अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती नहीं देगा सुन्नी वक्फ बोर्ड
अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक बड़ी खबर आ रही है। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि वह इसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेगा। साथ ही बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को पांच एकड़ जमीन देने के आदेश के लिए धन्यवाद दिया है। इससे पहले बोर्ड ने फैसले से असंतुष्टि जताते हुए कहा था कि वह आगे की कार्रवाई पर विचार करने की बात कही थी।
बोर्ड के चेयरमैन ने जारी किया बयान
फैसले के अध्ययन के बाद विस्तृत बयान देगा बोर्ड- फारूकी
बोर्ड के अध्यक्ष जफर फारुकी ने बातचीत में कहा कि वे न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हैं और इस फैसले को चुनौती देने का कोई विचार नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर कोई वकील या अन्य व्यक्ति बोर्ड की तरफ से फैसले को चुनौती देने की बात कह रहा है तो उसे सही न माना जाए। उन्होंने कहा कि ने कहा कि वक्फ बोर्ड फिलहाल फैसले का अध्ययन कर रहा है और वह उसके बाद विस्तृत बयान देगा।
फैसले के बाद बोर्ड के वकील ने कही थी यह बात
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद बोर्ड के वकील ने असंतुष्टि जताई थी। बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा, "हम इस फैसला का स्वागत करते हैं, लेकिन इससे संतुष्ट नहीं है। हम आगे की कार्रवाई पर विचार करेंगे।" उन्होंने कहा, "हमें न बराबरी मिली और न ही न्याय। फैसले पर असहमति जताना हमारा अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट भी कभी-कभी गलत हो सकता है। कोर्ट ने पहले भी अपने फैसलों पर पुनर्विचार किया है।"
सुुन्नी वक्फ बोर्ड को फैसले में क्या मिला?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विवादित जमीन पर मुसलमान अपना एकाधिकार सिद्ध नहीं कर पाए। इसलिए विवादित जमीन पर रामजन्मभूमि न्यास का हक है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या की प्रमुख जगह पर 5 एकड़ की वैकल्पिक जमीन मिले। कोर्ट ने कहा कि केंद्र या राज्य सरकार अयोध्या में ही कहीं उचित स्थान पर मस्जिद बनाने के लिए जमीन दे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के असंतुष्ट पक्ष के पास क्या विकल्प होते हैं?
अगर कोई पक्ष सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट होता है तो उसके पास पुनर्विचार याचिका दायर करने का विकल्प होता है। यह 30 दिनों के भीतर दायर की जा सकती है। इसमें याचिकाकर्ता को यह साबित करना होता है कि पहले दिए गए फैसले में खामी है। इस पर सुनवाई के दौरान वकीलों की ओर से जिरह नहीं की जाती। कोर्ट द्वारा पहले दिए गए फैसले की फाइलों और रिकॉर्ड्स पर ही विचार किया जाता है।
दूसरा विकल्प है क्यूरेटिव पिटिशन
अगर याचिकाकर्ता को पुनर्विचार याचिका पर आए फैसले पर भी संतुष्टि नहीं होती तो उसके पास उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटिशन) दाखिल करने का विकल्प होता है। इसका एक मतलब मामले का बड़ी बेंच से सुनवाई भी होता है। यह याचिका दाखिल करने के लिए भी 30 दिन का समय मिलता है। इस सुनवाई में केवल कानूनी पहलुओं पर गौर किया जाता है। इसकी सुनवाई करने वाली बेंच में तीन वरिष्ठतम जजों के अलावा फैसला देने वाले जज शामिल होते हैं।