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    सुप्रीम कोर्ट बोली- पटरियों पर सोएंगे मजदूर तो कोई दुर्घटना कैसे रोकेगा

    सुप्रीम कोर्ट बोली- पटरियों पर सोएंगे मजदूर तो कोई दुर्घटना कैसे रोकेगा

    लेखन मुकुल तोमर
    May 15, 2020
    03:28 pm

    क्या है खबर?

    पैदल अपने घर की तरफ जा रहे प्रवासी मजदूरों को सुरक्षित उनके घर पहुंचाने और उन्हेें खाना-पानी प्रदान करने की एक याचिका को रद्द करते हुए शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में कार्रवाई करना सरकार का काम है और कोर्ट इसमें कुछ नहीं कर सकता।

    याचिकाकर्ता से सवाल करते हुए कोर्ट ने कहा कि कोर्ट कैसे मजदूरों को सड़क पर चलने से रोक सकती है और ऐसा कर पाना असंभव है।

    पृष्ठभूमि

    ट्रेनें चलने के बावजूद अभी भी सड़कों पर प्रवासी मजदूर

    25 मार्च को लॉकडाउन की शुरूआत से ही लाखों प्रवासी मजदूर पैदल ही शहरों से अपने गांवों की तरफ पलायन कर रहे हैं। पहले उन्हें रोककर सरकारी क्वारंटाइन कैंपों में रखा गया और फिर 1 मई से उनके लिए श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनें चलाने का फैसला लिया गया।

    लेकिन सरकार के ट्रेनें चलाने के बावजूद अभी भी मजदूर पैदल घर जा रहे हैं और औरंगाबाद में मालगाड़ी से कटकर 16 मजदूरों की मौत समेत उनके साथ कई दुर्घटनाएं हुई हैं।

    याचिका

    वकील की याचिका पर कोर्ट ने कहा- कोर्ट के लिए निगरानी रखना असंभव

    वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने मजदूरों के इस पलायन पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी और कोर्ट से केंद्र को सड़कों पर चल रहे मजदूरों की पहचान करने और उन्हें खाना-पानी और आश्रय प्रदान करने का आदेश देने को कहा था।

    इस याचिका को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा, "कोर्ट के लिए ये निगरानी रखना असंभव है कि कौन (सड़क पर) चल रहा है और कौन नहीं?... सरकार को फैसला लेने दीजिए। कोर्ट इसे क्यों सुने?"

    सुनवाई

    कोर्ट ने कहा- पटरियों पर सो रहे मजदूर, कोई दुर्घटना कैसे रोकेगा?

    सरकार पर मामले की जिम्मेदारी डालते हुए जस्टिस एल नागेश्वर राव की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा, "लोग चल रहे हैं और रुक नहीं रहे हैं। हम इसे कैसे रोक सकते हैं?"

    मजदूरों के साथ ट्रेन दुर्घटना पर कोर्ट ने कहा, "जब वे रेल की पटरियों पर सो रहे हैं तो कोई इसे कैसे रोक सकता है?" बेंच ने कहा कि ये याचिका पूरी तरह से अखबार की कटिंग्स पर आधारित है।

    सुनवाई

    कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमकर सुनाई

    याचिका को रद्द करते हुए बेंच ने कहा, "हर वकील अखबार में खबर पढ़ता है और उसे हर मुद्दा का ज्ञान हो जाता है। आपकी जानकारी पूरी तरह से अखबार की क्लिपिंग पर आधारित है और फिर आप चाहते हैं कि ये कोर्ट इस पर फैसला दे। सरकार को फैसला लेने दीजिए। इस कोर्ट को क्यों फैसला लेना चाहिए या सुनवाई करनी चाहिए? हम आपको विशेष पास देंगे। क्या आप सरकार के आदेशों को लागू कर सकते हैं?"

    सरकार का पक्ष

    सरकार ने कहा- पहले से ही प्रदान कर रहे यातायात

    सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार पहले से ही प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए यातायात प्रदान कर रही है और अगर कोई अपनी बारी का इंतजार नहीं करना चाहता तो सरकार इसमें क्या करे।

    उन्होंने कहा कि राज्यों से समझौते के आधार पर सभी को वापस जाने का मौका मिलेगा और उन पर बल का प्रयोग उल्टा पड़ सकता है।

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