चंद्रयान-3 का प्रोपल्शन मॉड्यूल चांद के असर से कैसे नई कक्षा में पहुंचा?
क्या है खबर?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के चंद्रयान-3 मिशन की एक नई जानकारी सामने आई है। चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल का कक्षा चांद के पास गुरुत्वाकर्षण असर से बदल गया है। मिशन पूरा होने के बाद यह मॉड्यूल अलग किया गया था। वैज्ञानिकों के मुताबिक, चांद की खिंचाव शक्ति ने इसके रास्ते को प्रभावित किया। इस बदलाव के कारण मॉड्यूल का कक्षा पहले से ज्यादा फैला और ऊंचा पाया गया, जिसे विशेषज्ञों ने महत्वपूर्ण वैज्ञानिक घटना बताया है।
घटना
खगोल वैज्ञानिक की अहम जानकारी
खगोल वैज्ञानिक जोनाथन मैकडॉवेल ने 30 दिसंबर को बताया कि छोड़ा गया प्रोपल्शन मॉड्यूल नवंबर में चांद के काफी करीब पहुंचा। पहले यह 1,25,000×3,05,000 किलोमीटर के कक्षा में था, लेकिन चांद के पास से गुजरने के बाद इसका ऑर्बिट बदलकर 3,65,000×9,83,000 किलोमीटर हो गया। इस दौरान कक्षा का झुकाव भी 22 डिग्री दर्ज किया गया, जिससे वैज्ञानिकों को कक्षा गतिकी पर नया डाटा मिला और यह भविष्य के मिशनों में काम आएगा।
योजना
मिशन की सफलता के बाद आगे की योजना
ISRO ने चंद्रयान-3 को 14 जुलाई, 2023 को लॉन्च किया था और अगस्त में चांद के साउथ पोल के पास सफल लैंडिंग कराई। मिशन का मुख्य लक्ष्य विक्रम लैंडर की सुरक्षित उतराई और प्रज्ञान रोवर का संचालन था। लक्ष्य पूरे होने के बाद भी प्रोपल्शन मॉड्यूल में काफी ईंधन बचा था, जिससे आगे के प्रयोग संभव हो सके। वैज्ञानिकों ने अतिरिक्त अवलोकन और उड़ान डाटा जुटाने का निर्णय लिया, जो मिशन के लिए उपयोगी हुआ।
रास्ता
चांद की गुरुत्वाकर्षण से बदला रास्ता
अक्टूबर, 2023 में ISRO ने प्रोपल्शन मॉड्यूल को पृथ्वी की ओर भेजने का फैसला किया था। ट्रांस-अर्थ इंजेक्शन बर्न के जरिए इसकी गति बढ़ाई गई, जिससे यह पृथ्वी के चारों ओर बहुत लंबी अंडाकार कक्षा में चला गया। बाद में नवंबर में यह 2 बार चांद के प्रभाव क्षेत्र के पास से गुजरा, जहां गुरुत्वाकर्षण ने इसे अतिरिक्त किक दी। इन फ्लाईबाई से कक्षा और झुकाव में बड़ा बदलाव आया, जिसे ट्रैकिंग नेटवर्क ने रिकॉर्ड किया है।
सीख
भविष्य के मिशनों के लिए सीख
इन घटनाओं को ISRO के इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क और ISTRAC ने लगातार ट्रैक किया। वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद की ग्रेविटी कई बार स्पेसक्राफ्ट के रास्ते को बदल देती है, लेकिन यह घटना भविष्य के मिशनों की योजना में मदद करेगी। चंद्रयान-3 की यह कहानी दिखाती है कि मिशन खत्म होने के बाद भी अंतरिक्ष में विज्ञान जारी रहता है। उनमें छोटे बदलाव भी बड़े नतीजे ला सकते हैं, जिसे समझना जरूरी है।