उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बसपा का सफाया, क्या खत्म हो रही मायावती की राजनीति?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की मतगणना जारी है और इसमें साल 2007 में राज्य की मुख्यमंत्री रही मायवती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का प्रदर्शन बेहद निराशजनक रहा है। अब तक की मतगणना में वह 403 सीटों में से महज एक पर आगे चल रही है। इसी तरह उत्तराखंड में भी 70 सीटों में से उसे एक सीट मिली है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मायावती की राजनीति का अंत आ रहा है? आइए जानते हैं पूरा विश्लेषण।
न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)
मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। 2007 में बसपा ने राज्य में दलितों के समर्थन से समाजवादी पार्टी को सत्ता से बेदखल किया था। हालांकि, अगले चुनाव में सपा फिर सत्ता में आई और 2017 में भाजपा ने प्रचंड बहुमत से सत्ता हासिल कर ली। उसके बाद से बसपा का प्रदर्शन लगातार खराब होता गया। यही कारण है कि पार्टी 2022 के चुनाव में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के साथ पंजाब में भी बेअसर रही है।
मायावती ने प्रचार अभियान में नहीं लगाया कोई जोर
मायावती की कमजोर मनोदशा का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इस चुनाव के लिए उन्होंने प्रचार में दम नहीं लगाया और कोई बड़ी जनसभा भी नहीं की। विरोधियों ने उनकी खामोशी को हार मानने के रूप में देखा तो कुछ ने भाजपा के साथ समझौता करार दे दिया। हालांकि, बाद में मायावती ने इस दावे को खारिज कर दिया। इसके बाद कई शीर्ष अधिकारियों ने या तो पार्टी छोड़ दी या विभिन्न कारणों से उन्हें निकाल दिया गया।
सत्ता से बाहर होने के साथ मायावती के लिए शुरू हुआ परेशानियों का दौर
मायावती के लिए सत्ता से बाहर होने के बाद परेशानियों का दौर शुरू हो गया। बसपा संस्थापकों सहित अपने कई दिग्गज नेताओं ने उनका साथ छोड़ दिया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम आचार राजभर और बसपा विधायक दल के नेता लालजी वर्मा सहित उनके समर्थक विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उनका साथ छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। इसके अलावा मायावती और उनके करीबी लोग केंद्रीय एजेंसियों की जांच के घेरे में भी आ गए हैं।
क्या लोकसभा चुनाव पर है मायावती की नजर?
परिणाम से पहले बसपा अधिकारियों का मानना था कि मायावती बड़ी भूमिका की तैयारी कर रही हैं और 2024 लोकसभा चुनावों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। उन्होंने कई राज्यों में प्रभारी भी नियुक्त किए हैं, लेेकिन नतीजों ने इस पर विराम लगा दिया।
दलितों को लुभाने में नाकाम रही बसपा- विशेषज्ञ
द प्रिंट ने राजनीतिक विश्लेषक और विद्वान सुधा पई के हवाले से लिखा है, "बसपा उत्तर प्रदेश के बाहर के दलितों को कभी लुभाने में सफल नहीं हो पाई है। वह पंजाब और उत्तराखंड में पार्टी के प्रदर्शन का विश्लेषण कर रही थीं।" पाई ने उत्तराखंड में बसपा के खराब प्रदर्शन के लिए राज्य की विशाल ब्राह्मण आबादी की भाजपा के प्रति बढ़ी निकटता को जिम्मेदार ठहराया है। वहां पहले ब्राह्मण आबादी पर कांग्रेस की अच्छी पकड़ रही थी।
पंजाब में भी महज एक सीट जीत पाई है बसपा
उत्तर प्रदेश की तरह पंजाब और उत्तराखंड की जनता ने भी बसपा को नकार दिया है। यही कारण है पार्टी जहां उत्तराखंड में एक सीट जीतने के साथ एक पर बढ़त बना सकती है, वहीं पंजाब में वह मात्र एक सीट जीत पाई है। इससे पहले पार्टी सुप्रीमो मायावती ने कहा था कि बसपा चुनावों में पूर्ण बहुमत के साथ विजयी होगी, लेकिन अब मतगणना के बाद सामने आए परिणामों ने मायावती की राजनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।