विक्रम साराभाई: भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक, जिन्होंने डाली थी ISRO की नींव
क्या है खबर?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने शुक्रवार को चांद मिशन चंद्रयान-3 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक लॉन्च किया।
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण था। अंतरिक्ष क्षेत्र में इस उन्नति का सबसे बड़ा श्रेय ISRO को दिया जाता है, जिसकी स्थापना डॉ विक्रम साराभाई ने की थी।
आइए जानते हैं कि साराभाई कौन थे और ISRO और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास में उनका क्या योगदान रहा।
जन्म
गुलाम भारत के अहमदाबाद में हुआ था जन्म साराभाई का जन्म
साराभाई का जन्म 12 अगस्त, 1919 को अहमदाबाद में हुआ था। इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद वह 1937 में कैम्ब्रिज से शिक्षा ग्रहण करने के लिए इंग्लैंड चले गए थे।
1940 में भारत लौटने के बाद वह प्रख्यात भौतिक वैज्ञानिक सीवी रमन की देखरेख में शोध कार्य करने लगे। 1942 में साराभाई का विवाह मृणालिनी से हुआ।
साराभाई को अंतरिक्ष पर शोध के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। उनका निधन 30 दिसंबर, 1971 को हार्ट अटैक से हुआ।
शोध
साराभाई ने कॉस्मिक रेज पर लिखे शोधपत्र
साराभाई ने कुल 86 शोधपत्र लिखे थे। उनका पहला शोध पत्र 'टाइम डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ कॉस्मिक रेज' नाम से प्रकाशित हुआ था। उन्होंने 1940 से 1945 के बीच भारत में रहकर कॉस्मिक रेंज पर शोध कार्य किए।
वह द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद कैम्ब्रिज लौटे और उष्णकटिबंधीय अक्षांश में कॉस्मिक रेज का अपना शोधकार्य पूरा कर डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की।
उन्हें विज्ञान में दिये अभूतपूर्व योगदान के लिए मरणोपरांत पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था।
अंतरिक्ष
ऐसे हुई ISRO की शुरुआत
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत 1962 में हुई थी। साराभाई और भाभा तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पास अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू करने का प्रस्ताव लेकर पहुंचे थे।
इसके बाद साराभाई की देखरेख में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति गठित (INCOSPAR) हुई और 21 नवंबर, 1963 को केरल के तिरुवनंतपुरम के करीब थुंबा से पहला रॉकेट लॉन्च किया गया।
15 अगस्त, 1969 को INCOSPAR का नाम बदलकर ISRO रख दिया गया और इस तरह भारत को अपनी अंतरिक्ष एजेंसी मिली।
आयोग
परमाणु ऊर्जा के विकास में भी साराभाई का योगदान
साराभाई को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। उन्होंने ही डॉ होमी जहांगीर भाभा को परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर काम करने के लिए प्रेरित किया था।
1966 में एक विमान दुर्घटना में डॉ भाभा की मौत के बाद साराभाई को परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था।
उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में 40 संस्थानों की स्थापना की, जो विज्ञान, तकनीक और इंजीनियरिंग से संबंधित थे।
मिशन
साराभाई के नाम पर रखा गया है चंद्रयान-3 के लैंडर का नाम
ISRO का चंद्रयान-3 मिशन 2019 के चंद्रयान-2 मिशन का ही फॉलो-अप है। इसके लैंडर का नाम साराभाई के नाम पर 'विक्रम' रखा गया है।
इस मिशन को ISRO द्वारा भविष्यदृष्टा वैज्ञानिक विक्रम साराभाई को समर्पित किया गया है। 2019 में साराभाई के जयंती समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रयान-2 मिशन को भी उन्हें समर्पित किया था।
तब चंद्रयान-2 के लैंडर का चांद की सतह पर पहुंचने से पहले ही ISRO के बेंगलुरू मुख्यालय से संपर्क टूट गया था।
देश
चंद्रयान-3 मिशन में क्या है खास?
मिशन सफल होने पर अमेरिका, रूस और चीन के बाद चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता हासिल करने वाला भारत चौथा देश होगा। चंद्रयान-2 के सॉफ्ट लैंडिंग में फेल होने के बाद सुरक्षित लैंडिंग के लिए ISRO ने चंद्रयान-3 में कई बदलाव किए हैं।
चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग को ISRO के बेंगलुरू स्टेशन से मॉनिटर किया जाएगा। चंद्रयान-2 की लैंडिंग को मैड्रिड स्थित नासा-JPL स्टेशन से ट्रैक किया गया था।
मिशन
भारत ने पहले कब-कब भेजे चंद्रयान?
चंद्रयान-3 से पहले भारत ने चंद्रयान-2 और चंद्रयान-1 मिशन लॉन्च किया था। 22 अक्टूबर, 2008 को चंद्रयान-1 लॉन्च किया गया था। इससे वैज्ञानिकों को चांद के रहस्यों को जानने में मदद मिली।
चंद्रयान-2 मिशन को 22 जुलाई, 2019 को लॉन्च किया गया। यह मिशन सॉफ्ट लैंडिंग में असफल रहा था, जिससे इसके लिए तय लक्ष्य हासिल नहीं हुए थे।
अब चंद्रयान- 3 के जरिए चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग और घूमने की क्षमता के प्रदर्शन का लक्ष्य है।