विश्व एड्स दिवसः क्या होता है HIV/AIDS, जानें वजह, लक्षण और इसके इलाज के बारे में

एक्वायर्ड इम्युनोडेफिशिएंसी सिन्ड्रोम (AIDS) एक ऐसी बीमारी है जो ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV) की वजह से होती है। संक्रमण होने के तुरंत बाद यह एक फ्लू जैसी बीमारी होती है। इस दौरान फ्लू बहुत ही हल्का होता है, जिसकी तरफ़ लोगों का ध्यान नहीं जाता है। धीरे-धीरे वायरस लोगों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम कर देता है। जब रोग-प्रतिरोधक क्षमता एकदम कम हो जाती है तो वह संक्रमण का विरोध नहीं कर पाता है। इस स्थिति को AIDS कहा जाता है।
HIV को AIDS तक पहुंचने में आठ से नौ साल का समय लगता है। AIDS हो जाने के बाद अगर व्यक्ति को एंटी-रेट्रो वायरल उपचार नहीं दिया जाए तो उसकी मौत 12 से 18 महीनों में हो सकती है। अगर उपचार चलता है तो व्यक्ति लम्बे समय तक जीवित रह सकता है। इसका इन्फ़ेक्शन कभी ख़त्म नहीं होता, इस वजह से व्यक्ति को जीवनभर दवा लेनी पड़ती है। इन्फ़ेक्शन की शुरुआत में व्यक्ति सामान्य महसूस करता है।
HIV का वायरस व्यक्ति के शरीर में मुख्य रूप से चार वजहों से प्रवेश करता है। संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन सम्बंध बनाने से वायरस दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाता है। संक्रमित व्यक्ति का ख़ून असंक्रमित व्यक्ति को चढ़ाने से भी वायरस फैलता है। गर्भवती महिला से प्रसव या स्तनपान के दौरान उसके बच्चे में वायरस फैल सकता है। संक्रमित सुई के इस्तेमाल से भी वायरस एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाता है।
HIV का वायरस इतना ज़्यादा ख़तरनाक है कि इसको लेकर लोगों में कुछ भ्रांतियां भी फैली हुई हैं। कई लोग यह सोचते हैं कि संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क जैसे हाथ मिलाने, किस करने, संक्रमित व्यक्ति की चीज़ें इस्तेमाल करने, सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल करने, मच्छर या किसी कीड़े के काटने से संक्रमण फैलता है, जबकि सच्चाई यह है कि इनमें से किसी भी वजह से HIV नहीं फैलता। इसलिए संक्रमित व्यक्ति से भेदभाव करने की कोई ज़रूरत नहीं है।
HIV के संक्रमण से बचने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है। किसी के साथ शारीरिक सम्बंध बनाएं तो कॉन्डोम का इस्तेमाल ज़रूर करें। नशीली दवाओं के इस्तेमाल और दुरुपयोग से बचें। भूलकर भी इस्तेमाल की गई सुई से इंजेक्शन न लगवाएं। संक्रमित ख़ून चढ़ाने से बचें। अगर गर्भवती महिला को HIV है तो समय-समय पर डॉक्टर से सलाह लेते रहे, जिससे पैदा होने वाले बच्चे को इसके संक्रमण से बचाया जा सकता है।