देश और दुनिया के लिए क्यों महत्वपूर्ण है ISRO का चंद्रयान-2 मिशन?
क्या है खबर?
लगभग 3,84,000 किलोमीटर की दूरी तय कर भारत की मून मिशन चंद्रयान-2 चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग को तैयार है।
शनिवार रात 1:30 मिनट पर विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा। पूरे देश और दुनिया की नजरें इस मिशन पर टिकी हुई है।
पूरी जनता इसे लेकर उत्साहित हैं। हालांकि, कम लोगों को पता है कि इस मिशन से हासिल क्या होगा।
आइये, जानते हैं कि यह मिशन भारत और दुनिया के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
लैंडिंग
चांद के दक्षिण ध्रुव पर उतरेगा विक्रम
ISRO का विक्रम लैंडर चांद के दक्षिण ध्रुव पर लैंड करेगा। यह ऐसा क्षेत्र है जहां आज तक कोई नहीं गया है।
यहां कुछ नया मिलने की संभावना ज्यादा है। यह इलाका अधिकतर समय छाया में रहता है। सूरज की किरणों न पहुंच पाने के कारण यहां ठंड है। इसलिए यहां पानी के संकेत मिलने की संभावना भी ज्यादा है।
अगर चांद पर पानी मिलता है तो यह इंसानी बस्ती बसाने का रास्ता खोल सकता है।
जानकारी
दक्षिण ध्रुव पर उतरने की वजह
इसकी दूसरी वजह यह है कि यहां उतरने से चांद के निर्माण को गहराई से समझने में मदद मिलेगी। यहां की सतह की जांच भविष्य के मिशनों को आसान बनाने में मदद मिलेगी। यहां की मिट्टी की बनावट आदि के बारे में भी जानकारी मिलेगी।
मकसद
इस मिशन से हासिल क्या होगा?
ISRO का कहना है कि चांद पर सोलर सिस्टम को लेकर कई बड़े राज छिपे हैं। इनका संबंध पृथ्वी के इतिहास से है।
चांद की सतह की जांच इसके बनने और विकसित होने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी दे सकती है।
चंद्रयान-2 के तहत भेजा गया रोवर चंद्रयान-1 द्वारा खोजे गए पानी के अणुओं का विस्तृत अध्ययन करेगा।
इस मिशन के जरिए ISRO चांद की चट्टानों में मैग्नीशियम, कैल्शियम और लोहे जैसे खनिज तत्वों को खोजने का प्रयास करेगा।
सॉफ्ट लैंडिंग
सॉफ्ट लैंडिंग बड़ी बात क्यों?
विक्रम चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। दरअसल, विक्रम चांद की निचली कक्षा में हजारों किमी प्रति घंटे की स्पीड से घूम रहा है।
अगर इतनी स्पीड से चल रही किसी भी चीज को लैंड कराया जाए तो वह क्रैश हो जाएगी।
ऐसे में विक्रम को लैंड कराने के लिए उसकी स्पीड बेहद कम की जाएगी। इसके बाद धीरे-धीरे यह चांद की सतह पर उतरेगा।
सॉफ्ट लैंडिंग को बड़ी बात क्यों माना जा रहा है? इसका जवाब नीचे पढ़िए।
सॉफ्ट लैंडिंग
ईंधन के जरिए कंट्रोल में है विक्रम
वैज्ञानिक गौहर रजा ने इसे लेकर बीबीसी हिंदी पर एक लेख लिखा है।
इसमें उन्होंने लिखा है कि चांद पर गुरुत्वाकर्षण बल और वायुमंडल की परिस्थिति बहुत अलग है। धरती के विपरित चांद पर हवा नहीं है।
ऐसे में वहां लैंडर की स्पीड कम करने, तेज करने और घुमाने के लिए ईंधन की जरूरत होती है। इसमें बेहद सटीकता और तेजी चाहिए।
भारत इसी तकनीक के सहारे चांद की सतह पर अपनी छाप छोड़ने वाला है।
विजन
अंतरिक्ष मिशनों को लेकर क्या सोचते थे विक्रम साराभाई?
विक्रम साराभाई को भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम का जनक कहा जाता है।
उन्होंने 1960 के दशक में अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शुरुआत को लेकर हो रही आलोचनाएं के जवाब में कहा था, "अंतरिक्ष प्रोग्राम का देश और लोगों की बेहतरी में सार्थक योगदान है। भारत को चाहिए कि समाज और लोगों की समस्या को सुलझाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करे।"
चंद्रयान-2 में भेजे गए लैंडर का नाम विक्रम साराभाई के नाम पर ही रखा गया है।