सचिन पायलट: कांग्रेस से जुड़ने से लेकर बगावत तक, ऐसा रहा है 17 साल का सफर
राजस्थान में कांग्रेस से खुली बगावत कर सचिन पायलट सुर्खियों में हैं। 42 वर्षीय पायलट को कांग्रेस ने उप मुख्यमंत्री और प्रदेश प्रमुख पद से हटा दिया है। कॉर्पोरेट की नौकरी की चाह रखने वाले पायलट 26 साल की उम्र में अपना पहला चुनाव जीते। 32 साल की उम्र में केंद्रीय मंत्री बने और 36 साल की उम्र में कांग्रेस ने राजस्थान में पार्टी की कमान उनके हाथ सौंप दी। आइये, पायलट के सफर पर एक नजर डालते हैं।
पिता की मौत के बाद रखा राजनीति में कदम
अपने पिता राजेश पायलट की असमय मौत के बाद सचिन पायलट ने राजनीति में कदम रखा। उनके पिता की सन 2000 में मौत हुई थी। 2003 में सचिन ने कांग्रेस का हाथ थामा और राजस्थान के दौसा से पहली बार लोकसभा सांसद चुने गए। इस सीट पर उनके पिता राजेश पायलट ने पांच बार चुनाव लड़ा था, जिसमें से चार बार उन्हें जीत हासिल हुई। सचिन की मां रमा पायलट भी दौसा से सांसद रह चुकी हैं।
पिता की राजनीतिक विरासत का मिला फायदा
सचिन की उम्र 26 साल थी, जब उन्होंने अपना पहला चुनाव जीता। अपने पिता की राजनीतिक विरासत के सहारे सचिन राजस्थान में अपनी जमीन मजबूत करने में कामयाब रहे। राजनीति में आने से पहले उनके पिता भारतीय वायुसेना में स्क्वैड्रन लीडर रैंक के लड़ाकू पायलट थे और उन्होंने 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी अपनी सेवाएं दी थीं। सचिन ने अपना पारिवारिक उपनाम 'बिधुड़ी' छोड़कर पिता के नाम से पायलट अपने नाम में जोड़ा।
जातीय समीकरणों के कारण हाथ से गई मुख्यमंत्री की कुर्सी
साल 2018 में जब कांग्रेस विधानसभा चुनाव जीतकर सत्ता में आई तो उनकी जाति उनके आड़े आ गई। बतौर इंडिया टूडे, बिधुड़ी-गुज्जर कनेक्शन के कारण सचिन जातीय समीकरण नहीं साध पाए और मुख्यमंत्री पद की बाजी अशोक गहलोत के हाथ लग गई।
राजनीति में नहीं थी सचिन की दिलचस्पी
अपने पिता के जीवित रहते हुए सचिन ने राजनीति में आने की जरा भी दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। वो हमेशा से अपने पिता की तरह भारतीय वायुसेना में शामिल होना चाहते थे, लेकिन नजर कमजोर होने के कारण उन्होंने यह सपना छोड़ दिया। बाद में वो प्रादेशिक सेना का हिस्सा बने। प्रादेशिक सेना भारतीय सेना की एक ईकाई है। इसके स्वयंसेवकों को कुछ दिनों का सैनिक प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि जरूरत पड़ने पर उनकी सेवा ली जा सके।
दिल्ली से की पढ़ाई, इन जगहों पर किया काम
सचिन पायलट ने अपनी स्कूली और कॉलेज शिक्षा दिल्ली से पूरी की। उन्होंने मशहूर सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरी की और MBA करने के लिए अमेरिका चले गए। एक इंटरव्यू में सचिन ने कहा था कि वो कॉर्पोरेट की नौकरी करना चाहते थे। राजनीति में आने से पहले उन्होंने पत्रकारिता में भी हाथ आजमाया था और दिल्ली स्थित बीबीसी के ऑफिस में इंटर्नशिप की। कुछ समय के लिए उन्होंने अमेरिकी ऑटो कंपनी जनरल मोटर्स में भी काम किया।
2014 में बने राजस्थान के कांग्रेस प्रमुख
राजनीति में आने के बाद सचिन ने अपने पिता की तरह लोगों से जुड़े रहे। शुरुआती दिनों में वो अपनी कार खुद चलाते थे और लंबे जनसंपर्क दौरे करते थे। 32 साल की उम्र में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए उन्हें केंद्रीय मंत्रीमंडल में जगह दी गई। 2014 के आम चुनावों से पहले कांग्रेस ने उन्हें जनवरी में अशोक गहलोत को हटाकर राजस्थान प्रदेश कांग्रेस समिति का प्रमुख बना दिया था।
2018 में भाजपा को सत्ता से बाहर किया
सचिन पायलट के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस लोकसभा चुनावों में बुरी तरह से हारी। मोदी लहर में सचिन पायलट अपना करिश्मा नहीं दिखा पाएगा। हालांकि, उन्होंने जनसंपर्क और लोगों के बीच जाना बंद नहीं किया। वो लगातार प्रदेश के दौरे करते हुए पार्टी को मजबूत बनाने का काम करते रहे। चार साल बाद 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में इसका असर दिखा और कांग्रेस ने वसुंधरा राजे को बाहर का रास्ता दिखाते हुए सत्ता हासिल की।
डेढ़ साल बाद कर दी पार्टी से बगावत
सत्ता में आने के बाद सचिन पायलट और उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि अब वो ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाते हुए सचिन पायलट को प्रदेश प्रमुख पद पर रखते हुए सरकार में नंबर दो यानी उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया, लेकिन पायलट को यह कुर्सी कभी रास नहीं आई। वो समय-समय पर मुख्यमंत्री न बनने की टीस जाहिर करते रहे और अब बगावत कर दी।