नासा के ये महत्वपूर्ण मिशन अब तक हुए हैं असफल, आप भी जानिए
क्या है खबर?
अंतरिक्ष एजेंसी नासा कई दशकों से ब्रह्मांड के रहस्यों का खुलासा कर रही है और इसके लिए अनेक अंतरिक्ष मिशन लॉन्च किए हैं। इनमें से कुछ मिशन सफल रहे, जबकि कई मिशन असफल भी रहे।
हालांकि, इन असफलताओं ने वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी विकास में महत्वपूर्ण सबक प्रदान किए, जिससे भविष्य के अभियानों की योजना बनाने में मदद मिली।
आइए नासा के कुछ बड़े असफल मिशनों के बारे में जानते हैं।
मंगल
मार्स पोलार लैंडर
मार्स पोलार लैंडर का मिशन 1999 में मंगल ग्रह की सतह पर लैंडर भेजना था, जिसका उद्देश्य वहां के मौसम और मिट्टी का अध्ययन करना था।
हालांकि, मिशन असफल रहा क्योंकि लैंडर को पहुंचने के समय सही जानकारी नहीं मिली, जिससे यह अपने निर्धारित कार्य को पूरा नहीं कर सका।
लैंडर के संचार सिग्नल प्राप्त नहीं हुए, जिसके कारण वैज्ञानिकों का इससे संपर्क टूट गया, जिससे यह अपने उद्देश्यों को पूरा करने में असफल रहा।
पृथ्वी
अर्थ ऑब्जरवेटरी (EO-1)
अर्थ ऑब्जरवेटरी (EO-1) का मिशन 2000 में पृथ्वी की सतह और पर्यावरण का अध्ययन करने के लिए लॉन्च किया गया था। यह एक प्रायोगिक मिशन था, लेकिन यह सफल नहीं हो सका।
मिशन के एक एडवांस्ड लैंड इमेजर उपकरण में तकनीकी समस्याएं आईं, जिससे इसका कार्य प्रभावित हुआ। इस कारण कुछ डाटा अधूरे रह गए और मिशन के उद्देश्य पूरे नहीं हो सके, जिससे वैज्ञानिकों को आवश्यक जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई।
सूर्य
स्टीरियो (STEREO)
स्टीरियो (STEREO) मिशन को 2006 में लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य सूर्य का 3D अध्ययन करना था, ताकि सौर गतिविधियों की बेहतर समझ हासिल की जा सके।
हालांकि, एक सिग्नल समस्या के चलते एक स्टीरियो सैटेलाइट का संपर्क टूट गया। जबकि दूसरा सैटेलाइट ठीक से कार्य करता रहा, लेकिन पूरी डाटा सेट प्राप्त नहीं हो सकी। इस वजह से, मिशन के लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जा सका और वैज्ञानिकों को सूरज के बारे में आवश्यक जानकारी नहीं मिली।
प्लूटो
न्यू होराइजन्स
न्यू होराइजन्स मिशन को नासा ने 2006 में लॉन्च किया था। इस मिशन का उद्देश्य प्लूटो और उसके चंद्रमा कार्से का अध्ययन करना था, लेकिन 2014 में प्लूटो के निकट पहुंचने पर कुछ महत्वपूर्ण डाटा खो गए, जिससे महत्वपूर्ण मिशन में रुकावट आई।
वैसे तो मिशन ने कई महत्वपूर्ण खोजें कीं, लेकिन सभी आवश्यक डाटा उपलब्ध नहीं हो सके। इस स्थिति के कारण वैज्ञानिकों को पूरी जानकारी प्राप्त करने में कठिनाई हुई।
मंगल
कोनस्ट्रेंट फॉरवर्ड
कोनस्ट्रेंट फॉरवर्ड मिशन 2010 में लॉन्च हुआ था, जिसका लक्ष्य मंगल ग्रह की सतह की रासायनिक संरचना का अध्ययन करना था, लेकिन जब यह मंगल पर पहुंचा, तो लैंडर में तकनीकी समस्याएं उत्पन्न हुईं और यह सही से कार्य नहीं कर सका।
इसके कई उपकरण काम नहीं कर पाए, जिससे महत्वपूर्ण डेटा हासिल नहीं हो सका। इस वजह से वैज्ञानिकों को मंगल के रासायनिक तत्वों की जानकारी इकट्ठा करने में दिक्कत हुई।