भारतीय डॉक्टर ब्रिटेन छोड़कर ऑस्ट्रेलिया और मध्य पूर्व में नौकरी तलाशने को क्यों हुए मजबूर?
क्या है खबर?
भारत और ब्रिटेन अपने साझा इतिहास, खान-पान और वास्तुकला के अलावा स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के एक मजबूत नेटवर्क के माध्यम से गहराई से जुड़े हुए हैं। भारतीय चिकित्सा पेशेवरों के लिए यूनाइटेड किंगडम (UK) हमेशा से नौकरी और परिवार बसाने के लिए एक सुनियोजित गंतव्य रहा है। हालांकि, UK में हाल ही में हुए नीतिगत परिवर्तनों के कारण वहां कार्यरत भारतीय मूल के डॉक्टर देश छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं। आइए पूरी खबर पर नजर डालते हैं।
हालात
ब्रिटेन छोड़ने का विकल्प तलाश रहे भारतीय डॉक्टर
ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) में काम करने वाले भारतीय मूल के वरिष्ठ डॉक्टरों ने PTI से कहा कि कई भारतीय स्वास्थ्य पेशेवर ब्रिटेन छोड़ने का विकल्प चुन रहे हैं। इसके पीछे कारण कार्य असंतोष नहीं, बल्कि वित्तीय और आव्रजन दबाव प्रमुख कारण है। इस रिपोर्ट के लिए जिन डॉक्टरों का साक्षात्कार लिया गया, उन्होंने अपनी व्यक्तिगत क्षमता में बात की और वे NHS या अपने नियोक्ता के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
गिरावट
स्वास्थ्य और देखभाल कार्यकर्ता वीजा में आई 67 प्रतिशत की गिरावट
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान प्रस्तुत भारतीय सरकारी आंकड़ों से पता चला कि UK सरकार की ओर से भारतीय नागरिकों को जारी किए गए स्वास्थ्य और देखभाल कार्यकर्ता वीजा में लगभग 67 प्रतिशत की गिरावट आई है, जिसमें नर्सिंग पेशेवरों के बीच लगभग 79 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। बता दें कि कम वेतन और उच्च जीवन यापन की लागत UK में भारतीय मूल के पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण चिंताएं हैं। ऐसे वे देश छोड़ने पर मजबूर हैं।
रुख
ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और पश्चिम एशियाई देशों का रुख कर रहे भारतीय डॉक्टर
करीब 20 साल अनुभव वाले NHS के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ रजय नारायण ने PTI से कहा, "कई भारतीय स्वास्थ्य पेशेवर ब्रिटेन छोड़ने का विकल्प इसलिए चुन रहे हैं क्योंकि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और पश्चिम एशिया के कुछ अन्य देश कहीं अधिक वेतन और स्पष्ट दीर्घकालिक अवसर प्रदान कर रहे हैं।" उन्होंने आगे कहा, "कभी ब्रिटेन को वैश्विक स्तर पर अग्रणी स्वास्थ्य प्रणालियों में माना जाता था, लेकिन समय के साथ इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।"
कारण
ब्रिटेन क्यों छोड़ रहे भारतीय डॉक्टर?
डॉ नारायण ने कहा, "यूरोपीय देशों की तुलना में ब्रिटेन में कम वेतन मिलने के कारण कई स्नातक ब्रिटेन छोड़ रहे हैं। भारतीय मूल के स्वास्थ्य सेवा पेशेवर बेहतर वेतन, उच्च जीवन स्तर और अपेक्षाकृत कम करों के कारण विदेशों में काम करना पसंद कर रहे हैं।" उन्होंने कहा, "अधिकतर लोग अब UK में दीर्घकालिक करियर की संभावनाएं नहीं देखते हैं और कई ब्रिटिश-भारतीय पेशेवर बेहतर अवसरों की तलाश में भारत लौट रहे हैं।"
योगदान
ब्रिटेन की स्वास्थ्य व्यवस्था में भारतीय डॉक्टर्स का अहम योगदान
NHS की स्थापना 1948 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के सामाजिक सुधारों के हिस्से के रूप में की गई थी। इसमें भारत का योगदान महत्वपूर्ण था, जिसकी जड़ें ब्रिटिश साम्राज्य काल के ऐतिहासिक संबंधों में निहित हैं। भारतीय चिकित्सा डिग्रियों को 1975 तक ब्रिटेन के GMC द्वारा मान्यता प्राप्त थी। हालांकि, UK सरकार का लक्ष्य शुद्ध प्रवासियों की संख्या कम करना होने के कारण अब NHS में शामिल कानूनी भारतीय प्रवासियों पर बड़ा असर पड़ा है।
बयान
वैध प्रवासियों पर भी पड़ रहा है सरकार की नीतियों का असर
दक्षिण-पश्चिम ब्रिटेन में NHS से जुड़े रेडियोलॉजिस्ट संजय गांधी ने कहा कि भारतीय मूल के स्वास्थ्य पेशेवरों के ब्रिटेन छोड़ने कारण राजनीतिक संबद्धता से इतर सभी सरकारों ने शुद्ध आव्रजन कम करने की प्रतिबद्धता जताना है। उन्होंने कहा, "अवैध आव्रजन को नियंत्रित करना कठिन साबित हुआ है, लेकिन राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में काम करने वालों सहित वैध प्रवासियों को अक्सर इन नीतियों का असर झेलना पड़ता है। एक अन्य कारण बढ़ती प्रतिस्पर्धा भी है।"
संख्या
NHS के कार्यबल में 13 प्रतिशत है एशियाई कर्मचारियों की संख्या
ब्रिटेन सरकार के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, एशियाई या एशियाई ब्रिटिश कर्मचारी NHS के कार्यबल का 13 प्रतिशत हैं, पूर्णकालिक कार्यबल का 16 प्रतिशत तथा अंशकालिक कार्यबल का 8 प्रतिशत हिस्सा हैं। गांधी ने कहा कि पिछले तीन वर्षों में ही उनके जानकार कम से कम आधा दर्जन चिकित्सक ऑस्ट्रेलिया या न्यूजीलैंड चले गए हैं। NHS में उच्चतम वेतनमान वाले सलाहकार 45 प्रतिशत की अतिरिक्त आयकर दर के साथ 2 प्रतिशत राष्ट्रीय बीमा अंशदान का भुगतान भी करते हैं।