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    #NewsBytesExplainer: शिवसेना से पहले इन पार्टियों में भी हो चुकी है चुनाव चिन्ह को लेकर लड़ाई    
    शिवसेना से पहले इन पार्टियों में भी चुनाव चिन्ह को लेकर हुई लड़ाई

    #NewsBytesExplainer: शिवसेना से पहले इन पार्टियों में भी हो चुकी है चुनाव चिन्ह को लेकर लड़ाई    

    लेखन नवीन
    Feb 20, 2023
    09:15 pm

    क्या है खबर?

    चुनाव आयोग के फैसले के बाद शिवसेना के नाम और चुनाव चिन्ह को लेकर उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच की लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है।

    हालांकि, किसी पार्टी पर एकाधिकार और उसके चुनाव चिन्ह को लेकर झगड़ा भारतीय राजनीति में कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी कई पार्टियों में ऐसी लड़ाई देखने को मिली हैं।

    आइये कुछ ऐसे ही कुछ चर्चित विवादों पर एक नजर डालते हैं।

    लोक जनशक्ति पार्टी

    लोक जनशक्ति पार्टी के नाम और चुनावी चिन्ह की लड़ाई

    अक्टूबर, 2020 में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के संस्थापक और प्रमुख रामविलास पासवान की मौत के बाद उनके भाई पशुपति कुमार पारस और बेटे चिराग पासवान के बीच पार्टी के नियंत्रण को लेकर लड़ाई शुरू हुई थी।

    जून, 2021 में पशुपति ने पार्टी में विद्रोह कर दिया। इसके बाद चुनाव आयोग ने पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह फ्रीज कर दिया और दोनों को अलग-अलग नाम और चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिए।

    अभी मामले पर फैसला नहीं आया है।

    समाजवादी पार्टी

    समाजवादी पार्टी में भी प्रभुत्व के लिए हुआ था झगड़ा

    साल 2017 में समाजवादी पार्टी में भी चाचा-भतीजे के बीच पार्टी को लेकर झगड़ा देखने को मिला था। अखिलेश यादव मुलायम सिंह द्वारा स्थापित पार्टी चला रहे थे, लेकिन मुलायम की विरासत और पार्टी के चुनावी चिन्ह साइकिल को लेकर चाचा शिवपाल यादव से उन्हें चुनौती मिली थी।

    चुनाव आयोग तक पहुंची चुनाव चिन्ह की लड़ाई अखिलेश जीत गए थे। उनको पार्टी के अधिकांश नेताओं का समर्थन प्राप्त था और वह समाजवादी पार्टी के प्रमुख भी थे।

    तेलगु देशम पार्टी

    तेलगु देशम पार्टी में भी हुआ था विद्रोह

    साल 1995 में तेलगु देशम पार्टी (TDP) में चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर और आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनटी रामाराव के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। उन्हें अधिकांश पार्टी सदस्यों और विधायकों का समर्थन हासिल था।

    इसी बीच 18 जनवरी, 1996 को रामाराव का निधन हो गया और पार्टी के नियंत्रण को लेकर झगड़ा चुनाव आयोग तक पहुंचा और उसने चंद्रबाबू के पक्ष में फैसला सुनाया।

    इसके बाद उन्हें पार्टी का एकाधिकार और चुनावी चिन्ह मिल गया।

    AIADMK

    AIADMK में भी देखने को मिली थी वर्चस्व की लड़ाई

    दिसंबर, 1987 में तमिलनाडु में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) के संस्थापक एमजी रामचंद्रन के निधन के बाद पार्टी के नियंत्रण और उसके चुनाव चिन्ह को लेकर लड़ाई देखने को मिली थी।

    इसमें रामचंद्रन की पत्नी जानकी और मुख्यमंत्री जे जयललिता के बीच मुकाबला हुआ और जयललिता को कुछ समय बाद पार्टी की कमान मिल गई थी।

    जयललिता की मौत के बाद भी AIADMK में ओ पनीरसेल्वम और के पलानिस्वामी के बीच पार्टी पर वर्चस्व की लड़ाई हुई।

    कांग्रेस

    कांग्रेस के भी हो गए थे दो हिस्से

    1969 में इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद कांग्रेस पार्टी के 'सिंडिकेट' के खिलाफ विद्रोह किया। इसके कारण इंदिरा को तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष निजालिंगप्पा ने कांग्रेस से निष्कासित कर दिया।

    इंदिरा ने कांग्रेस के सदस्यों के साथ मिलकर कांग्रेस (R) का गठन किया, लेकिन चुनाव आयोग ने कांग्रेस के चुनाव चिन्ह 'दो बैलों की जोड़ी और हल' पर दावों को खारिज कर दिया।

    1977 में इंदिरा ने कांग्रेस (I) का गठन किया और पार्टी को 'हाथ' चुनावी चिन्ह मिला।

    शिवसेना 

    शिवसेना से संबंधित मामला क्या है?

    एकनाथ शिंदे और ठाकरे गुट में शिवसेना को लेकर छिड़ी जंग के बीच चुनाव आयोग ने शिंदे गुट के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उसे शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह दे दिया है।

    दरअसल, जून, 2022 में शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना उनके और ठाकरे के दो गुटों में बंट गई थी। दोनों ही गुटों ने शिवसेना पर अपनी-अपनी दावेदारी पेश की थी और मामला चुनाव आयोग फैसले के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है।

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