
चीन ने निकाला हाइपरलूप समस्या का हल, जिससे मस्क को बंद करना पड़ा था अपना प्रोजेक्ट
क्या है खबर?
चीन ने वह समाधान खोज लिया है, जिसकी कमी ने एलन मस्क के हाइपरलूप प्रोजेक्ट को ठप कर दिया था।
मस्क का हाइपरलूप 1,000 किमी/घंटा की रफ्तार से यात्रा का सपना था, लेकिन वैक्यूम ट्यूब की स्थिरता, चुंबकीय प्रतिरोध, महंगी धातु पाइप और सटीक ट्रैकिंग जैसी समस्याओं के कारण यह सफल नहीं हो सका।
चीन तकनीकों और उन्नत निर्माण पद्धतियों से इन सभी बाधाओं को दूर कर लिया है और दुनिया के पहले सफल हाइपरलूप का परीक्षण कर दिखाया है।
वैक्यूम ट्यूब
नई तकनीक से चीन ने बनाई स्थिर वैक्यूम ट्यूब
चीन के वैज्ञानिकों ने कंक्रीट और स्टील का मिश्रण तैयार किया, जो वैक्यूम में भी स्थिर रह सकता है। आमतौर पर कंक्रीट वैक्यूम में टूट जाता है, लेकिन चीन ने इसे खास फाइबर और सिलिका से मजबूत बनाया।
इसके अलावा, उन्होंने ऊर्जा की बर्बादी रोकने के लिए चुंबकीय प्रतिरोध को कम करने वाली तकनीक अपनाई। लेजर-निर्देशित ट्रैक और AI-संचालित सेंसर से ट्रैक की सटीकता मिलीमीटर स्तर तक पहुंचा दी, जिससे हाई-स्पीड यात्रा संभव हो गई।
परीक्षण
पहली बार चीन में सफल हाइपरलूप परीक्षण
22 जुलाई, 2024 को चीन ने शांक्सी प्रांत में 2 किमी लंबी हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक पर सफल परीक्षण किया।
इसमें वाहन 22 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर बिना किसी झटके के चला, जिससे साबित हुआ कि चीन की नई तकनीक सुरक्षित और प्रभावी है।
ट्यूब की दीवारों में लगे सेंसरों ने हलचल को ट्रैक किया, जिससे सुपरकंडक्टिंग सिस्टम को वास्तविक समय में समायोजित किया गया। यह उन खामियों को दूर करने में सफल रहा, जिससे मस्क का प्रोजेक्ट असफल हुआ था।
भविष्य
भविष्य में चीन का हाइपरलूप विस्तार
अब चीन इस हाइपरलूप सिस्टम को बड़े पैमाने पर लागू करने की योजना बना रहा है।
बीजिंग-शंघाई जैसे प्रमुख रूट्स पर इसे शुरू करने के लिए अरबों डॉलर की जरूरत होगी, लेकिन चीन की मॉड्यूलर निर्माण तकनीक से लागत 60 प्रतिशत तक कम की जा सकती है।
हालांकि, लंबी दूरी पर ट्यूब की स्थिरता और आपातकालीन स्थितियों से निपटने जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं, लेकिन चीन ने दिखा दिया है कि मस्क का अधूरा सपना हकीकत बन सकता है।