कोरोना वायरस: मृत्यु दर को कम करने में कारगर साबित नहीं हो रही प्लाज्मा थैरेपी- AIIMS
कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आकर ठीक हुए मरीजों के प्लाज्मा से अन्य संक्रमितों को जल्दी ठीक किए जाने की उम्मीदों को गुरुवार को बड़ा झटका लगा है। प्लाज्मा थैरेपी की प्राभाविकता का पता लगाने के लिए AIIMS द्वारा किए गए अंतरिम परीक्षण विश्लेषण के परिणाम आ गए हैं। इसमे सामने आया है कि प्लाज्मा थैरेपी से कोरोना संक्रमितों का उपचार किए जाने के बाद भी मृत्यु दर में कमी नहीं आ रही है।
क्या होती है प्लाज्मा थैरेपी?
कोन्वेलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी में कोरोना वायरस को मात दे चुके शख्स के खून से प्लाज्मा निकाला जाता है और उसे संक्रमित व्यक्ति में चढ़ाया जाता है। प्लाज्मा, खून का एक कंपोनेट होता है। जब कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से ठीक होता है तो उसके शरीर में यह महामारी फैलाने वाले SARS-CoV-2 वायरस को मारने वाली एंटीबॉडी बन जाती हैं। प्लाज्मा के जरिये वो एंटीबॉडीज संक्रमित मरीज में पहुंचती हैं और उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत कर वायरस को मारती हैं।
दो समूहों के परीक्षण में समान रही मृत्यु दर- AIIMS निदेशक
NDTV के अनुसार AIIMS के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने बताया कि संस्थान ने हाल ही में 15 कोरोना संक्रमितों के दो समूहों पर प्लाज्मा थैरेपी का परीक्षण किया था, लेकिन इसका कोई फायदा नजर नहीं आया। उन्होंने कहा कि परीक्षण के दौरान एक समूह को मानक सहयोग उपचार के साथ प्लाज्मा थैरेपी दी गई जबकि दूसरे समूह का मानक इलाज किया गया। दोनों समूहों में मृत्यु दर एक समान रही और रोगियों की हालत में ज्यादा सुधार नहीं हुआ।
AIIMS निदेशक ने बताई विस्तृत आंकलन की जरूरत
डॉ गुलेरिया ने बताया कि फिलहाल यह केवल अंतरिम विश्लेषण है और उन्हें ज्यादा विस्तृत आकलन करने की जरूरत है कि किसी उप समूह को प्लाज्मा थैरेपी से फायदा हो सकता है या नहीं। उन्होंने कहा कि प्लाज्मा की भी सुरक्षा की जांच होनी चाहिए और इसमें पर्याप्त एंटीबॉडी होनी चाहिए जो कोरोना मरीजों के लिए उपयोगी हों। फिलहाल प्रयोगिक तौर पर कोरोना मरीजों को प्लाज्मा थैरेपी दी जा रही है और उसके परिणामों का अध्ययन किया जा रहा है।
कॉन्सवेसेंट प्लाज्मा नहीं है कोई जादू की गोली- डॉ सोनेजा
गत बुधवार को तीसरे नेशनल क्लीनिकल ग्रैंड राउंड्स पर हुई परिचर्चा में प्लाज्मा थैरेपी का कोरोना वायरस मरीजों पर होने वाले प्रभाव को लेकर चर्चा हुई। वेबिनार में AIIMS के मेडिसिन विभाग में अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ मोनीष सोनेजा ने कहा कि कॉन्सवेसेंट प्लाज्मा कोई जादू की गोली नहीं है। जहां तक इसके प्रभाव की बात है तो उन्हें अब भी हरी झंडी नहीं मिली है। इसलिए क्लीनिकल उपयोग उचित है और राष्ट्रीय दिशा निर्देशों के दायरे में है।
अमेरिकी अध्ययन में भी सामने आई चौंकाने वाली बात
अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने हाल ही में दिखाया कि प्लाज्मा थैरेपी प्राप्त करने वाले रोगियों और अन्य रोगियों की मृत्यु दर में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं पाया गया है। यह अध्ययन गंभीर लक्षणों वाले रोगियों पर किया गया था।
प्लाज्मा थैरेपी के लिए नहीं बनाया जाना चाहिए दबाव
AIIMS के मेडिकल विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ नीरज निश्चल ने कहा कि मरीजों के रिश्तेदारों को तब तक प्लाज्मा थेरेपी पर जोर नहीं देना चाहिए जब तक कि इलाज करने वाला डॉक्टर मरीज को इसके लिए फिट घोषित नहीं करता है। उन्होंने कहा कि यदि थैरेपी की उपचार में कुछ भूमिका है तो यह प्रारंभिक अवस्था में है। प्लाज्मा थैरेपी के प्रभावी होने के लिए प्लाज्मा में संक्रमण के खिलाफ एंटीबॉडी को बेअसर करने की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए।