#NewsBytesExplainer: चांद पर सूर्य अस्त होने के बाद चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर का क्या होगा?
क्या है खबर?
चंद्रयान-3 का लैंडर बीते दिन शाम 6:04 बजे चांद की सतह पर उतरा। यह सफलता भारत के साथ ही देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए एक बड़ी जीत है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के मुताबिक, चंद्रयान-3 के रोवर प्रज्ञान ने लैंडर से नीचे उतरकर चांद की सतह पर सैर भी की।
लैंडर और रोवर दोनों को 2 हफ्तों तक सूर्य का प्रकाश मिलेगा। इसके बाद चांद पर रोशनी नहीं होगी तो जानिए लैंडर और रोवर का क्या होगा।
निर्भरता
ऊर्जा के लिए सूरज की रोशनी पर निर्भर हैं लैंडर और रोवर
चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर ऊर्जा के लिए सौर ऊर्जा पर निर्भर हैं। ऐसे में इनके लिए सूर्य की रोशनी जरूरी है। चांद पर धरती के 14 दिनों तक सूर्य की रोशनी पहुंचती है और फिर इतने ही समय के लिए सूर्य अस्त हो जाता है।
सूर्य अस्त होने से चांद की सतह का तापमान -180 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है।
रोशनी न मिलने से इन्हें ऊर्जा नहीं मिलती और ठंड से उपकरण जमकर खराब हो सकते हैं।
लैंडिंग
इस वजह से लैंडिंग के लिए निर्धारित की गई थी 23 अगस्त की तारीख
चांद पर सूर्य के प्रकाश का नया चक्र 23 अगस्त को शुरू हुआ है और यही कारण है कि ISRO ने सॉफ्ट लैंडिंग के लिए इस दिन को चुना था।
चंद्रयान-3 मिशन की अवधि भी 1 चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिन) तक है। 14 दिनों बाद सूर्य अस्त हो जाएगा और मिशन काम करना बंद कर देगा।
हालांकि, संभावना जताई गई है कि दोबारा सूर्य की रोशनी पहुंचने पर मिशन फिर से काम शुरू कर सकता है।
जानकारी
लैंडिंग असफल रहने पर किया जाता यह काम
बीते दिन चंद्रयान की लैंडिंग असफल रहती तो 24 अगस्त को फिर लैंडिंग का प्रयास होता। इसके बाद भी विफल रहने पर नए चंद्र दिवस के इंतजार के लिए 29 दिनों (बचे हुए दिन और रात) के लिए लैंडिंग स्थगित कर दी जाती।
तापमान
चांद की ठंड झेल जाने पर आगे भी काम कर सकते हैं लैंडर और रोवर
ISRO अध्यक्ष एस सोमनाथ के अनुसार, सूरज डूबने से चांद की सतह पर अंधकार होने और वहां का तापमान 180 डिग्री सेल्सियस नीचे चले जाने से सिस्टम का ठीक बने रहना संभव नहीं है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अगर इसके बाद भी यह सिस्टम ठीक रहता है तो यह फिर काम कर पाएगा।
दरअसल, अगर लैंडर और रोवर चांद की ठंड झेल गए तो ये 14 दिन बाद दोबारा रोशनी मिलने पर फिर काम शुरू कर सकते हैं।
मिशन
चंद्रयान-3 का कोई भी हिस्सा पृथ्वी पर नहीं आएगा वापस
मिशन के पूरा होने के बाद भी चंद्रयान-3 का कोई हिस्सा पृथ्वी पर वापस नहीं आएगा। चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर चांद पर ही रहेंगे।
इससे पहले भेजे गए चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर भी चांद पर ही हैं।
17 अगस्त, 2023 को जब चंद्रयान-3 का लैंडर और प्रोपल्शन (प्रणोदन) मॉड्यूल अलग हुए थे तब ISRO ने बताया था कि चांद पर अब 3 यान (चंद्रयान-1, चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3) चक्कर काट रहे हैं।
रोवर
रोवर करेगा ये काम
6 पहियों वाला रोबोटिक वाहन रोवर चांद पर मौजूद खनिजों, केमिकल्स, चांद के मौसम आदि का विश्लेषण करेगा और उनसे जुड़ी जानकारी इकट्ठा करेगा। रोवर सभी डाटा लैंडर को भेजेगा क्योंकि यह सिर्फ उसी से बातचीत कर सकता है।
रोवर के पहियों पर ISRO का लोगो और अशोक स्तम्भ बना हुआ है। ऐसे में रोवर चांद की सतह पर जहां-जहां जाएगा, वहां ISRO का लोगो और अशोक स्तम्भ बनता चला जाएगा। इस तरह भारत चांद पर अपने निशान छोड़ेगा।
लैंडर
धरती पर डाटा भेजेगा लैंडर
लैंडर का काम चांद की सतह पर सूरज से आने वाले प्लाजमा कणों के घनत्व, उनकी मात्रा की जांच करना है। यह चांद की सतह के तापमान की जांच करेगा।
इसके अलावा लैंडर लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीय गतिविधियों की जांच करेगा और चांद के डायनेमिक्स को समझने का प्रयास करेगा।
लैंडर ही रोवर के डाटा को बेंगलुरू स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (IDNS) को भेजेगा, जिसका प्रयोग वैज्ञानिक आगे की खोज के लिए करेंगे।
उपलब्धि
दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडिंग वाला पहला देश बना भारत
चंद्रयान-3 को 14 जुलाई, 2023 को लॉन्च किया गया था और 23 अगस्त, 2023 को यह चांद की सतह पर पहुंचा। इस यात्रा में इसे लगभग 40 दिन लगे।
चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास अंतरिक्ष यान उतारने वाला पहला देश बन गया है।
इसके साथ ही अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा ऐसा देश बन गया है, जिसके पास चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की क्षमता है।