नागरिकता कानून: विशेषज्ञ ने दी थी धर्मों का जिक्र न करने की सलाह, नहीं मानी सरकार
नागरिकता संशोधन कानून के जिस प्रावधान को लेकर इन देशों में बवाल मचा हुआ है, विशेषज्ञों ने सरकार को पहले ही उससे बचने की हिदायत दी थी। दरअसल, संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने सरकार को नागरिकता संशोधन कानून में 'धर्मों का जिक्र न करने के लिए कहा था। उन्होंने सरकार से कहा था कि वे बस 'प्रताड़ित अल्पसंख्यक' शब्द का इस्तेमाल करें। इसमें वह सभी लोग शामिल हो जाएंगे, जिन्हें सरकार शामिल करना चाहती है।
धर्म का जिक्र किए बिना भी मकसद हासिल कर लेती सरकार- कश्यप
इंडियन एक्सप्रेस से कश्यप ने कहा कि धर्मों का जिक्र करने की बजाय प्रताड़ित अल्पसंख्यक लिखना भी वही काम करता। उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि इसका वही मतलब होता। मैंने संसद की संयुक्त समिति से कहा था कि उनके लिए हिंदू, सिख, ईसाई आदि का जिक्र करना जरूरी नहीं है। वो बिना ये किये भी अपना मकसद हासिल कर सकते थे।" बता दें कश्यप सातवीं, आठवीं और नौवीं लोकसभा में महासचिव थे और उन्होंने कई किताबें लिखी हैं।
कश्यप ने उठाए सरकार पर सवाल
कश्यप ने कहा इस कानून को अब केवल सुप्रीम कोर्ट या सरकार दोबारा संशोधन कर ही रोक सकती है। उन्होंने कहा कि जिन पार्टियों ने संसद में इस कानून का समर्थन किया और बाहर इसका विरोध कर रही हैं वो केवल वोटबैंक की राजनीति कर रही हैं। कश्यप ने सरकार पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या यह ठीक है कि आर्थिक मंदी और दूसरी समस्याओं का सामना कर रहा देश शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोल दें?
2016 में सबसे पहले पेश हुआ था बिल
नागरिकता (संशोधन) विधेयक को सबसे पहले 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था। यहां से विधेयक को संसद की संयुक्त समिति में भेजा गया। समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद इस साल जनवरी में लोकसभा ने इस बिल को पारित कर दिया था, लेकिन यह राज्यसभा मे अटक गया। 16वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही यह बिल रद्द हो गया। नई सरकार बनने के बाद यह बिल दोबारा दोनों सदनों से पास होकर कानून बना।
क्या है इस कानून के प्रावधान?
नागरिकता संशोधन कानून को शीतकालीन सत्र में संसद से हरी झंडी मिली है। इस कानून के तहत 31 दिसंबर, 2014 से पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आने वाले हिंदू, पारसी, बौद्ध, जैन, सिख, इसाई शरणार्थियों को आसानी से भारत की नागरिकता मिल सकेगी। ये लोग छह साल भारत में रहकर नागरिकता के हकदार हो सकेंगे। मुस्लिमों को इस कानून से बाहर रखा गया है, जिस पर विवाद हो रहा है।