भारतीय फुटबॉल: आखिर क्यों ISL से बेहतर है I-League, जानें
क्या है खबर?
पिछले पांच सालों से भारत में दो फुटबॉल लीग खेली जा रही है। एक है 22 साल पुरानी आई-लीग (I-League) तो वहीं दूसरी है पांच साल पहले शुरु हुई ISL.
दोनों ही लीगों में काफी अंतर है और जब से ISL शुरु हुआ है इसने काफी लोकप्रियता हासिल की है क्योंकि लीग का प्रचार-प्रसार काफी अच्छे से किया गया है।
अक्सर बात होती है कि दोनों लीग्स में बेहतर कौन है?
आइए इस प्रश्न का उत्तर जानें।
प्रतिस्पर्धा
ISL के मुकाबले ज़्यादा प्रतिस्पर्धी है आई-लीग
पिछले दो सीजन से ISL में 10 टीमें खेल रही हैं। यहां चैंपियन बनने के लिए टीम को सेमीफाइनल और फाइनल जीतना होता है।
आई-लीग की बात करें तो इसमें फिलहाल 11 टीमें खेल रही हैं और अंतिम मुकाबले तक लीग को टॉप करने वाली टीम चैंपियन बनती है।
ISL में प्रतिस्पर्धा का लेवल आई-लीग के मुकाबले कम है और इसका प्रमाण पिछले चार सीजन में चार टीमों का टाइटल रेस में बने रहना है।
आई-लीग
22 साल पुरानी लीग है आई-लीग
नेशनल फुटबॉल लीग की शुरुआत 1997 में हुई थी, लेकिन बड़ी मुश्किल से साथ इसके कुछ मैच ही ब्रॉडकास्ट किए जाते थे।
2007 में लीग का नाम बदलकर आई-लीग किया गया और इसकी लोकप्रियता में बढ़ाव आया, लेकिन ब्रॉडकास्ट और इन्वेस्टमेंट की समस्या लगातर बनी रही।
बिना किसी प्रचार और काफी कम बजट के बावजूद लीग 22 सालों से लगातर चल रही है जबकि ISL मात्र पांच साल पुरानी लीग है और उनके पास काफी बड़ा बजट है।
टैलेंट
आई-लीग से निकलकर आते हैं बेहतर टैलेंट
आई-लीग ने भारतीय फुटबॉल को एक से बढ़कर एक टैलेंट दिए हैं। बाईचुंग भूटिया, सुब्रतो पॉल, गुरप्रीत सिंह संधू और सुनील छेत्री जैसे बड़े खिलाड़ी आई-लीग की ही देन हैं।
ISL ने भी संदेश झिंगन को सुपरस्टार बनाया, लेकिन उन्हें खेल की समझ आई-लीग ने ही सिखाई थी।
इसके अलावा ISL में काफी ज़्यादा पैसे लगे होते हैं तो खेल का पूरा केंद्र विदेशी खिलाड़ियों पर रखा जाता है।
भारतीय खिलाड़ियों को उतने मौके नहीं मिल पाते हैं।
अस्तित्व
बिना किसी खास मदद के लीग ने अपना अस्तित्व बचाए रखा है
आई-लीग पर कभी भी ध्यान नहीं दिया गया। न तो लीग का प्रचार किया गया और न ही इसमें पैसे लगाए गए।
जब मैचों को टीवी पर दिखाया ही नहीं जाएगा तो क्लबों को स्पॉन्सर कैसे मिलेंगे? इतने बुरे हालात के बावजूद लीग ने अपने अस्तित्व को बरकरार रखा है।
ISL में पहले सीजन से ही क्लबों के पास ढेर सारे स्पॉन्सर भी थे और लीग को खूब ज़्यादा प्रचारित भी किया जा रहा था।
क्लब
आई-लीग क्लबों के सामने टिक नहीं पाती हैं ISL क्लब
बेंगलुरु FC पहले आई-लीग में खेलती थी और वहां उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।
उसी बेंगलुरु FC ने ISL में आते ही ऐसा कोहराम मचाया कि उन्हें कोई हरा ही नहीं पा रहा है। लगातार दो सीजन बेंगलुरु ने लीग टॉप किया और फाइनल में पहुंचे।
इसके अलावा हाल ही में केरला ब्लास्टर्स को युवा इंडियन एरोज ने शर्मनाक हार दी थी। खेल के मामले में किसी तरह आई-लीग क्लबों के सामने ISL क्लब नहीं टिकते हैं।
अटेंडेंस
ISL और आई-लीग मैचों की अटेंडेंस में हुआ है भारी बदलाव
जब ISL की शुरुआत हुई थी तो काफी लोग स्टेडियम जाते थे। हर मैच में काफी बढ़िया अटेंडेंस होती थी।
हालांकि, पिछले 2-3 सालों में इस अटेंडेंस में काफी गिरावट आई है। केरला ब्लास्टर्स के पास सबसे ज़्यादा क्राउड होता था जो अब बदलकर आई-लीग क्लब गोकुलम केरला के पास चला गया है।
चेन्नइन FC की बजाय लोग चेन्नई सिटी FC के मैच देखना पसंद कर रहे हैं। लगातार ISL मैचों में स्टेडियम खाली दिख रहे हैं।
स्ट्रक्चर
आई-लीग के पास है कायदे का स्ट्रक्चर
ISL में लगातार ग्रुप स्टेज के मुकाबले खेले जाते हैं और उसके बाद टॉप-4 टीमें सेमीफाइनल और फाइनल खेलती हैं।
आई-लीग में अतिम दिन तक अंक तालिका को टॉप करने की होड़ बनी रहती है। लीग का मतलब ही यही होता है कि टॉप पर रहने वाली टीम चैंपियन बने।
इसके अलावा आई-लीग की टीमें सेकेंड डिवीजन के लिए रेलीगेट होती हैं तो वहीं ISL में रेलिगेशन जैसा कुछ है ही नहीं।