दिल्ली: दंगों के बीच इन बाप-बेटे ने रखी इंसानियत की लाज, 60 लोगों को बचाया
लगभग 50 लोगों जान लेने वाले दिल्ली दंगों के दौरान जहां एक तरफ बर्बरता की इंतेहा देखने को मिली, वहीं दूसरी तरफ इंसानियत में भरोसों को जिंदा करने वाली कई कहानियां भी सामने आईं। ऐसी ही एक कहानी गोकुलपुरी के 53 वर्षीय मोहिंदर सिंह और उनके 28 वर्षीय बेटे इंदरजीत की है जिन्होंने दंगों के दौरान 60 से अधिक लोगों की जान बचाई। सिख समुदाय से संबंध रखने वाले इन बाप-बेटे ने मदद करते वक्त किसी का धर्म नहीं देखा।
भीड़ के हमला करने के बाद लोगों को सुरक्षित इलाके में पहुंचाया
24 फरवरी को दंगों के पहले दिन जब भीड़ ने उनके इलाके में हमला किया, तब मोहिंदर अपने घर के पास स्थित अपनी दुकान पर बैठे हुए थे। भीड़ के हमले के बारे में पता चलने पर मोहिंदर और उनके बेटे इंदरजीत ने मोटरसाइकिल और स्कूटी निकाली और लगभग 60 लोगों को वहां से निकालकर 1.5 किलोमीटर दूर कर्दमपुरी के सुरक्षित इलाके में पहुंचाया। इस दौरान उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना कई चक्कर लगाए।
मोहिंदर बोले- बच्चों के चेहरे पर डर नहीं देख पाए
मोहिंदर ने NDTV को बताया, "1984 में मैं करीब 16 साल का था और तब की भयानक यादें अभी तक ताजा हैं। जब यहां हिंसा फैली तो इसने मुझे तीन दशक पहले हुए दंगों की याद दिला दी। इसने मुझे इंसानी जीवन का महत्व याद दिलाया।" उन्होंने आगे कहा, "मुस्लिम इकट्ठा हुए और फैसला लिया कि उन्हें इलाके को छोड़ना पड़ेगा। लेकिन वो भीड़ के कारण फंस गए थे। हम मासूम बच्चों के चेहने पर डर नहीं देख पाए।"
"केवल लोगों को बचाना चाहते थे, चाहें उनका धर्म कुछ भी हो"
मोहिंदर ने कहा कि उनके पास ज्यादा संसाधन नहीं थे लेकिन उन्होंने अपनी मोटरसाइकिल और स्कूटी निकाली और लोगों को बाहर ले जाना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया, "1984 के दंगों के दौरान हिंदू परिवारों ने हमारी जान बचाई थी लेकिन इन दंगों के दौरान हम ये नहीं देख रहे थे कि हम किस समुदाय के लोगों को बचा रहे हैं। ये मानवता के लिए था और हम केवल लोगों को बचाना चाहते थे, चाहें उनका धर्म कुछ भी हो।"
इंदरजीत बोले- नहीं लगा था डर
इंदरजीत ने भी अपने पिता की बातों को दोहराते हुए कहा, "मैं जब लोगों को ले जा रहा था तो मैं डरा हुआ नहीं था। उस समय मैं केवल ये सोच रहा था कि हर इंसान, जो खतरे में है, उसे बचाने की जरूरत है।"
मोहम्मद नईम के घर में थे 10 सिलेंडर, भीड़ ने लगाई आग
इंदरजीत और मोहिंदर ने जिन लोगों की जान बचाई उनमें उनके 30 वर्षीय पड़ोसी मोहम्मद नईम भी शामिल हैं। एक भीड़ ने नदीम के घर को लूटने के बाद उसमें आग लगा दी थी। उनकी दुकान में भी तोड़फोड़ की गई। भीड़ ने जब उनके घर में आग लगाई तब उनके घर में कम से कम 10 गैस सिलेंडर थे और अगर उनमें आग लग जाती तो बड़ा हादसा हो सकता था, लेकिन इंदरजीत की सूझबूझ से ये टल गया।
नईम ने बताया क्या हुआ था दंगों वाले दिन
घटना को याद करते हुए नईम ने बताया, "कम से कम 1000 लोगों की भीड़ ने हमारे घर और दुकान पर हमला किया। वे नारे लगा रहे थे और उनमें से कई के पास तलवार थी। घर में रखे सभी गहनों को लूट लिया गया। अपनी जान बचाने के लिए महिलाओं को पिछली गली से भागना पड़ा। हम पीछे रह गए और डरे हुए थे। लेकिन इंदरजीत और मोहिंदर ने हमें स्कूटी पर बिठाया और सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया।"
"अगर इंदरजीत सूझबूझ नहीं दिखाता तो आसपास के सभी घर और दुकानें जल जातीं"
नईम ने कहा कि अगर इंदरजीत ने सूझबूझ दिखाते हुए सिलेंडरों को बाहर नहीं निकाला होता तो आसपास के सभी घर और दुकानें जल जातीं। ये सभी केवल उसकी वजह से बच गईं। घर में लगी आग को भी उसने पंप से पानी डालकर बुझाया।
उत्तर-पूर्व दिल्ली में तीन दिन तक चले थे दंगे
बता दें कि 23 फरवरी को नागरिकता कानून (CAA) को लेकर उत्तर-पूर्व दिल्ली में दो गुटों में शुरू हुआ पथराव अगले दिन दंगों में बदल गया था। तीन दिन तक चले इन दंगों में कम से कम 50 लोगों की मौत हुई है जबकि 250 से अधिक घायल हुए हैं। मरने वालों में दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल रतनलाल भी शामिल हैं। दंगों के दौरान हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान भी हुआ है।