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    'अबकी बार 300 पार' के नारे को 'आधुनिक चाणक्य' अमित शाह ने हकीकत में कैसे बदला?

    'अबकी बार 300 पार' के नारे को 'आधुनिक चाणक्य' अमित शाह ने हकीकत में कैसे बदला?

    लेखन प्रमोद कुमार
    May 24, 2019
    01:12 pm

    क्या है खबर?

    लोकसभा चुनावों में भाजपा को भारी बहुमत मिला है। इस जीत ने चुनावों को ध्यान में रखकर बनाए गए सारे समीकरणों को ध्वस्त कर दिया है।

    इस जीत के पीछे भारतीय राजनीति के 'आधुनिक चाणक्य' कहे जा रहे अमित शाह की रणनीति है।

    भाजपा का अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने पार्टी को जीत की आदत डाल दी है। बूथ स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक रणनीति बनाने में शाह की कुशलता के सामने कोई भी पार्टी नहीं टिक पाई।

    जानकारी

    गठबंधन बनाने और उम्मीदवारों के चयन में कोई सानी नहीं

    एक समय में प्रमोद महाजन को भाजपा का सबसे बड़ा रणनीतिकार कहा जाता था। जानकारों का कहना है कि अमित शाह ने महाजन को पीछे छोड़ दिया है। नए गठबंधन बनाने और जीतने लायक उम्मीदवार चुनने में शाह का कोई सानी नहीं है।

    तैयारियां

    सबसे पहले पार्टी के आधार को किया मजबूत

    अमित शाह ने 2014 लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा का नेतृत्व संभाला था। अपने कार्यकाल का पहला साल उन्होंने भाजपा को मजबूत बनाने में लगाया।

    भाजपा के चुनाव जीतने के कुछ ही महीनों बाद उन्होंने 'साथ आए, देश बनाए' नाम से सदस्यता अभियान शुरू किया।

    इस अभियान ने भाजपा की सदस्यों की संख्या को 3.5 करोड़ से बढ़ाकर 11 करोड़ कर दी। इन सदस्यों को विचारधार और संगठन से परिचित कराने के लिए उन्होंने 'महासंपर्क अभियान' शुरू किया।

    सफलता

    त्रिपुरा में पार्टी को मिली बड़ी सफलता

    अमित शाह की इस मेहनत का असर सबसे पहले त्रिपुरा में दिखा। यहां पार्टी ने दशकों से चले आ रहे वाम शासन को उखाड़कर अपनी सरकार बनाई।

    इसके बाद पार्टी ने एक नई रणनीति तैयार की। इसके तहत उन राज्यों में पार्टी के प्रदर्शन पर जोर दिया गया, जहां 2014 में भाजपा को खास फायदा नहीं मिला था।

    इसके लिए पार्टी ने पूर्वोत्तर, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा और केरल में महासचिवों को तैनात किया।

    रणनीति

    हारी सीटों को जीतने के लिए बनाई खास रणनीति

    पार्टी की विचारधारा को बूथ स्तर पर ले जाने के लिए उन्होंने 'मेरा बूथ सबसे मजबूत' अभियान की शुरुआत की।

    पार्टी के आधार को बढ़ाने के साथ-साथ शाह उन सीटों पर भी फोकस कर रहे थे, जिनमें भाजपा को 2014 के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था।

    ऐसी 120 सीटों पर जीत दर्ज करने के उद्देश्य ने उन्होंने पश्चिम बंगाल से दीनदयाल उपाध्याय विस्तारक योजना शुरू की और लगभग तीन महीनों तक पूरे देश का दौरा किया।

    जिम्मेदारी

    काम करने वालों को दी जिम्मेदारियां

    कहा जाता है कि दूसरी पार्टियों की तरह भाजपा में कोई लॉबी काम नहीं करती। अगर किसी का काम अमित शाह को पसंद आ गया तो उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी जाती है।

    इसका उदाहरण भाजपा के संगठन में काम कर चुके सुनील बंसल और पी मुरलीधर राव को दी गई जिम्मेदारी है।

    सुनील बंसल को उत्तर प्रदेश में भाजपा की रणनीति को लागू करने और राव को भाजपा के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की जिम्मेदारी दी गई।

    टेक्नोलॉजी

    टेक्नोलॉजी का सहारा

    पार्टी में विस्तार के लिए अमित शाह ने आधुनिक टेक्नोलॉजी का भी सहारा लिया।

    उन्होंने पार्टी के चुनावी अभियानों में वीडियो सभाएं, GPS लगे रथ, 3D में मोदी के भाषण और सैंकड़ों कॉल सेंटर का सहारा लिया है।

    इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 2019 के चुनावों के लिए भाजपा ने 168 कॉल सेंटर खोले थे, जहां 12,000 से ज्यादा कार्यकर्ता टेलीफोन और सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से संपर्क कर रहे थे।

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