की मौत होने के बाद दीपक की शादीशुदा बहन अपने दो बच्चों के साथ दीपक के साथ उनके ही घर पर रहने लगी थीं। बहन तथा उसके दोनों बच्चों के साथ-साथ अपने खर्चे के लिए दीपक को काफी संघर्ष करना पड़ा। सुबह सुबह उठकर दीपक पास के स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाते थे और फिर वहां से आकर खेतों में भी काम करते थे। पैसे कमाने के लिए ही उन्होंने कबड्डी खेलना भी शुरु किया था।
शुद्ध शाकाहारी हैं दीपक
दीपक हुड्डा शुद्ध शाकाहारी हैं। उन्हें बादाम बहुत पसंद है और वह दूध में बादाम मिलाकर पीते हैं। इसके अलावा वह कच्चा पनीर भी खाते हैं। भोजन में उन्हें रोटी-दाल खाना ज़्यादा पसंद है। दीपक कसरत पर भी काफी ध्यान देते हैं।
बिना किसी सपोर्ट के कबड्डी में बनाई पहचान
काफी परेशानियों से जूझ रहे दीपक को सपोर्ट करने वाला कोई नहीं था लेकिन उन्होंने अकेले अपनी जंग जारी रखी। सुबह-शाम कबड्डी की प्रैक्टिस करते रहे और धीरे-धीरे आस पड़ोस के लोगों को पता चल गया कि वह अच्छे कबड्डी प्लेयर हैं। कबड्डी के टूर्नामेंट्स में दीपक बराबर खेलने जाते थे और उन्हें घर चलाने के लिए पैसे मिल जाते थे। पैसे कमाने के लिए शुरु हुआ यह सफर कब जुनून बन गया यह दीपक को भी नहीं पता चला।
2013 में पहली बार मिली पहचान
2013 में दीपक ने पटना में अपना पहला सीनियर नेशनल टूर्नामेंट खेला जहां उन्हें टूर्नामेंट का बेस्ट खिलाड़ी चुना गया। लगभग डेढ़ महीने बाद दीपक को भारतीय कबड्डी टीम के कैंप के लिए बुलाया गया।
प्रो कबड्डी में पहली बार बिकने पर नहीं हुआ था भरोसा
प्रो कबड्डी के पहले सीजन की नीलामी में जब दीपक Rs 12.6 लाख में बिके तो उन्हें भरोसा ही नहीं हो रहा था। उनके दोस्तों ने उन्हें फोन करके जब यह सूचना दी तो उन्हें लगा कि यह एक मजाक है। हालांकि भारतीय कबड्डी फेडरेशन के अधिकारी का फोन आने के बाद दीपक को यह भरोसा हो गया कि उन्हें वास्तव में इतने पैसे मिले हैं। पहले सीजन में दीपक दूसरे सबसे महंगे खिलाड़ी बने थे।
2016 में किया भारतीय कबड्डी टीम में डेब्यू
2016 साउथ एशियन गेम्स में दीपक ने भारतीय कबड्डी टीम के लिए अपना डेब्यू किया था। 2016 में कबड्डी वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय टीम में दीपक भी शामिल थे। अपने डेब्यू के बाद से दीपक ने भारत के लिए लगभग हर टूर्नामेंट खेला है।
छठे सीजन में बने करोड़पति
पहले दो सीजन तेलुगु टाइटंस में खेलने के बाद दीपक ने अगले तीन सीजन पुणेरी पल्टन में खेला। छठे सीजन में जयपुर पिंक पैंथर्स नें दीपक को Rs. 1.15 करोड़ में खरीदा। नीलामी के समय दीपक स्टार स्पोर्ट्स के स्टूडियो में ही मौजूद थे और अपने लिए लगाई जा रही बिड को देख रहे थे। उस समय दीपक के दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था लेकिन जब जयपुर ने उन्हें खरीदा तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा।