सोशल मीडिया पर लोगों के निजी संदेशों तक पहुंच चाहती है सरकार, सुप्रीम कोर्ट करेगी सुनवाई
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया ऐप्स पर लोगों के बीच निजी बातचीत तक सरकार को पहुंच देने की याचिकाओं पर सुनवाई करने को तैयार हो गई है।
सरकार आतंकवाद और अपराध पर लगाम लगाने के लिए नागरिकों के निजी संदेशों तक पहुंच चाहती है।
सुप्रीम कोर्ट जनवरी 2020 के आखिरी हफ्ते से मामले पर सुनवाई शुरू करेगी।
उसने केंद्र सरकार को 15 जनवरी तक सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल को रोकने के नियम लाने को कहा है।
सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पास ट्रांसफर किए सोशल मीडिया से संबंधित सभी केस
मंगलवार को जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने विभिन्न हाई कोर्ट्स में चल रहे सोशल मीडिया से संबंधित सारे मामले अपने पास ट्रांसफर कर लिए।
इन सभी याचिकाओं पर कोर्ट जनवरी के आखिरी हफ्ते से सुनवाई करेगी।
इन याचिकाओं में सोशल मीडिया ऐप्स पर नागरिकों के निजी संदेशों तक सरकार को पहुंच देने की याचिका भी शामिल है।
जस्टिस बोस ने इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनाम राष्ट्रीय हित का मुद्दा बताया।
सरकार की दलील
अटॉर्नी जनरल बोले, आतंकियों को निजता का अधिकार नहीं
इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि एक आतंकवादी को निजता का दावा करने का कोई अधिकार नहीं है।
वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि निजी संदेशों तक पहुंच सरकार की कोई चाल नहीं है और निर्दोषों की निजता का उल्लंघन करना उसका मकसद नहीं है।
उन्होंने कहा कि ये कदम राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता के हित में एक प्रयास है।
दूसरा पक्ष
विरोधी पक्ष के वकील बोले, नागरिकों के अधिकारों को कुचला नहीं जा सकता
वहीं इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की ओर से पेश हुए श्याम दीवान ने मामले को अहम बताते हुए कहा कि नागरिक के अधिकारों को कुचला नहीं जा सकता।
वहीं व्हाट्सऐप की ओर से पेश हुए मुकुल रोहतगी ने कहा कि निजी अकाउंट्स की जानकारी प्रदान करने के लिए सोशल मीडिया कंपनी बाध्य नहीं है और ये निजता का उल्लंघन होगा।
उन्होंने कहा कि वह कंपनियों के नहीं बल्कि उनके यूजर्स के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।
हलफनामा
अपने हलफनामे में सरकार ने सोशल मीडिया को बताया 'हेट स्पीच' का केंद्र
बता दें कि सोशल मीडिया से संबंधित मामलों में दायर किए गए अपने हलफनामें में केंद्र सरकार ने कहा था कि इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हेट स्पीच, फेक न्यूज, राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों, अपमानजनक टिप्पणियों और दूसरी गैर-कानूनी गतिविधियों से भरे हुए हैं।
सरकार ने कहा था कि इंटरनेट लोकतांत्रिक राजनीति में रुकावट पैदा करने वाले एक शक्तिशाली उपकरण बन गया है और राष्ट्र की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के लिए नए नियमों की जरूरत है।
पृष्ठभूमि
इसलिए निजी संदेशों तक पहुंच चाहती है सरकार
सरकार का आरोप है कि सोशल मीडिया कंपनियां अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश के कानून के प्रति अपनी जबावदेही से बचना चाहती हैं।
मौजूदा कानूनों के तहत अगर किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए कोई अपराध होता है तो जरूरत पड़ने पर अपराधी व्यक्ति की जानकारी सरकार को देना कंपनी की जिम्मेदारी है।
लेकिन ऐसे कई मामले सामने आए जब सोशल मीडिया कंपनियों ने ये जानकारी देने से मना कर दिया।
जानकारी
सोशल मीडिया ऐप्स पर इंक्रिप्टेड होती है बातचीत
दरअसल, कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निजी संदेश इंक्रिप्टेड होते हैं। सरकार का कहना है कि उन्हें कंपनियों से इन्हें पढ़ने के लिए तकनीक नहीं चाहिए बल्कि केवल उनके प्लेटफॉर्म तक पहुंच चाहिए, बाकि डिकोड वो खुद कर लेगी।